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25023
act.usfm Normal file

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29
act/1.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,29 @@
{
"1": "ऐ थियुफ़िलुस “मैने पहली किताब\\f + \\fr 1:1 \\fq पहली किताब \\ft लूक़ा की इन्जील है \\f*\nउन सब बातों के बयान में लिखी जो ईसा' शुरू; में करता और सिखाता रहा। ",
"2": "उस दिन तक जिसमें वो उन रसूलों को जिन्हें उसने चुना था रूह — उल— क़ुद्दूस के वसीले से हुक्म देकर ऊपर उठाया गया। ",
"3": "ईसा ने तकलीफ़ सहने के बाद बहुत से सबूतों से अपने आपको उन पर ज़िन्दा ज़ाहिर भी किया, चुनाँचे वो चालीस दिन तक उनको नज़र आता और ख़ुदा की बादशाही की बातें कहता रहा। \n\\p ",
"4": "और उनसे मिलकर उन्हें हुक्म दिया, यरूशलीम से बाहर न जाओ, बल्कि बाप के उस वा'दे के पूरा होने का इन्तिज़ार करो, जिसके बारे में तुम मुझ से सुन चुके हो, ",
"5": "क्यूँकि युहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया मगर तुम थोड़े दिनों के बाद रूह — उल— क़ुद्दूस से बपतिस्मा पाओगे।” \n\\p ",
"6": "पस उन्होंने इकट्ठा होकर पूछा, ऐ ख़ुदावन्द! क्या तू इसी वक़्त इस्राईल को बादशाही फिर' अता करेगा?” ",
"7": "उसने उनसे कहा, उन वक़्तों और मी'आदों का जानना, जिन्हें बाप ने अपने ही इख़्तियार में रख्खा है, तुम्हारा काम नहीं।” ",
"8": "लेकिन जब रूह — उल — क़ुद्दूस तुम पर नाज़िल होगा तो तुम ताक़त पाओगे; और यरूशलीम और तमाम यहूदिया और सामरिया में, बल्कि ज़मीन के आख़ीर तक मेरे गवाह होगे। \n\\p ",
"9": "ये कहकर वो उनको देखते देखते ऊपर उठा लिया गया, और बादलों ने उसे उनकी नज़रों से छिपा लिया। ",
"10": "उसके जाते वक़्त वो आसमान की तरफ़ ग़ौर से देख रहे थे, तो देखो, दो मर्द सफ़ेद पोशाक पहने उनके पास आ खड़े हुए, ",
"11": "और कहने लगे, ऐ गलीली मर्दो। तुम क्यूँ खड़े आसमान की तरफ़ देखते हो? यही ईसा' जो तुम्हारे पास से आसमान पर उठाया गया है, इसी तरह फिर आएगा जिस तरह तुम ने उसे आसमान पर जाते देखा है।” \n\\p ",
"12": "तब वो उस पहाड़ से जो ज़ैतून का कहलाता है और यरूशलीम के नज़दीक सबत की मन्ज़िल के फ़ासले\\f + \\fr 1:12 \\fq मन्ज़िल के फ़ासले \\ft ज़ैतून का पहाड़ यरूशलीम से 3:219 क़िलो मीटर की दूर है \\f*\nपर है यरूशलीम को फिरे। ",
"13": "और जब उसमें दाख़िल हुए तो उस बालाख़ाने पर चढ़े जिस में वो या'नी पतरस और यूहन्ना, और या'क़ूब और अन्द्रियास और फ़िलिप्पुस, तोमा, बरतुल्माई, मत्ती, हलफ़ी का बेटा या'क़ूब, शमा'ऊन ज़ेलोतेस और या'क़ूब का बेटा यहूदाह रहते थे। ",
"14": "ये सब के सब चन्द 'औरतों और ईसा' की माँ मरियम और उसके भाइयों के साथ एक दिल होकर दुआ में मशग़ूल रहे। \n\\p ",
"15": "उन्हीं दिनों पतरस भाइयों में जो तक़रीबन एक सौ बीस शख़्सों की जमा'अत थी खड़ा होकर कहने लगा, ",
"16": "“ऐ भाइयों उस नबुव्वत का पूरा होना ज़रूरी था जो रूह — उल— क़ुद्दूस ने दाऊद के ज़बानी उस यहूदा के हक़ में पहले कहा था, जो ईसा' के पकड़ने वालों का रहनुमा हुआ। \n\\p ",
"17": "क्यूँकि वो हम में शुमार किया गया और उस ने इस ख़िदमत का हिस्सा पाया।” ",
"18": "उस ने बदकारी की कमाई से एक खेत ख़रीदा, और सिर के बल गिरा और उसका पेट फट गया और उसकी सब आँतड़ीयां निकल पड़ीं। ",
"19": "और ये यरूशलीम के सब रहने वालों को मा'लूम हुआ, यहाँ तक कि उस खेत का नाम उनकी ज़बान में हैक़लेदमा पड़ गया या'नी [ख़ून का खेत]।\n\\p ",
"20": "क्यूँकि ज़बूर में लिखा है,\n\\q 'उसका घर उजड़ जाए,\n\\q और उसमें कोई बसने वाला न रहे\n\\q और उसका मर्तबा दुसरा ले ले। \n\\p ",
"21": "पस जितने 'अर्से तक ख़ुदावन्द ईसा' हमारे साथ आता जाता रहा, यानी यूहन्ना के बपतिस्मे से लेकर ख़ुदावन्द के हमारे पास से उठाए जाने तक — जो बराबर हमारे साथ रहे, ",
"22": "चाहिए कि उन में से एक आदमी हमारे साथ उसके जी उठने का गवाह बने। ",
"23": "फिर उन्होंने दो को पेश किया। एक यूसुफ़ को जो बरसब्बा कहलाता है और जिसका लक़ब यूसतुस है। दूसरा मत्तय्याह को। \n\\p ",
"24": "और ये कह कर दुआ की, ऐ ख़ुदावन्द! तू जो सब के दिलों को जानता है, ये ज़ाहिर कर कि इन दोनों में से तूने किस को चुना है ",
"25": "ताकि वह इस ख़िदमत और रसूलों की जगह ले, जिसे यहूदाह छोड़ कर अपनी जगह गया।” ",
"26": "फिर उन्होंने उनके बारे में पर्ची डाली, और पर्ची मत्तय्याह के नाम की निकली। पस वो उन ग्यारह रसूलों के साथ शुमार किया गया। ",
"front": "\\s पाक रूह मिलने का वादा\n\\p "
}

51
act/10.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,51 @@
{
"1": "क़ैसरिया शहर में कुर्नेलियुस नाम एक शख़्स था। वह सौ फ़ौजियोंका सूबेदार था, जो अतालियानी कहलाती है। ",
"2": "वो दीनदार था, और अपने सारे घराने समेत ख़ुदा से डरता था, और यहूदियों को बहुत ख़ैरात देता और हर वक़्त ख़ुदा से दुआ करता था\n\\p ",
"3": "उस ने तीसरे पहर के क़रीब रोया में साफ़ साफ़ देखा कि ख़ुदा का फ़रिश्ता मेरे पास आकर कहता है, कुर्नेलियुस!” ",
"4": "उसने उस को ग़ौर से देखा और डर कर कहा “ख़ुदावन्द क्या है?” उस ने उस से कहा, तेरी दु'आएँ और तेरी ख़ैरात यादगारी के लिए ख़ुदा के हुज़ूर पहुँची। ",
"5": "अब याफ़ा में आदमी भेजकर शमा'ऊन को जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले। ",
"6": "वो शमा'ऊन दब्बाग़ के यहाँ मेहमान है, जिसका घर समुन्दर के किनारे है।” \n\\p ",
"7": "और जब वो फ़रिश्ता चला गया जिस ने उस से बातें की थी, तो उस ने दो नौकरों को और उन में से जो उसके पास हाज़िर रहा करते थे, एक दीनदार सिपाही को बुलाया। ",
"8": "और सब बातें उन से बयान कर के उन्हें याफ़ा में भेजा। \n\\p ",
"9": "दूसरे दिन जब वो राह में थे, और शहर के नज़दीक पहुँचे तो पतरस दोपहर के क़रीब छत पर दुआ करने को चढ़ा। ",
"10": "और उसे भूख लगी, और कुछ खाना चहता था, लेकिन जब लोग तैयारी कर रहे थे, तो उस पर बेख़ुदी छा गई। ",
"11": "और उस ने देखा कि आस्मान खुल गया और एक चीज़ बड़ी चादर की तरह चारों कोनों से लटकती हुई ज़मीन की तरफ़ उतर रही है। ",
"12": "जिसमें ज़मीन के सब क़िस्म के चौपाए, कीड़े मकोड़े और हवा के परिन्दे हैं। \n\\p ",
"13": "और उसे एक आवाज़ आई कि ऐ पतरस, उठ ज़बह कर और खा, ",
"14": "मगर पतरस ने कहा, ऐ ख़ुदावन्द हरगिज़ नहीं क्यूँकि में ने कभी कोई हराम या नापाक चीज़ नहीं खाई।” ",
"15": "फिर दूसरी बार उसे आवाज़ आई, कि जिनको ख़ुदा ने पाक ठहराया है तू उन्हें हराम न कह” ",
"16": "तीन बार ऐसा ही हुआ, और फ़ौरन वो चीज़ आसमान पर उठा ली गई। \n\\p ",
"17": "जब पतरस अपने दिल में हैरान हो रहा था, कि ये रोया जो में ने देखी क्या है, तो देखो वो आदमी जिन्हें कुर्नेलियुस ने भेजा था, शमा'ऊन के घर पूछ कर के दरवाज़े पर आ खड़े हुए। ",
"18": "और पुकार कर पूछने लगे कि शमा'ऊन जो पतरस कहलाता है? “यही मेहमान है।” \n\\p ",
"19": "जब पतरस उस ख़्वाब को सोच रहा था, तो रूह ने उस से कहा देख तीन आदमी तुझे पूछ रहे हैं। ",
"20": "पस, उठ कर नीचे जा और बे — खटके उनके साथ हो ले; क्यूँकि मैं ने ही उनको भेजा है। ",
"21": "पतरस ने उतर कर उन आदमियों से कहा, देखो जिसको तुम पूछते हो वो मैं ही हूँ तुम किस वजह से आये हो।” \n\\p ",
"22": "उन्होंने कहा, कुर्नेलियुस सूबेदार जो रास्तबाज़ और ख़ुदा तरस आदमी और यहूदियों की सारी क़ौम में नेक नाम है उस ने पाक फ़रिश्ते से हिदायत पाई कि तुझे अपने घर बुलाकर तुझ से कलाम सुने।” ",
"23": "पस उस ने उन्हें अन्दर बुला कर उनकी मेहमानी की, और दूसरे दिन वो उठ कर उनके साथ रवाना हुआ,\n\\p और याफ़ा में से कुछ भाई उसके साथ हो लिए। \n\\p ",
"24": "वो दूसरे रोज़ क़ैसरिया में दाख़िल हुए, और कुर्नेलियुस अपने रिश्तेदारों और दिली दोस्तों को जमा कर के उनकी राह देख रहा था। \n\\p ",
"25": "जब पतरस अन्दर आने लगा तो ऐसा हुआ कि कुर्नेलियुस ने उसका इस्तक़बाल किया और उसके क़दमों में गिर कर सिज्दा किया। ",
"26": "लेकिन पतरस ने उसे उठा कर कहा खड़ा हो, मैं भी तो इंसान हूँ।” \n\\p ",
"27": "और उससे बातें करता हुआ अन्दर गया और बहुत से लोगों को इकट्ठा पा कर। ",
"28": "उनसे कहा तुम तो जानते हो कि यहूदी को ग़ैर क़ौम वाले से सोहबत रखना या उसके यहाँ जाना ना जायज़ है मगर “ख़ुदा “ने मुझ पर ज़ाहिर किया कि मैं किसी आदमी को नजिस या नापाक न कहूँ। ",
"29": "इसी लिए जब मैं बुलाया गया तो बे' उज़्र चला आया, पस अब मैं पूछता हूँ कि मुझे किस बात के लिए बुलाया है?”\n\\p ",
"30": "कुर्नेलियुस ने कहा “इस वक़्त पूरे चार रोज़ हुए कि मैं अपने घर तीसरे पहर दुआ कर रहा था। और क्या देखता हूँ। कि एक शख़्स चमकदार पोशाक पहने हुए मेरे सामने खड़ा हुआ।” ",
"31": "और कहा कि ऐ'कुर्नेलियुस तेरी दुआ सुन ली गई और तेरी ख़ैरात की ख़ुदा के हुज़ूर याद हुई। ",
"32": "पस किसी को याफ़ा में भेज कर शमा'ऊन को जो पतरस कहलाता है अपने पास बुला, वो समुन्दर के किनारे शमा'ऊन दब्बाग़ के घर में मेहमान है। ",
"33": "पस उसी दम में ने तेरे पास आदमी भेजे और तूने ख़ूब किया जो आ गया, अब हम सब ख़ुदा के हुज़ूर हाज़िर हैं ताकि जो कुछ ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है उसे सुनें।” \n\\p ",
"34": "पतरस ने ज़बान खोल कर कहा,\n\\p “अब मुझे पूरा यक़ीन हो गया कि ख़ुदा किसी का तरफ़दार नहीं। ",
"35": "बल्कि हर क़ौम में जो उस से डरता और रास्तबाज़ी करता है, वो उसको पसन्द आता है। \n\\p ",
"36": "जो कलाम उस ने बनी इस्राईल के पास भेजा, जब कि ईसा' मसीह के ज़रिए जो सब का ख़ुदा है, सुलह की ख़ुशख़बरी दी। ",
"37": "इस बात को तुम जानते हो जो यूहन्ना के बपतिस्मे की मनादी के बाद गलील से शुरू होकर तमाम यहूदिया सूबा में मशहूर हो गई। ",
"38": "कि ख़ुदा ने ईसा' नासरी को रूह — उल — क़ुद्दूस और क़ुदरत से किस तरह मसह किया, वो भलाई करता और उन सब को जो इब्लीस के हाथ से ज़ुल्म उठाते थे शिफ़ा देता फिरा, क्यूँकि ख़ुदा उसके साथ था। \n\\p ",
"39": "और हम उन सब कामों के गवाह हैं, जो उस ने यहूदियों के मुल्क और यरूशलीम में किए, और उन्हों ने उस को सलीब पर लटका कर मार डाला। ",
"40": "उस को ख़ुदा ने तीसरे दिन जिलाया और ज़ाहिर भी कर दिया। ",
"41": "न कि सारी उम्मत पर बल्कि उन गवाहों पर जो आगे से ख़ुदा के चुने हुए थे, या'नी हम पर जिन्हों ने उसके मुर्दों में से जी उठने कि बाद उसके साथ खाया पिया। \n\\p ",
"42": "और उस ने हमें हुक्म दिया कि उम्मत में ऐलान करो और गवाही दो कि ये वही है जो ख़ुदा की तरफ़ से ज़िन्दों और मुर्दों का मुन्सिफ़ मुक़र्रर किया गया। ",
"43": "इस शख़्स की सब नबी गवाही देते हैं, कि जो कोई उस पर ईमान लाएगा, उस के नाम से गुनाहों की मु'आफ़ी हासिल करेगा।” \n\\p ",
"44": "पतरस ये बातें कह ही रहा था, कि रूह — उल— क़ुद्दूस उन सब पर नाज़िल हुआ, जो कलाम सुन रहे थे। ",
"45": "और पतरस के साथ जितने मख़्तून ईमानदार आए थे, वो सब हैरान हुए कि ग़ैर क़ौमों पर भी रूह — उल — क़ुद्दूस की बख़्शिश जारी हुई। \n\\p ",
"46": "क्यूँकि उन्हें तरह तरह की ज़बाने बोलते और ख़ुदा की तारीफ़ करते सुना; पतरस ने जवाब दिया। ",
"47": "“क्या कोई पानी से रोक सकता है, कि बपतिस्मा न पाएँ, जिन्हों ने हमारी तरह रूह — उल — क़ुद्दूस पाया?” ",
"48": "और उस ने हुक्म दिया कि उन्हें ईसा' मसीह के नाम से बपतिस्मा दिया जाए इस पर उन्हों ने उस से दरख़्वास्त की कि चन्द रोज़ हमारे पास रह।” ",
"front": "\\s कुरनेलियुस का पतरस को बुलाना\n\\p "
}

33
act/11.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,33 @@
{
"1": "रसूलों और भाइयों ने जो यहूदिया में थे, सुना कि ग़ैर क़ौमों ने भी ख़ुदा का कलाम क़ुबूल किया है। ",
"2": "जब पतरस यरूशलीम में आया तो मख़्तून ईमानदार उस से ये बहस करने लगे ",
"3": "“तू, ना मख़्तून ईमानदारों के पास गया और उन के साथ खाना खाया।” \n\\p ",
"4": "पतरस ने शुरू से वो काम तरतीबवार उन से बयान किया कि। ",
"5": "“मै याफ़ा शहर में दुआ कर रहा था, और बेख़ुदी की हालत में एक ख़्वाब देखा। कि कोई चीज़ बड़ी चादर की तरह चारों कोनों से लटकती हुई आसमान से उतर कर मुझ तक आई। ",
"6": "उस पर जब मैने ग़ौर से नज़र की तो ज़मीन के चौपाए और जंगली जानवर और कीड़े मकोड़े और हवा के परिन्दे देखे। \n\\p ",
"7": "और ये आवाज़ भी सुनी कि 'ऐ पतरस उठ ज़बह कर और खा!” ",
"8": "लेकिन मै ने कहा “ऐ ख़ुदावन्द हरगिज़ नहीं 'क्यूँकि कभी कोई हराम या नापाक चीज़ खाया ही नहीं।” ",
"9": "इसके जावाब में दूसरी बार आसमान से आवाज़ आई; “जिनको ख़ुदा ने पाक ठहराया है; तू उन्हें हराम न कह।” ",
"10": "तीन बार ऐसा ही हुआ, फिर वो सब चीज़ें आसमान की तरफ़ खींच ली गई। \n\\p ",
"11": "और देखो' उसी वक़्त तीन आदमी जो क़ैसरिया से मेरे पास भेजे गए थे, उस घर के पास आ खड़े हुए जिस में हम थे। ",
"12": "रूह ने मुझ से कहा कि तू बिला इम्तियाज़ उनके साथ चला जा और ये छे:भाई भी मेरे साथ हो लिए और हम उस शख़्स के घर में दाख़िल हुए। ",
"13": "उस ने हम से बयान किया कि मैने फ़रिश्ते को अपने घर में खड़े हुए देखा'जिसने मुझ से कहा, याफ़ा में आदमी भेजकर शमा'ऊन को बुलवा ले जो पतरस कहलाता है। ",
"14": "वो तुझ से ऐसी बातें कहेगा जिससे तू और तेरा सारा घराना नजात पाएगा। \n\\p ",
"15": "जब मै कलाम करने लगा तो रूह — उल — क़ुद्दूस उन पर इस तरह नाज़िल हुआ जिस तरह शुरू में हम पर नाज़िल हुआ था।” ",
"16": "और मुझे ख़ुदावन्द की वो बात याद आई, जो उसने कही थी “यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया मगर तुम रूह — उल — क़ुद्दूस से बपतिस्मा पाओगे। \n\\p ",
"17": "पस जब ख़ुदा ने उस को भी वही ने'मत दी जो हम को ख़ुदावन्द ईसा' मसीह पर ईमान लाकर मिली थी? तो मै कौन था कि ख़ुदा को रोक सकता। ",
"18": "वो ये सुनकर चुप रहे और ख़ुदा की बड़ाई करके कहने लगे, फिर तो बेशक ख़ुदा ने ग़ैर क़ौमों को भी ज़िन्दगी के लिए तौबा की तौफ़ीक़ दी है।” \n\\p ",
"19": "पस, जो लोग उस मुसीबत से इधर उधर हो गए थे जो स्तिफ़नुस कि ज़रिए पड़ी थी वो फिरते फिरते फ़ीनिके सूबा और कुप्रुस टापू और आन्ताकिया शहर में पहूँचे; मगर यहूदियों के सिवा और किसी को कलाम न सुनाते थे। ",
"20": "लेकिन उन में से चन्द कुप्रुसी और कुरेनी थे, जो आन्ताकिया में आकर यूनानियों को भी ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की ख़ुशख़बरी की बातें सुनाने लगे। ",
"21": "और ख़ुदावन्द का हाथ उन पर था और बहुत से लोग ईमान लाकर ख़ुदावन्द की तरफ़ रुजू हुए। \n\\p ",
"22": "उन लोगों की ख़बर यरूशलीम की कलीसिया के कानों तक पहूँची और उन्हों ने बरनबास को आन्ताकिया तक भेजा। ",
"23": "वो पहूँचकर और ख़ुदा का फ़ज़ल देख कर ख़ुश हुआ, और उन सब को नसीहत की कि दिली इरादे से ख़ुदावन्द से लिपटे रहो। ",
"24": "क्यूँकि वो नेक मर्द और रूह — उल — क़ुद्दूस और ईमान से मा'मूर था, और बहुत से लोग ख़ुदावन्द की कलीसिया में आ मिले। \n\\p ",
"25": "फिर वो साऊल की तलाश में तरसुस को चला गया। ",
"26": "और जब वो मिला तो उसे आन्ताकिया में लाया और ऐसा हुआ कि वो साल भर तक कलीसिया की जमा'अत में शामिल होते और बहुत से लोगों को ता'लीम देते रहे और शागिर्द पहले आन्ताकिया में ही मसीही कहलाए। \n\\p ",
"27": "उन ही दिनों में चन्द नबी यरूशलीम से आन्ताकिया में आए। ",
"28": "उन में से एक जिसका नाम अग्बुस था खड़े होकर रूह की हिदायत से ज़ाहिर किया कि तमाम दुनियाँ में बड़ा काल पड़ेगा और क्लोदियुस के अहद में वाक़े हुआ। \\f + \\fr 11:28 \\ft ये वाकया मसीह की सलीबी मौत के 41 से 54 में हुआ \\f*\n\\p ",
"29": "पस, शागिर्दों ने तजवीज़ की अपने अपने हैसियत कि मुवाफ़िक़ यहूदियो में रहने वाले भाइयों की ख़िदमत के लिए कुछ भेजें। ",
"30": "चुनाँचे उन्होंने ऐसा ही किया और बरनबास और साऊल के हाथ बुज़ुर्गों के पास भेजा। ",
"front": "\\s पतरस का अपने कामों का बखान करना\n\\p "
}

28
act/12.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,28 @@
{
"1": "तक़रीबन उसी वक़्त हेरोदेस बादशाह ने सताने के लिए कलीसिया में से कुछ पर हाथ डाला\\f + \\fr 12:1 \\ft बादशाह हेरोद बादशाह अग्रिपा जो बड़ा हेरोद का पहला पोता था \\f*। ",
"2": "और यूहन्ना के भाई या'क़ूब को तलवार से क़त्ल किया। \n\\p ",
"3": "जब देखा कि ये बात यहूदी अगुवों को पसन्द आई, तो पतरस को भी गिरफ़्तार कर लिया। ये ईद 'ए फ़तीर के दिन थे। ",
"4": "और उसको पकड़ कर क़ैद किया और निगहबानी के लिए चार चार सिपाहियों के चार पहरों में रखा इस इरादे से कि फ़सह के बाद उसको लोगों के सामने पेश करे। \n\\p ",
"5": "पस, क़ैद खाने में तो पतरस की निगहबानी हो रही थी, मगर कलीसिया उसके लिए दिलो' जान से “ख़ुदा “से दुआ कर रही थी। ",
"6": "और जब हेरोदेस उसे पेश करने को था, तो उसी रात पतरस दो ज़ंजीरों से बँधा हुआ दो सिपाहियों के बीच सोता था, और पहरे वाले दरवाज़े पर क़ैदख़ाने की निगहबानी कर रहे थे। \n\\p ",
"7": "कि देखो, ख़ुदावन्द का एक फ़रिश्ता खड़ा हुआ और उस कोठरी में नूर चमक गया और उस ने पतरस की पसली पर हाथ मार कर उसे जगाया और कहा कि जल्द उठ! और ज़ंजीरें उसके हाथ से खुल पड़ीं”। ",
"8": "फिर फ़रिश्ते ने उस से कहा, कमर बाँध और अपनी जूती पहन ले।” उस ने ऐसा ही किया, फिर उस ने उस से कहा, अपना चोग़ा पहन कर मेरे पीछे हो ले।” \n\\p ",
"9": "वो निकल कर उसके पीछे हो लिया, और ये न जाना कि जो कुछ फ़रिश्ते की तरफ़ से हो रहा है वो वाक़'ई है बल्कि ये समझा कि ख़्वाब देख रहा हूँ। ",
"10": "पस, वो पहले और दूसरे हल्क़े में से निकलकर उस लोहे के फाटक पर पहुँचे, जो शहर की तरफ़ है। वो आप ही उन के लिए खुल गया, पस वो निकलकर गली के उस किनारे तक गए; और फ़ौरन फ़रिश्ता उस के पास से चला गया। \n\\p ",
"11": "और पतरस ने होश में आकर कहा कि अब मैने सच जान लिया कि ख़ुदावन्द ने अपना फ़रिश्ता भेज कर मुझे हेरोदेस के हाथों से छुड़ा लिया, और यहूदी क़ौम की सारी उम्मीद तोड़ दी।” ",
"12": "और इस पर ग़ौर कर के उस यूहन्ना की माँ मरियम के घर आया, जो मरकुस कहलाता है, वहाँ बहुत से आदमी जमा हो कर दुआ कर रहे थे। \n\\p ",
"13": "जब उस ने फाटक की खिड़की खटखटाई, तो रुदी नाम एक लौंडी आवाज़ सुनने आई। ",
"14": "और पतरस की आवाज़ पहचान कर ख़ुशी के मारे फाटक न खोला, बल्कि दौड़कर अन्दर ख़बर की कि पतरस फाटक पर खड़ा है!” ",
"15": "उन्हों ने उस से कहा, तू दिवानी है लेकिन वो यक़ीन से कहती रही कि यूँ ही है!” उन्होंने कहा कि उसका फ़रिश्ता होगा।” \n\\p ",
"16": "मगर पतरस खटखटाता रहा पस, उन्हों ने खिड़की खोली और उस को देख कर हैरान हो गए। ",
"17": "उस ने उन्हें हाथ से इशारा किया कि चुप रहें।” और उन से बयान किया कि ख़ुदावन्द ने मुझे इस तरह क़ैदख़ाने से निकाला फिर कहा कि या'क़ूब और भाइयों को इस बात की ख़बर देना, और रवाना होकर दूसरी जगह चला गया। \n\\p ",
"18": "जब सुबह हुई तो सिपाही बहुत घबराए, कि पतरस क्या हुआ। ",
"19": "जब हेरोदेस ने उस की तलाश की और न पाया तो पहरे वालों की तहक़ीक़ात करके उनके क़त्ल का हुक्म दिया; और यहूदिया सूबे को छोड़ कर क़ैसरिया शहर में जा बसा। \n\\p ",
"20": "और वो सूर और सैदा के लोगों से निहायत नाख़ुश था, पस वो एक दिल हो कर उसके पास आए, और बादशाह के दरबान बलस्तुस को अपनी तरफ़ करके सुलह चाही, इसलिए कि उन के मुल्क को बादशाह के मुल्क से इम्दाद पहुँचती थी। ",
"21": "पस, हेरोदेस एक दिन मुक़र्रर करके और शाहाना पोशाक पहन कर तख़्त — ए, अदालत पर बैठा, और उन से कलाम करने लगा। \n\\p ",
"22": "लोग पुकार उठे कि ये तो “ख़ुदा “की आवाज़ है न इंसान की।” ",
"23": "उसी वक़्त “ख़ुदा “के फ़रिश्ते ने उसे मारा; इसलिए कि उस ने “ख़ुदा “की बड़ाई नहीं की और वो कीड़े पड़ कर मर गया। \n\\p ",
"24": "मगर “ख़ुदा “का कलाम तरक़्क़ी करता और फैलता गया। \n\\p ",
"25": "और बरनबास और साऊल अपनी ख़िदमत पूरी करके और यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है साथ लेकर, यरूशलीम से वापस आए। ",
"front": "\\s याकूब का मारा जाना और पतरस को कैद करना\n\\p "
}

55
act/13.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,55 @@
{
"1": "अन्ताकिया में उस कलीसिया के मुता'ल्लिक़ जो वहाँ थी, कई नबी और मु'अल्लिम थे या'नी बरनबास और शमा'ऊन जो काला कहलाता है, और लुकियुस कुरेनी और मनाहेम जो चौथाई मुल्क के हाकिम हेरोदेस के साथ पला था, और साऊल। ",
"2": "जब वो ख़ुदावन्द की इबादत कर रहे और रोज़े रख रहे थे, तो रूह — उल — क़ुद्दूस ने कहा, मेरे लिए बरनबास और साऊल को उस काम के वास्ते मख़्सूस कर दो जिसके वास्ते में ने उनको बुलाया है।” ",
"3": "तब उन्हों ने रोज़ा रख कर और दुआ करके और उन पर हाथ रखकर उन्हें रुख़्सत किया।\n\\p ",
"4": "पस, वो रूह — उल — क़ुद्दूस के भेजे हुए सिलोकिया को गए, और वहाँ से जहाज़ पर कुप्रुस को चले। ",
"5": "और सलमीस शहर में पहुँचकर यहूदियों के इबादतख़ानों में “ख़ुदा “का कलाम सुनाने लगे और यूहन्ना उनका ख़ादिम था।\n\\p ",
"6": "और उस तमाम टापू में होते हुए पाफ़ुस शहर तक पहुँचे वहाँ उन्हें एक यहूदी जादूगर और झूठा नबी बरयिसू नाम का मिला। ",
"7": "वो सिरगियुस पौलुस सूबेदार के साथ था जो सहिब— ए— तमीज़ आदमी था, इस ने बरनबास और साऊल को बुलाकर “ख़ुदा “का कलाम सुनना चाहा। ",
"8": "मगर इलीमास जादूगर ने (यही उसके नाम का तर्जुमा है), उनकी मुख़ालिफ़त की और सूबेदार को ईमान लाने से रोकना चाहा।\n\\p ",
"9": "और साऊल\\f + \\fr 13:9 \\fq साऊल \\ft इब्रानी नाम है और पौलुस यूनानी नाम है \\f*\nने जिसका नाम पौलुस भी है रूह — उल — क़ुद्दूस से भर कर उस पर ग़ौर से देखा। ",
"10": "और कहा “ऐ इब्लीस की औलाद “तू तमाम मक्कारी और शरारत से भरा हुआ और हर तरह की नेकी का दुश्मन है। क्या “ख़ुदावन्द “के सीधे रास्तों को बिगाड़ने से बाज़ न आएगा\n\\p ",
"11": "अब देख तुझ पर “ख़ुदावन्द “का ग़ज़ब है और तू अन्धा होकर कुछ मुद्दत तक सूरज को न देखे गा। उसी वक़्त अँधेरा उस पर छा गया, और वो ढूँडता फिरा कि कोई उसका हाथ पकड़कर ले चले। ",
"12": "तब सूबेदार ये माजरा देखकर और “ख़ुदावन्द “की तालीम से हैरान हो कर ईमान ले आया।\n\\p ",
"13": "फिर पौलुस और उसके साथी पाफ़ुस शहर से जहाज़ पर रवाना होकर पम्फ़ीलिया मुल्क के पिरगा शहर में आए; और यूहन्ना उनसे जुदा होकर यरूशलीम को वापस चला गया। ",
"14": "और वो पिरगा शहर से चलकर पिसदिया मुल्क के अन्ताकिया शहर में पहुँचे, और सबत के दिन इबादतख़ाने में जा बैठे। ",
"15": "फिर तौरेत और नबियों की किताब पढ़ने के बाद इबादतख़ाने के सरदारों ने उन्हें कहला भेजा “ऐ भाइयों अगर लोगों की नसीहत के वास्ते तुम्हारे दिल में कोई बात हो तो बयान करो।”\n\\p ",
"16": "पस, पौलुस ने खड़े होकर और हाथ से इशारा करके कहा “ऐ इस्राईलियो और “ऐ “ख़ुदा “से डरनेवाले सुनो! ",
"17": "इस उम्मत इस्राईल के “ख़ुदा “ने हमारे बाप दादा को चुन लिया और जब ये उम्मत मुल्के मिस्र में परदेसियों की तरह रहती थी, उसको सरबलन्द किया और ज़बरदस्त हाथ से उन्हें वहाँ से निकाल लाया। ",
"18": "और कोई चालीस बरस तक वीरानों में\\f + \\fr 13:18 \\fq चालीस बरस तक वीरानों में \\ft पौलुस को ख़ुदा ने वीरान में घटना और बढ़ना सिखाया — रेगिस्तान \\f*\nउनकी आदतों की बर्दाश्त करता रहा,\n\\p ",
"19": "और कनान के मुल्क में सात क़ौमों को लूट करके तक़रीबन साढ़े चार सौ बरस में उनका मुल्क इन की मीरास कर दिया। ",
"20": "और इन बातों के बाद शमुएल नबी के ज़माने तक उन में क़ाज़ी मुक़र्रर किए।\n\\p ",
"21": "इस के बाद उन्हों ने बादशाह के लिए दरख़्वास्त की और ख़ुदा ने बिनयामीन के क़बीले में से एक शख़्स साऊल क़ीस के बेटे को चालीस बरस के लिए उन पर मुक़र्रर किया।\n\\p ",
"22": "फिर उसे हटा करके दाऊद को उन का बादशाह बनाया। जिसके बारे में उस ने ये गवाही दी‘कि मुझे एक शख़्स यस्सी का बेटा दाऊद मेरे दिल के मु'वाफ़िक़ मिल गया। वही मेरी तमाम मर्ज़ी को पूरा करेगा।\n\\p ",
"23": "इसी की नस्ल में से “ख़ुदा “ने अपने वा'दे के मुताबिक़ इस्राईल के पास एक मुन्जी या'नी ईसा' को भेज दिया। ",
"24": "जिस के आने से पहले यहून्ना ने इस्राईल की तमाम उम्मत के सामने तौबा के बपतिस्मे का ऐलान किया। ",
"25": "और जब युहन्ना अपना दौर पूरा करने को था, तो उस ने कहा कि तुम मुझे क्या समझते हो? में वो नहीं बल्कि देखो मेरे बाद वो शख़्स आने वाला है, जिसके पाँव की जूतियों का फ़ीता मैं खोलने के लायक़ नहीं।\n\\p ",
"26": "ऐ भाइयों! अब्रहाम के बेटो और ऐ ख़ुदा से डरने वालों इस नजात का कलाम हमारे पास भेजा गया। ",
"27": "क्यूँकि यरूशलीम के रहने वालों और उन के सरदारों ने न उसे पहचाना और न नबियों की बातें समझीं, जो हर सबत को सुनाई जाती हैं। इस लिए उस पर फ़तवा देकर उनको पूरा किया।\n\\p ",
"28": "और अगरचे उस के क़त्ल की कोई वजह न मिली तोभी उन्हों ने पीलातुस से उसके क़त्ल की दरख़्वास्त की। ",
"29": "और जो कुछ उसके हक़ में लिखा था, जब उसको तमाम कर चुके तो उसे सलीब पर से उतार कर क़ब्र में रख्खा।\n\\p ",
"30": "लेकिन “ख़ुदा “ने उसे मुर्दों में से जिलाया। ",
"31": "और वो बहुत दिनों तक उनको दिखाई दिया, जो उसके साथ गलील से यरूशलीम आए थे, उम्मत के सामने अब वही उसके गवाह हैं।\n\\p ",
"32": "और हम तुमको उस वा'दे के बारे में जो बाप दादा से किया गया था, ये ख़ुशख़बरी देते हैं। ",
"33": "कि “ख़ुदा “ने ईसा' को जिला कर हमारी औलाद के लिए उसी वा'दे को पूरा किया‘ चुनाँचे दूसरे मज़मूर में लिखा है, कि तू मेरा बेटा है, आज तू मुझ से पैदा हुआ। ",
"34": "और उसके इस तरह मुर्दों में से जिलाने के बारे में फिर कभी न मरे और उस ने यूँ कहा, कि मैं दाऊद की पाक और सच्ची ने'अमतें तुम्हें दूँगा।’ \n\\p ",
"35": "चुनाँचे वो एक और मज़मूर में भी कहता है,\n\\q कि तू अपने मुक़द्दस के सड़ने की नौबत पहुँचने न देगा‘।’ ",
"36": "क्यूँकि दाऊद तो अपने वक़्त में “ख़ुदा “की मर्ज़ी के ताबे' दार रह कर सो गया, और अपने बाप दादा से जा मिला, और उसके सड़ने की नौबत पहुँची। ",
"37": "मगर जिसको “ख़ुदा “ने जिलाया उसके सड़ने की नौबत न पहुँची।\n\\p ",
"38": "पस, ऐ भाइयों! तुम्हें मा' लूम हो कि उसी के वसीले से तुम को गुनाहों की मु'आफ़ी की ख़बर दी जाती है। ",
"39": "और मूसा की शरी' अत के ज़रिए जिन बातों से तुम बरी नहीं हो सकते थे, उन सब से हर एक ईमान लाने वाला उसके ज़रिए बरी होता है।\n\\p ",
"40": "पस, ख़बरदार! ऐसा न हो कि जो नबियों की किताब में आया है वो तुम पर सच आए।\n\\q ",
"41": "ऐ तहकीर करने वालों, देखो, तअ'ज्जुब करो और मिट जाओ:\n\\q क्यूँकि में तुम्हारे ज़माने में एक काम करता हूँ ऐसा काम कि अगर कोई तुम से बयान करे तो कभी उसका यक़ीन न करोगे।”\n\\p ",
"42": "उनके बाहर जाते वक़्त लोग मिन्नत करने लगे कि अगले सबत को भी ये बातें सुनाई जाएँ। ",
"43": "जब मजलिस ख़त्म हुई तो बहुत से यहूदी और ख़ुदा परस्त नए मुरीद यहूदी पौलुस और बरनबास के पीछे हो लिए, उन्हों ने उन से कलाम किया और तरग़ीब दी कि ख़ुदा के फ़ज़ल पर क़ाईम रहो।\n\\p ",
"44": "दूसरे सबत को तक़रीबन सारा शहर “ख़ुदा “का कलाम सुनने को इकट्ठा हुआ। ",
"45": "मगर यहूदी इतनी भीड़ देखकर हसद से भर गए, और पौलुस की बातों की मुख़ालिफ़त करने और कुफ़्र बकने लगे।\n\\p ",
"46": "पौलुस और बरनबास दिलेर होकर कहने लगे “ज़रूर था, कि “ख़ुदा “का कलाम पहले तुम्हें सुनाया जाए; लेकिन चूँकि तुम उसको रद्द करते हो। और अपने आप को हमेशा की ज़िन्दगी के नाक़ाबिल ठहराते हो, तो देखो हम ग़ैर क़ौमों की तरफ़ मुतवज्जह होते हैं। ",
"47": "क्यूँकि ख़ुदा ने हमें ये हुक्म दिया है कि\n\\q “मैने तुझ को ग़ैर क़ौमों के लिए नूर मुक़र्रर किया\n\\q 'ताकि तू ज़मीन की इन्तिहा तक नजात का ज़रिया हो।”\n\\p ",
"48": "ग़ैर क़ौम वाले ये सुनकर ख़ुश हुए और “ख़ुदा “के कलाम की बड़ाई करने लगे, और जितने हमेशा की ज़िन्दगी के लिए मुक़र्रर किए गए थे, ईमान ले आए। ",
"49": "और उस तमाम इलाक़े में “ख़ुदा “का कलाम फैल गया।\n\\p ",
"50": "मगर यहूदियों ने “ख़ुदा “परस्त और इज़्ज़त दार औरतों और शहर के रईसों को उभारा और पौलुस और बरनबास को सताने पर आमादा करके उन्हें अपनी सरहदों से निकाल दिया। ",
"51": "ये अपने पाँव की ख़ाक उनके सामने झाड़ कर इकुनियुम शहर को गए। ",
"52": "मगर शागिर्द ख़ुशी और रूह — उल — क़ुद्दूस से भरते रहे।",
"front": "\\s बरनाबास और साऊल को हुकम देना\n\\p "
}

31
act/14.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,31 @@
{
"1": "और इकुनियुम में ऐसा हुआ कि वो साथ साथ यहूदियों के इबादत खाने में गए। और ऐसी तक़रीर की कि यहूदियों और यूनानियों दोनों की एक बड़ी जमा'अत ईमान ले आई। ",
"2": "मगर नाफ़रमान यहूदियों ने ग़ैर क़ौमों के दिलों में जोश पैदा करके उनको भाइयों की तरफ़ बदगुमान कर दिया। \n\\p ",
"3": "पस, वो बहुत ज़माने तक वहाँ रहे, और ख़ुदावन्द के भरोसे पर हिम्मत से कलाम करते थे, और वो उनके हाथों से निशान और अजीब काम कराकर, अपने फ़ज़ल के कलाम की गवाही देता था। ",
"4": "लेकिन शहर के लोगों में फ़ूट पड़ गई। कुछ यहूदियों की तरफ़ हो गए। कुछ रसूलों की तरफ़। \n\\p ",
"5": "मगर जब ग़ैर क़ौम वाले और यहूदी उन्हें बे'इज़्ज़त और पथराव करने को अपने सरदारों समेत उन पर चढ़ आए। ",
"6": "तो वो इस से वाक़िफ़ होकर लुकाउनिया मुल्क के शहरों लुस्तरा और दिरबे और उनके आस — पास में भाग गए। ",
"7": "और वहाँ ख़ुशख़बरी सुनाते रहे। \n\\p ",
"8": "और लुस्तरा में एक शख़्स बैठा था, जो पाँव से लाचार था। वो पैदाइशी लंगड़ा था, और कभी न चला था। ",
"9": "वो पौलुस को बातें करते सुन रहा था। और जब इस ने उसकी तरफ़ ग़ौर करके देखा कि उस में शिफ़ा पाने के लायक़ ईमान है। ",
"10": "तो बड़ी आवाज़ से कहा कि अपने पाँव के बल सीधा खड़ा हो पस, वो उछल कर चलने फिरने लगा।” \n\\p ",
"11": "लोगों ने पौलुस का ये काम देखकर लुकाउनिया की बोली में बुलन्द आवाज़ से कहा “कि आदमियों की सूरत में देवता उतर कर हमारे पास आए हैं ",
"12": "और उन्होंने बरनबास को ज़ियूस\\f + \\fr 14:12 \\fq ज़ियूस \\ft ये बड़ा ख़ुदा है और हरमेस छोटा ख़ुदा या उसका पैग़म्बर यहूदी और यूनानी लोग जियूस को बड़ा ख़ुदा कहते थे \\f*\nकहा, और पौलुस को हरमेस इसलिए कि ये कलाम करने में सबक़त रखता था। ",
"13": "और ज़ियूस कि उस मन्दिर का पुजारी जो उनके शहर के सामने था, बैल और फ़ूलों के हार फाटक पर लाकर लोगों के साथ क़ुर्बानी करना चहता था।” \n\\p ",
"14": "जब बरनबास और पौलुस रसूलों ने ये सुना तो अपने कपड़े फाड़ कर लोगों में जा कूदे, और पुकार पुकार कर। ",
"15": "कहने लगे, लोगो तुम ये क्या करते हो? हम भी तुम्हारी हम तबी'अत इंसान हैं और तुम्हें ख़ुशख़बरी सुनाते हैं ताकि इन बातिल चीज़ों से किनारा करके ज़िन्दा “ख़ुदा “की तरफ़ फिरो, जिस ने आसमान और ज़मीन और समुन्दर और जो कुछ उन में है, पैदा किया। ",
"16": "उस ने अगले ज़माने में सब क़ौमों को अपनी अपनी राह पर चलने दिया। \n\\p ",
"17": "तोभी उस ने अपने आप को बेगवाह न छोड़ा। चुनाँचे, उस ने महरबानियाँ कीं और आसमान से तुम्हारे लिए पानी बरसाया और बड़ी बड़ी पैदावार के मौसम अता' किए और तुम्हारे दिलों को ख़ुराक और ख़ुशी से भर दिया। ",
"18": "ये बातें कहकर भी लोगों को मुश्किल से रोका कि उन के लिए क़ुर्बानी न करें। \n\\p ",
"19": "फिर कुछ यहूदी अन्ताकिया और इकुनियुम से आए और लोगों को अपनी तरफ़ करके पौलुस पर पथराव किया और उसको मुर्दा समझकर शहर के बाहर घसीट ले गए। ",
"20": "मगर जब शागिर्द उसके आस पास आ खड़े हुए, तो वो उठ कर शहर में आया, और दूसरे दिन बरनबास के साथ दिरबे शहर को चला गया। \n\\p ",
"21": "और वो उस शहर में ख़ुशख़बरी सुना कर और बहुत से शागिर्द करके लुस्तरा और इकुनियुम और अन्ताकिया को वापस आए। ",
"22": "और शागिर्दों के दिलों को मज़बूत करते, और ये नसीहत देते थे, कि ईमान पर क़ाईम रहो और कहते थे “ज़रूर है कि हम बहुत मुसीबतें सहकर “ख़ुदा “की बादशाही में दाख़िल हों।” \n\\p ",
"23": "और उन्होंने हर एक कलीसिया में उनके लिए बुज़ुर्गों को मुक़र्रर किया और रोज़ा रखकर और दुआ करके उन्हें “ख़ुदावन्द “के सुपुर्द किया, जिस पर वो ईमान लाए थे। ",
"24": "और पिसदिया मुल्क में से होते हुए पम्फ़ीलिया मुल्क में पहुँचे। ",
"25": "और पिरगे में कलाम सुनाकर अत्तलिया को गए। \n\\p ",
"26": "और वहाँ से जहाज़ पर उस अन्ताकिया में आए, जहाँ उस काम के लिए जो उन्होंने अब पूरा किया ख़ुदा के फ़ज़ल के सुपुर्द किए गए थे। ",
"27": "वहाँ पहुँचकर उन्होंने कलीसिया को जमा किया और उन के सामने बयान किया कि “ख़ुदा “ने हमारे ज़रिए क्या कुछ किया और ये कि उस ने ग़ैर क़ौमों के लिए ईमान का दरवाज़ा खोल दिया। ",
"28": "और वो ईमानदारों के पास मुद्दत तक रहे। ",
"front": "\\s पौलुस और बरनाबस इकुनियुम में\n\\p "
}

44
act/15.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,44 @@
{
"1": "फिर कुछ लोग यहूदिया से आ कर भाइयों को यह तालीम देने लगे, ज़रूरी है कि आप का मूसा की शरी'अत के मुताबिक़ ख़तना किया जाए, वर्ना आप नजात नहीं पा सकेंगे।” ",
"2": "पस, जब पौलुस और बरनबास की उन से बहुत तकरार और बहस हुई तो कलीसिया ने ये ठहराया कि पौलुस और बरनबास और उन में से चन्द शख़्स इस मस्ले के लिए रसूलों और बुज़ुर्गों के पास यरूशलीम जाएँ।\n\\p ",
"3": "पस, कलीसिया ने उनको रवाना किया और वो ग़ैर क़ौमों को रुजू लाने का बयान करते हुए फ़ीनिके और सामरिया सूबे से गुज़रे और सब भाइयों को बहुत ख़ुश करते गए। ",
"4": "जब यरूशलीम में पहुँचे तो कलीसिया और रसूल और बुज़ुर्ग उन से ख़ुशी के साथ मिले। और उन्हों ने सब कुछ बयान किया जो “ख़ुदा “ने उनके ज़रिए किया था।\n\\p ",
"5": "मगर फ़रीसियों के फ़िर्के में से जो ईमान लाए थे, उन में से कुछ ने उठ कर कहा “कि उनका ख़तना कराना और उनको मूसा की शरी'अत पर अमल करने का हुक्म देना ज़रूरी है।” ",
"6": "पस, रसूल और बुज़ुर्ग इस बात पर ग़ौर करने के लिए जमा हुए।\n\\p ",
"7": "और बहुत बहस के बाद पतरस ने खड़े होकर उन से कहा कि\n\\p “ऐ भाइयों तुम जानते हो कि बहुत अर्सा हुआ जब “ख़ुदा “ने तुम लोगों में से मुझे चुना कि ग़ैर क़ौमें मेरी ज़बान से ख़ुशख़बरी का कलाम सुनकर ईमान लाएँ। ",
"8": "और “ख़ुदा “ने जो दिलों को जानता है उनको भी हमारी तरह रूह — उल — क़ुद्दूस दे कर उन की गवाही दी। ",
"9": "और ईमान के वसीले से उन के दिल पाक करके हम में और उन में कुछ फ़र्क़ न रख्खा।\n\\p ",
"10": "पस, अब तुम शागिर्दों की गर्दन पर ऐसा जुआ रख कर जिसको न हमारे बाप दादा उठा सकते थे, न हम “ख़ुदा “को क्यूँ आज़माते हो? ",
"11": "हालाँकि हम को यक़ीन है कि जिस तरह वो “ख़ुदावन्द “ईसा' के फ़ज़ल ही से नजात पाएँगे, उसी तरह हम भी पाएँगे।\n\\p ",
"12": "फिर सारी जमा'अत चुप रही और पौलुस और बरनबास का बयान सुनने लगी, कि “ख़ुदा “ने उनके ज़रिए ग़ैर क़ौमों में कैसे कैसे निशान और अजीब काम ज़हिर किए।\n\\p ",
"13": "जब वो ख़ामोश हुए तो या'क़ूब कहने लगा कि,\n\\p “ऐ भाइयों मेरी सुनो!” ",
"14": "शमा'ऊन ने बयान किया कि “ख़ुदा “ने पहले ग़ैर क़ौमों पर किस तरह तवज्जह की ताकि उन में से अपने नाम की एक उम्मत बना ले।\n\\p ",
"15": "और नबियों की बातें भी इस के मुताबिक़ हैं। चुनाँचे लिखा है कि।\n\\q ",
"16": "इन बातों के बाद मैं फिर आकर दाऊद के गिरे हुए खेमों को उठाऊँगा,\n\\q और उस के फ़टे टूटे की मरम्मत करके\n\\q उसे खड़ा करूँगा।\n\\q ",
"17": "ताकि बाक़ी आदमी या'नी सब क़ौमें जो मेरे नाम की कहलाती हैं ख़ुदावन्द को तलाश करें'\n\\q ",
"18": "ये वही “ख़ुदावन्द “फ़रमाता है जो दुनिया के शुरू से इन बातों की ख़बर देता आया है।\n\\p ",
"19": "पस, मेरा फ़ैसला ये है, कि जो ग़ैर क़ौमों में से ख़ुदा की तरफ़ रुजू होते हैं हम उन्हें तकलीफ़ न दें। ",
"20": "मगर उन को लिख भेजें कि बुतों की मकरूहात और हरामकारी और गला घोंटे हुए जानवरों और लहू से परहेज़ करें। ",
"21": "क्यूँकि पुराने ज़माने से हर शहर में मूसा की तौरेत का ऐलान करने वाले होते चले आए हैं:और वो हर सबत को इबादतख़ानों में सुनाई जाती हैं।\n\\p ",
"22": "इस पर रसूलों और बुज़ुर्गों ने सारी कलीसिया समेत मुनासिब जाना कि अपने में से चन्द शख़्स चुन कर पौलुस और बरनबास के साथ अन्ताकिया को भेजें, या'नी यहूदाह को जो बरसब्बा कहलाता है। और सीलास को ये शख़्स भाइयों में मुक़द्दम थे। ",
"23": "और उनके हाथ ये लिख भेजा कि “अन्ताकिया और सूरिया और किलकिया के रहने वाले भाइयों को जो ग़ैर क़ौमों में से हैं। रसूलों और बुज़ुर्ग भाइयों का सलाम पहूँचे।”\n\\p ",
"24": "चूँकि हम ने सुना है, कि कुछ ने हम में से जिनको हम ने हुक्म न दिया था, वहाँ जाकर तुम्हें अपनी बातों से घबरा दिया। और तुम्हारे दिलों को उलट दिया। ",
"25": "इसलिए हम ने एक दिल होकर मुनासिब जाना कि कुछ चुने हुए आदमियों को अपने अज़ीज़ों बरनबास और पौलुस के साथ तुम्हारे पास भेजें। ",
"26": "ये दोनों ऐसे आदमी हैं, जिन्होंने अपनी जानें हमारे “ख़ुदावन्द “ईसा' मसीह के नाम पर निसार कर रख्खी हैं।\n\\p ",
"27": "चुनाँचे हम ने यहूदाह और सीलास को भेजा है, वो यही बातें ज़बानी भी बयान करेंगे। ",
"28": "क्यूँकि रूह — उल — क़ुद्दूस ने और हम ने मुनासिब जाना कि इन ज़रूरी बातों के सिवा तुम पर और बोझ न डालें ",
"29": "कि तुम बुतों की क़ुर्बानियों के गोश्त से और लहू और गला घोंटे हुए जानवरों और हरामकारी से परहेज़ करो। अगर तुम इन चीज़ों से अपने आप को बचाए रख्खोगे, तो सलामत रहोगे, वस्सलामत।”\n\\p ",
"30": "पस, वो रुख़्सत होकर अन्ताकिया में पहुँचे और जमा'अत को इकट्ठा करके ख़त दे दिया। ",
"31": "वो पढ़ कर उसके तसल्ली बख़्श मज़्मून से ख़ुश हुए। ",
"32": "और यहूदाह और सीलास ने जो ख़ुद भी नबी थे, भाइयों को बहुत सी नसीहत करके मज़बूत कर दिया।\n\\p ",
"33": "वो चन्द रोज़ रह कर और भाइयों से सलामती की दुआ लेकर अपने भेजने वालों के पास रुख़्सत कर दिए गए। ",
"34": "[लेकिन सीलास को वहाँ ठहरना अच्छा लगा]। ",
"35": "मगर पौलुस और बरनबास अन्ताकिया ही में रहे:और बहुत से और लोगों के साथ “ख़ुदावन्द “का कलाम सिखाते और उस का ऐलान करते रहे।\n\\p ",
"36": "चन्द रोज़ बाद पौलुस ने बरनबास से कहा “कि जिन जिन शहरों में हम ने “ख़ुदा “का कलाम सुनाया था, आओ फिर उन में चलकर भाइयों को देखें कि कैसे हैं।” ",
"37": "और बरनबास की सलाह थी कि यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है। अपने साथ ले चलें। ",
"38": "मगर पौलुस ने ये मुनासिब न जाना, कि जो शख़्स पम्फ़ीलिया में किनारा करके उस काम के लिए उनके साथ न गया था; उस को हमराह ले चलें।\n\\p ",
"39": "पस, उन में ऐसी सख़्त तकरार हुई; कि एक दूसरे से जुदा हो गए। और बरनबास मरकुस को ले कर जहाज़ पर कुप्रुस को रवाना हुआ।\n\\p ",
"40": "मगर पौलुस ने सीलास को पसन्द किया, और भाइयों की तरफ़ से ख़ुदावन्द के फ़ज़ल के सुपुर्द हो कर रवाना किया। ",
"41": "और कलीसिया को मज़बूत करता हुआ सूरिया और किलकिया से गुज़रा।",
"front": "\\s यरुशलेम की शरी'अत\n\\p "
}

43
act/16.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,43 @@
{
"1": "फिर वो दिरबे और लुस्तरा में भी पहूँचा। तो देखो वहाँ तीमुथियुस नाम का एक शागिर्द था। उसकी माँ तो यहूदी थी जो ईमान ले आई थी, मगर उसका बाप यूनानी था। ",
"2": "वो लुस्तरा और इकुनियुम के भाइयों में नेक नाम था। ",
"3": "पौलुस ने चाहा कि ये मेरे साथ चले। पस, उसको लेकर उन यहूदियों की वजह से जो उस इलाक़े में थे, उसका ख़तना कर दिया क्यूँकि वो सब जानते थे, कि इसका बाप यूनानी है। \n\\p ",
"4": "और वो जिन जिन शहरों में से गुज़रते थे, वहाँ के लोगों को वो अहकाम अमल करने के लिए पहुँचाते जाते थे, जो यरूशलीम के रसूलों और बुज़ुर्गों ने जारी किए थे। ",
"5": "पस, कलीसियाएँ ईमान में मज़बूत और शुमार में रोज़— ब— रोज़ ज़्यादा होती गईं। \n\\p ",
"6": "और वो फ़रोगिया और ग़लतिया सूबे के इलाक़े में से गुज़रे, क्यूँकि रूह — उल — क़ुद्दूस ने उन्हें आसिया\\f + \\fr 16:6 \\fq आसिया \\ft आज के ज़माने में तुर्की इ नाम से जानते है \\f*\nमें कलाम सुनाने से मनह किया। ",
"7": "और उन्होंने मूसिया के क़रीब पहुँचकर बितूनिया सूबे में जाने की कोशिश की मगर ईसा' की रूह ने उन्हें जाने न दिया। ",
"8": "पस, वो मूसिया से गुज़र कर त्रोआस शहर में आए। \n\\p ",
"9": "और पौलुस ने रात को ख़्वाब में देखा कि एक मकिदुनी आदमी खड़ा हुआ, उस की मिन्नत करके कहता है कि पार उतर कर मकिदुनिया में आ, और हमारी मदद कर!” ",
"10": "उस का ख़्वाब देखते ही हम ने फ़ौरन मकिदुनिया में जाने का ईरादा किया, क्यूँकि हम इस से ये समझे कि “ख़ुदा “ने उन्हें ख़ुशख़बरी देने के लिए हम को बुलाया है। \n\\p ",
"11": "पस, त्रोआस शहर से जहाज़ पर रवाना होकर हम सीधे सुमत्राकि टापू में और दूसरे दिन नियापुलिस शहर में आए। ",
"12": "और वहाँ से फ़िलिप्पी शहर में पहुँचे, जो मकिदुनिया का सूबा में है और उस क़िस्मत का सद्र और रोमियों की बस्ती है और हम चन्द रोज़ उस शहर में रहे। ",
"13": "और सबत के दिन शहर के दरवाज़े के बाहर नदी के किनारे गए, जहाँ समझे कि दुआ करने की जगह होगी और बैठ कर उन औरतों से जो इकट्ठी हुई थीं, कलाम करने लगे। \n\\p ",
"14": "और थुवातीरा शहर की एक ख़ुदा परस्त औरत लुदिया नाम की, क़िरमिज़ी बेचने वाली भी सुनती थी, उसका दिल ख़ुदावन्द ने खोला ताकि पौलुस की बातों पर तवज्जुह करे। ",
"15": "और जब उस ने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया तो मिन्नत कर के कहा कि “अगर तुम मुझे ख़ुदावन्द की ईमानदार बन्दी समझते हो तो चल कर मेरे घर में रहो “पस, उसने हमें मजबूर किया। \n\\p ",
"16": "जब हम दुआ करने की जगह जा रहे थे, तो ऐसा हुआ कि हमें एक लौंडी मिली जिस में पोशीदा रूहें थी, वो ग़ैब गोई से अपने मालिकों के लिए बहुत कुछ कमाती थी। ",
"17": "वो पौलुस के, और हमारे पीछे आकर चिल्लाने लगी “कि ये आदमी “ख़ुदा “के बन्दे हैं जो तुम्हें नजात की राह बताते हैं।” ",
"18": "वो बहुत दिनों तक ऐसा ही करती रही। आख़िर पौलुस सख़्त रंजीदा हुआ और फिर कर उस रूह से कहा कि “मैं तुझे ईसा' मसीह के नाम से हुक्म देता हूँ “कि इस में से निकल जा!” वो उसी वक़्त निकल गई। \n\\p ",
"19": "जब उस के मालिकों ने देखा कि हमारी कमाई की उम्मीद जाती रही तो पौलुस और सीलास को पकड़कर हाकिमों के पास चौक में खींच ले गए। ",
"20": "और उन्हें फ़ौजदारी के हाकिमों के आगे ले जा कर कहा “कि ये आदमी जो यहूदी हैं हमारे शहर में बड़ी खलबली डालते हैं। ",
"21": "और “ऐसी रस्में बताते हैं, जिनको क़ुबूल करना और अमल में लाना हम रोमियों को पसन्द नहीं।” \n\\p ",
"22": "और आम लोग भी मुत्तफ़िक़ होकर उनकी मुख़ालिफ़त पर आमादा हुए, और फ़ौजदारी के हाकिमों ने उन के कपड़े फाड़कर उतार डाले और बेंत लगाने का हुक्म दिया ",
"23": "और बहुत से बेंत लगवाकर उन्हें क़ैद खाने में डाल दिया, और दरोग़ा को ताकीद की कि बड़ी होशियारी से उनकी निगहबानी करे। ",
"24": "उस ने ऐसा हुक्म पाकर उन्हें अन्दर के क़ैद खाने में डाल दिया, और उनके पाँव काठ में ठोंक दिए। \n\\p ",
"25": "आधी रात के क़रीब पौलुस और सीलास दुआ कर रहे और “ख़ुदा “की हम्द के गीत गा रहे थे, और क़ैदी सुन रहे थे। ",
"26": "कि यकायक बड़ा भुन्चाल आया, यहाँ तक कि क़ैद खाने की नींव हिल गई और उसी वक़्त सब दरवाज़े खुल गए और सब की बेड़ियाँ खुल पड़ीं। \n\\p ",
"27": "और दरोग़ा जाग उठा, और क़ैद खाने के दरवाज़े खुले देखकर समझा कि क़ैदी भाग गए, पस, तलवार खींचकर अपने आप को मार डालना चाहा। ",
"28": "लेकिन पौलुस ने बड़ी आवाज़ से पुकार कर कहा “अपने को नुक़्सान न पहुँचा! क्यूँकि हम सब मौजूद हैं।” \n\\p ",
"29": "वो चराग़ मँगवा कर अन्दर जा कूदा। और काँपता हुआ पौलुस और सीलास के आगे गिरा। \n\\p ",
"30": "और उन्हें बाहर ला कर कहा “ऐ साहिबो में क्या करूँ कि नजात पाऊँ?” ",
"31": "उन्होंने कहा, ख़ुदावन्द ईसा' पर ईमान ला “तो तू और तेरा घराना नजात पाएगा।” \n\\p ",
"32": "और उन्हों ने उस को और उस के सब घरवालों को “ख़ुदावन्द “का कलाम सुनाया। ",
"33": "और उस ने रात को उसी वक़्त उन्हें ले जा कर उनके ज़ख़्म धोए और उसी वक़्त अपने सब लोगों के साथ बपतिस्मा लिया। ",
"34": "और उन्हें ऊपर घर में ले जा कर दस्तरख़्वान बिछाया, और अपने सारे घराने समेत “ख़ुदा “पर ईमान ला कर बड़ी ख़ुशी की। \n\\p ",
"35": "जब दिन हुआ, तो फ़ौजदारी के हाकिमों ने हवालदारों के ज़रिए कहला भेजा कि उन आदमियों को छोड़ दे। ",
"36": "और दरोग़ा ने पौलुस को इस बात की ख़बर दी कि फ़ौजदारी के हाकिमों ने तुम्हारे छोड़ देने का हुक्म भेज दिया है “पस अब निकल कर सलामत चले जाओ।” \n\\p ",
"37": "मगर पौलुस ने उससे कहा, उन्होंने हम को जो रोमी\\f + \\fr 16:37 \\fq रोमी \\ft रोमी दौरे हुकूमत में वो लोग ओ रोमी नहीं थे मगर वहाँ रहते थे उन्हें भी शाहियात का शरफ़ हासिल था \\f*\nहैं क़ुसूर साबित किए बग़ैर “ऐलानिया पिटवाकर क़ैद में डाला। और अब हम को चुपके से निकालते हैं? ये नहीं हो सकता; बल्कि वो आप आकर हमें बाहर ले जाएँ।” ",
"38": "हवालदारों ने फ़ौजदारी के हाकिमों को इन बातों की ख़बर दी। जब उन्हों ने सुना कि ये रोमी हैं तो डर गए। ",
"39": "और आकर उन की मिन्नत की और बाहर ले जाकर दरख़्वास्त की कि शहर से चले जाएँ। \n\\p ",
"40": "पस वो क़ैद खाने से निकल कर लुदिया के यहाँ गए और भाइयों से मिलकर उन्हें तसल्ली दी। और रवाना हुए। ",
"front": "\\s पौलुस का दुसरी तबलिघी सफ़र\n\\p "
}

37
act/17.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,37 @@
{
"1": "फिर वो अम्फ़िपुलिस और अपुल्लोनिया होकर थिस्सलुनीकियों शहर में आए, जहाँ यहूदियों का इबादतख़ाना था। ",
"2": "और पौलुस अपने दस्तूर के मुवाफ़िक़ उनके पास गया, और तीन सबतों को किताब — ए— मुक़द्दस से उनके साथ बहस की। \n\\p ",
"3": "और उनके मतलब खोल खोलकर दलीलें पेश करता था, कि मसीह को दुःख उठाना और मुर्दों में से जी उठना ज़रूर था और ईसा' जिसकी मैं तुम्हें ख़बर देता हूँ मसीह है।” ",
"4": "उनमें से कुछ ने मान लिया और पौलुस और सीलास के शरीक हुए और “ख़ुदा “परस्त यूनानियों की एक बड़ी जमा'अत और बहुत सी शरीफ़ औरतें\\f + \\fr 17:4 \\fq शरीफ़ औरतें \\ft ये हाकिमों की बीवियाँ थी \\f*\nभी उन की शरीक हुईं। \n\\p ",
"5": "मगर यहूदियों ने हसद में आकर बाज़ारी आदमियों में से कई बदमाशों को अपने साथ लिया और भीड़ लगा कर शहर में फ़साद करने लगे। और यासोन का घर घेरकर उन्हें लोगों के सामने लाना चाहा। ",
"6": "और जब उन्हें न पाया तो यासोन और कई और भाइयों को शहर के हाकिमों के पास चिल्लाते हुए खींच ले गए “कि वो शख़्स जिन्हों ने जहान को बा'ग़ी कर दिया, यहाँ भी आए हैं। \n\\p ",
"7": "और यासोन ने उन्हें अपने यहाँ उतारा है और ये सब के सब क़ैसर के अहकाम की मुख़ालिफ़त करके कहते हैं, कि बादशाह तो और ही है या'नी ईसा'” ",
"8": "ये सुन कर आम लोग और शहर के हाकिम घबरा गए। ",
"9": "और उन्हों ने यासोन और बाक़ियों की ज़मानत लेकर उन्हें छोड़ दिया। \n\\p ",
"10": "लेकिन भाइयों ने फ़ौरन रातों रात पौलुस और सीलास को बिरिया क़स्बा में भेज दिया, वो वहाँ पहुँचकर यहूदियों के इबादतख़ाने में गए। ",
"11": "ये लोग थिस्सलुनीकियों के यहूदियों से नेक ज़ात थे, क्यूँकि उन्हों ने बड़े शौक़ से कलाम को क़ुबूल किया और रोज़— ब— रोज़ किताब “ऐ मुक़द्दस में तहक़ीक़ करते थे, कि आया ये बातें इस तरह हैं? ",
"12": "पस, उन में से बहुत सारे ईमान लाए और यूनानियों में से भी बहुत सी 'इज़्ज़तदार 'औरतें और मर्द ईमान लाए। \n\\p ",
"13": "जब थिस्सलुनीकियों के यहूदियों को मा'लूम हुआ कि पौलुस बिरिया में भी “ख़ुदा “का कलाम सुनाता है, तो वहाँ भी जाकर लोगों को उभारा और उन में खलबली डाली। ",
"14": "उस वक़्त भाइयों ने फ़ौरन पौलुस को रवाना किया कि समुन्दर के किनारे तक चला जाए, लेकिन सीलास और तीमुथियुस वहीं रहे। ",
"15": "और पौलुस के रहबर उसे अथेने तक ले गए। और सीलास और तीमुथियुस के लिए ये हुक्म लेकर रवाना हुए। कि जहाँ तक हो सके जल्द मेरे पास आओ। \n\\p ",
"16": "जब पौलुस अथेने में उन की राह देख रहा था, तो शहर को बुतों से भरा हुआ देख कर उस का जी जल गया। ",
"17": "इस लिए वो इबादतख़ाने में यहूदियों और “ख़ुदा “परस्तों से और चौक में जो मिलते थे, उन से रोज़ बहस किया करता था। \n\\p ",
"18": "और चन्द इपकूरी और स्तोइकी फ़ैलसूफ़ उसका मुक़ाबिला करने लगे कुछ ने कहा, ये बकवासी क्या कहना चाहता है?” औरों ने कहा “ये ग़ैर मा'बूदों की ख़बर देने वाला मा'लूम होता है इस लिए कि वो ईसा' और क़यामत की ख़ुशख़बरी देता है”\n\\p ",
"19": "पस, वो उसे अपने साथ अरियुपगुस जगह पर ले गए और कहा, आया हमको मा'लूम हो सकता है। कि ये नई ता'लीम जो तू देता है। क्या है?” ",
"20": "क्यूँकि तू हमें अनोखी बातें सुनाता है पस, हम जानना चाहते हैं। कि इन से ग़रज़ क्या है, ",
"21": "(इस लिए कि सब अथेनवी और परदेसी जो वहाँ मुक़ीम थे, अपनी फ़ुरसत का वक़्त नई नई बातें करने सुनने के सिवा और किसी काम में सर्फ़ न करते थे)\n\\p ",
"22": "पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़े हो कर कहा। \n\\p “ऐ अथेने वालो, मैं देखता हूँ कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े मानने वाले हो। ",
"23": "चुनाँचे मैंने सैर करते और तुम्हारे मा'बूदों पर ग़ौर करते वक़्त एक ऐसी क़ुर्बानगाह भी पाई, जिस पर लिखा था, ना मा'लूम “ख़ुदा “के लिए पस, जिसको तुम बग़ैर मा'लूम किए पूजते हो, मैं तुम को उसी की ख़बर देता हूँ। \n\\p ",
"24": "जिस “ख़ुदा “ने दुनिया और उस की सब चीज़ों को पैदा किया वो आसमान और ज़मीन का मालिक होकर हाथ के बनाए हुए मक़दिस में नहीं रहता। ",
"25": "न किसी चीज़ का मुहताज होकर आदमियों के हाथों से ख़िदमत लेता है। क्यूँकि वो तो ख़ुद सबको ज़िन्दगी और साँस और सब कुछ देता है। \n\\p ",
"26": "और उस ने एक ही नस्ल से आदमियों की हर एक क़ौम तमाम रूए ज़मीन पर रहने के लिए पैदा की और उन की 'तहदाद और रहने की हदें मुक़र्रर कीं। ",
"27": "ताकि “ख़ुदा “को ढूँडें, शायद कि टटोलकर उसे पाएँ, हर वक़्त वो हम में से किसी से दूर नहीं। \n\\p ",
"28": "क्यूँकि उसी में हम जीते और चलते फिरते और मौजूद हैं, जैसा कि तुम्हारे शा'यरों में से भी कुछ ने कहा है। \n\\p हम तो उस की नस्ल भी हैं।’ ",
"29": "पस, ख़ुदा “की नस्ल होकर हम को ये ख़याल करना मुनासिब नहीं कि ज़ात— ए— इलाही उस सोने या रुपऐ या पत्थर की तरह है जो आदमियों के हुनर और ईजाद से गढ़े गए हों। \n\\p ",
"30": "पस, ख़ुदा जिहालत के वक़्तों से चश्म पोशी करके अब सब आदमियों को हर जगह हुक्म देता है। कि तौबा करें। ",
"31": "क्यूँकि उस ने एक दिन ठहराया है, जिस में वो रास्ती से दुनिया की अदालत उस आदमी\\f + \\fr 17:31 \\fq आदमी \\ft (ईसा) जो इंसान बना \\f*\nके ज़रिए करेगा, जिसे उस ने मुक़र्रर किया है और उसे मुर्दों में से जिला कर ये बात सब पर साबित कर दी है।” \n\\p ",
"32": "जब उन्हों ने मुर्दों की क़यामत का ज़िक्र सुना तो कुछ ठठ्ठा मारने लगे, और कुछ ने कहा कि ये बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे।” ",
"33": "इसी हालत में पौलुस उनके बीच में से निकल गया ",
"34": "मगर कुछ आदमी उसके साथ मिल गए और ईमान ले आए, उन में दियुनुसियुस, अरियुपगुस, का एक हाकिम और दमरिस नाम की एक औरत थी, और कुछ और भी उन के साथ थे। ",
"front": "\\s पौलुस का थिस्सलुनीकियों के शहर में तलकीन करना\n\\p "
}

31
act/18.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,31 @@
{
"1": "इन बातों के बाद पौलुस अथेने से रवाना हो कर कुरिन्थुस शहर में आया। ",
"2": "और वहाँ उसको अक्विला नाम का एक यहूदी मिला जो पुन्तुस शहर की पैदाइश था, और अपनी बीवी प्रिस्किल्ला समेत इतालिया से नया नया आया था; क्यूँकि क्लोदियुस ने हुक्म दिया था, कि सब यहूदी रोमा से निकल जाएँ। पस, वो उसके पास गया। \\f + \\fr 18:2 \\ft ये वाकया ईसा के सलीबी मौत के बाद 49 में हुआ \\f* ",
"3": "और चूँकि उनका हम पेशा था, उन के साथ रहा और वो काम करने लगे; और उन का पेशा ख़ेमा दोज़ी था। \n\\p ",
"4": "और वो हर सबत को इबादतख़ाने में बहस करता और यहूदियों और यूनानियों को तैयार करता था। ",
"5": "और जब सीलास और तीमुथियुस मकिदुनिया से आए, तो पौलुस कलाम सुनाने के जोश से मजबूर हो कर यहूदियों के आगे गवाही दे रहा था कि ईसा' ही मसीह है। ",
"6": "जब लोग मुख़ालिफ़त करने और कुफ़्र बकने लगे, तो उस ने अपने कपड़े झाड़ कर उन से कहा, तुम्हारा ख़ून तुम्हारी गर्दन पर मैं पाक हूँ, अब से ग़ैर क़ौमों के पास जाऊँगा।” \n\\p ",
"7": "पस, वहाँ से चला गया, और तितुस युस्तुस नाम के एक “ख़ुदा “परस्त के घर चला गया, जो इबादतख़ाने से मिला हुआ था। \n\\p ",
"8": "और इबादतख़ाने का सरदार क्रिसपुस अपने तमाम घराने समेत “ख़ुदावन्द “पर ईमान लाया; और बहुत से कुरिन्थी सुनकर ईमान लाए, और बपतिस्मा लिया। ",
"9": "और ख़ुदावन्द ने रात को रोया में पौलुस से कहा, ख़ौफ़ न कर, बल्कि कहे जा और चुप न रह। ",
"10": "इसलिए कि मैं तेरे साथ हूँ, और कोई शख़्स तुझ पर हमला कर के तकलीफ़ न पहुँचा सकेगा; क्यूँकि इस शहर में मेरे बहुत से लोग हैं।” ",
"11": "पस, वो डेढ़ बरस उन में रहकर ख़ुदा का कलाम सिखाता रहा। \n\\p ",
"12": "जब गल्लियो अख़िया सूबे का सुबेदार था, यहूदी एका करके पौलुस पर चढ़ आए, और उसे अदालत में ले जा कर। ",
"13": "कहने लगे “कि ये शख़्स लोगों को तरग़ीब देता है, कि शरी'अत के बरख़िलाफ़ ख़ुदा की इबादत करें।” \n\\p ",
"14": "जब पौलुस ने बोलना चाहा, तो गल्लियो ने यहूदियों से कहा, ऐ यहूदियो, अगर कुछ ज़ुल्म या बड़ी शरारत की बात होती तो वाजिब था, कि मैं सब्र करके तुम्हारी सुनता। ",
"15": "लेकिन जब ये ऐसे सवाल हैं जो लफ़्ज़ों और नामों और ख़ास तुम्हारी शरी'अत से तअ'ल्लुक रखते हैं तो तुम ही जानो। मैं ऐसी बातों का मुन्सिफ़ बनना नहीं चाहता।” \n\\p ",
"16": "और उस ने उन्हें अदालत से निकला दिया। ",
"17": "फिर सब लोगों ने इबादतख़ाने के सरदार सोस्थिनेस को पकड़ कर अदालत के सामने मारा, मगर गल्लियो ने इन बातों की कुछ परवाह न की। \n\\p ",
"18": "पस, पौलुस बहुत दिन वहाँ रहकर भाइयों से रुख़्सत हुआ; चूँकि उस ने मन्नत मानी थी, इसलिए किन्ख़रिया शहर में सिर मुंडवाया और जहाज़ पर सूरिया सूबे को रवाना हुआ; और प्रिस्किल्ला और अक्विला उस के साथ थे। ",
"19": "और इफ़िसुस में पहुँच कर उस ने उन्हें वहाँ छोड़ा और आप इबादतख़ाने में जाकर यहूदियों से बहस करने लगा। \n\\p ",
"20": "जब उन्होंने उस से दरख़्वास्त की, और कुछ अरसे हमारे साथ रह “तो उस ने मंज़ूर न किया। ",
"21": "बल्कि ये कह कर उन से रुख़्सत हुआ “अगर “ख़ुदा “ने चाहा तो तुम्हारे पास फिर आऊँगा और इफ़िसुस से जहाज़ पर रवाना हुआ। \n\\p ",
"22": "फिर क़ैसरिया में उतर कर यरूशलीम को गया, और कलीसिया को सलाम करके अन्ताकिया में आया। \n\\p ",
"23": "और चन्द रोज़ रह कर वहाँ से रवाना हुआ, और तरतीब वार ग़लतिया सूबे के इलाक़े और फ्रूगिया सूबे से गुज़रता हुआ सब शागिर्दों को मज़बूत करता गया। \n\\p ",
"24": "फिर अपुल्लोस नाम के एक यहूदी इसकन्दरिया शहर की पैदाइश ख़ुशतक़रीर किताब — ए — मुक़द्दस का माहिर इफ़िसुस में पहुँचा। ",
"25": "इस शख़्स ने “ख़ुदावन्द “की राह की ता'लीम पाई थी, और रूहानी जोश से कलाम करता और ईसा' की वजह से सहीह सहीह ता'लीम देता था। मगर सिर्फ़ यूहन्ना के बपतिस्मे से वाक़िफ़ था। ",
"26": "वो इबादतख़ाने में दिलेरी से बोलने लगा, मगर प्रिस्किल्ला और अक्विला उसकी बातें सुनकर उसे अपने घर ले गए। और उसको ख़ुदा की राह और अच्छी तरह से बताई। \n\\p ",
"27": "जब उस ने इरादा किया कि पार उतर कर अख़िया को जाए तो भाइयों ने उसकी हिम्मत बढ़ाकर शागिर्दों को लिखा कि उससे अच्छी तरह मिलना। उस ने वहाँ पहुँचकर उन लोगों की बड़ी मदद की जो फ़ज़ल की वजह से ईमान लाए थे। ",
"28": "क्यूँकि वो किताब — ए — मुक़द्दस से ईसा' का मसीह होना साबित करके बड़े ज़ोर शोर से यहूदियों को ऐलानिया क़ायल करता रहा। ",
"front": "\\s पौलुस का कुरिन्थ में प्रिस्किल्ला और अक्विल्ला से मिलना\n\\p "
}

44
act/19.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,44 @@
{
"1": "और जब अपुल्लोस कुरिन्थुस में था, तो ऐसा हुआ कि पौलुस ऊपर के पहाड़ी मुल्कों से गुज़र कर इफ़िसुस में आया और कई शागिर्दों को देखकर। ",
"2": "उन से कहा “क्या तुमने ईमान लाते वक़्त रूह — उल — क़ुद्दूस पाया?” उन्हों ने उस से कहा “कि हम ने तो सुना नहीं। कि रूह — उल — क़ुद्दूस नाज़िल हुआ है।” \n\\p ",
"3": "उस ने कहा “तुम ने किस का बपतिस्मा लिया?” उन्हों ने कहा “यूहन्ना का बपतिस्मा।” ",
"4": "पौलुस ने कहा, यूहन्ना ने लोगों को ये कह कर तौबा का बपतिस्मा दिया‘कि जो मेरे पीछे आने वाला है’ उस पर या'नी ईसा' पर ईमान लाना।” \n\\p ",
"5": "उन्हों ने ये सुनकर “ख़ुदावन्द “ईसा' के नाम का बपतिस्मा लिया। ",
"6": "जब पौलुस ने अपने हाथ उन पर रखे तो रूह — उल — क़ुद्दूस उन पर नाज़िल हुआ, और वह तरह तरह की ज़बाने बोलने और नबुव्वत करने लगे। ",
"7": "और वो सब तक़रीबन बारह आदमी थे। \n\\p ",
"8": "फिर वो इबादतख़ाने में जाकर तीन महीने तक दिलेरी से बोलता और “ख़ुदा “की बादशाही के बारे में बहस करता और लोगों को क़ायल करता रहा। ",
"9": "लेकिन जब कुछ सख़्त दिल और नाफ़रमान हो गए। बल्कि लोगों के सामने इस तरीक़े को बुरा कहने लगे, तो उस ने उन से किनारा करके शागिर्दों को अलग कर लिया, और हर रोज़ तुरन्नुस के मदरसे में बहस किया करता था। ",
"10": "दो बरस तक यही होता रहा, यहाँ तक कि आसिया के रहने वालों क्या यहूदी क्या यूनानी सब ने “ख़ुदावन्द “का कलाम सुना। \n\\p ",
"11": "और “ख़ुदा “पौलुस के हाथों से ख़ास ख़ास मोजिज़े दिखाता था। ",
"12": "यहाँ तक कि रूमाल और पटके उसके बदन से छुआ कर बीमारों पर डाले जाते थे, और उन की बीमारियाँ जाती रहती थीं, और बदरूहें उन में से निकल जाती थीं। \n\\p ",
"13": "मगर कुछ यहूदियों ने जो झाड़ फूँक करते फिरते थे। ये इख़्तियार किया कि जिन में बदरूहें हों “उन पर “ख़ुदावन्द “ईसा' का नाम ये कह कर फूँकें। कि जिस ईसा' की पौलुस ऐलान करता है, मैं तुम को उसकी क़सम देता हूँ” ",
"14": "और सिकवा, यहूदी सरदार काहिन, के सात बेटे ऐसा किया करते थे। \n\\p ",
"15": "बदरूह ने जवाब में उन से कहा, ईसा' को तो मै जानती हूँ, और पौलुस से भी वाक़िफ़ हूँ “मगर तुम कौन हो?” ",
"16": "और वो शख़्स जिस में बदरूह थी, कूद कर उन पर जा पड़ा और दोनों पर ग़ालिब आकर ऐसी ज़्यादती की कि वो नंगे और ज़ख़्मी होकर उस घर से निकल भागे। ",
"17": "और ये बात इफ़िसुस के सब रहने वाले यहूदियों और यूनानियों को मा'लूम हो गई। पस, सब पर ख़ौफ़ छा गया, और “ख़ुदावन्द “ईसा' के नाम की बड़ाई हुई। \n\\p ",
"18": "और जो ईमान लाए थे, उन में से बहुतों ने आकर अपने अपने कामों का इक़रार और इज़हार किया। ",
"19": "और बहुत से जादूगरों ने अपनी अपनी किताबें इकट्ठी करके सब लोगों के सामने जला दीं, जब उन की क़ीमत का हिसाब हुआ तो पचास हज़ार रुपऐ की निकली। ",
"20": "इसी तरह “ख़ुदा “का कलाम ज़ोर पकड़ कर फैलता और ग़ालिब होता गया। \n\\p ",
"21": "जब ये हो चुका तो पौलुस ने पाक रूह में हिम्मत पाई कि मकिदुनिया और अख़िया से हो कर यरूशलीम को जाऊँगा। और कहा, वहाँ जाने के बाद मुझे रोमा भी देखना ज़रूर है।” \n\\p ",
"22": "पस, अपने ख़िदमतगुज़ारों में से दो शख़्स या'नी तीमुथियुस और इरास्तुस को मकिदुनिया में भेजकर आप कुछ अर्सा, आसिया में रहा। \n\\p ",
"23": "उस वक़्त इस तरीक़े की वजह से बड़ा फ़साद हुआ। ",
"24": "क्यूँकि देमेत्रियुस नाम एक सुनार था, जो अरतमिस कि रूपहले मन्दिर बनवा कर उस पेशेवालों को बहुत काम दिलवा देता था। ",
"25": "उस ने उन को और उनके मुता'ल्लिक़ और पेशेवालों को जमा कर के कहा, ऐ लोगों! तुम जानते हो कि हमारी आसूदगी इसी काम की बदौलत है। ",
"26": "तुम देखते और सुनते हो कि सिर्फ़ इफ़िसुस ही में नहीं बल्कि तक़रीबन तमाम आसिया में इस पौलुस ने बहुत से लोगों को ये कह कर समझा बुझा कर और गुमराह कर दिया है, कि हाथ के बनाए हुए हैं, ख़ुदा “नहीं हैं। ",
"27": "पस, सिर्फ़ यही ख़तरा नहीं कि हमारा पेशा बेक़द्र हो जाएगा, बल्कि बड़ी देवी अरतमिस का मन्दिर भी नाचीज़ हो जाएगा, और जिसे तमाम आसिया और सारी दुनिया पूजती है, ख़ुद उसकी अज़मत भी जाती रहेगी।” \n\\p ",
"28": "वो ये सुन कर क़हर से भर गए और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगे, कि इफ़िसियों की अरतमिस बड़ी है!” ",
"29": "और तमाम शहर में हलचल पड़ गई, और लोगों ने गयुस और अरिस्तरख़ुस मकिदुनिया वालों को जो पौलुस के हम— सफ़र थे, पकड़ लिया और एक दिल हो कर तमाशा गाह को दौड़े। \n\\p ",
"30": "जब पौलुस ने मज्मे में जाना चाहा तो शागिर्दों ने जाने न दिया। ",
"31": "और आसिया के हाकिमों में से उस के कुछ दोस्तों ने आदमी भेजकर उसकी मिन्नत की कि तमाशा गाह में जाने की हिम्मत न करना। ",
"32": "और कुछ चिल्लाए और मजलिस दरहम बरहम हो गई थी, और अक्सर लोगों को ये भी ख़बर न थी, कि हम किस लिए इकटठे हुए हैं। \n\\p ",
"33": "फिर उन्हों ने इस्कन्दर को जिसे यहूदी पेश करते थे, भीड़ में से निकाल कर आगे कर दिया, और इस्कन्दर ने हाथ से इशारा करके मज्मे कि सामने उज़्र बयान करना चाहा। \n\\p ",
"34": "जब उन्हें मा'लूम हुआ कि ये यहूदी है, तो सब हम आवाज़ होकर कोई दो घंटे तक चिल्लाते रहे “कि इफ़िसियों की अरतमिस बड़ी है!” ",
"35": "फिर शहर के मुहर्रिर ने लोगों को ठन्डा करके कहा, ऐ इफ़िसियो! कौन सा आदमी नहीं जानता कि इफ़िसियों का शहर बड़ी देवी अरतमिस के मन्दिर और उस मूरत का मुहाफ़िज़ है, जो ज़्यूस की तरफ़ से गिरी थी। ",
"36": "पस, जब कोई इन बातों के ख़िलाफ़ नहीं कह सकता तो वाजिब है कि तुम इत्मीनान से रहो, और बे सोचे कुछ न करो। ",
"37": "क्यूँकि ये लोग जिन को तुम यहाँ लाए हो न मन्दिर को लूटने वाले हैं, न हमारी देवी की बदगोई करनेवाले। \n\\p ",
"38": "पस, अगर देमेत्रियुस और उसके हम पेशा किसी पर दा'वा रखते हों तो अदालत खुली है, और सुबेदार मौजूद हैं, एक दूसरे पर नालिश करें। ",
"39": "और अगर तुम किसी और काम की तहक़ीक़ात चाहते हो तो बाज़ाब्ता मजलिस में फ़ैसला होगा। ",
"40": "क्यूँकि आज के बवाल की वजह से हमें अपने ऊपर नालिश होने का अन्देशा है, इसलिए कि इसकी कोई वजह नहीं है, और इस सूरत में हम इस हँगामे की जवाबदेही न कर सकेंगे।” ",
"41": "ये कह कर उसने मजलिस को बरख़ास्त किया। ",
"front": "\\s पौलुस का तिसरा सफ़र\n\\p "
}

50
act/2.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,50 @@
{
"1": "जब ईद— ए— पन्तिकुस्त\\f + \\fr 2:1 \\fq ईद — ए — पन्तिकुस्त \\ft ईद फ़सह के पचास इन बाद पेन्तिकुस्त का दिन है \\f*\nका दिन आया। तो वो सब एक जगह जमा थे। ",
"2": "एकाएक आस्मान से ऐसी आवाज़ आई जैसे ज़ोर की आँधी का सन्नाटा होता है। और उस से सारा घर जहां वो बैठे थे गूँज गया। ",
"3": "और उन्हें आग के शो'ले की सी फ़टती हुई ज़बाने दिखाई दीं और उन में से हर एक पर आ ठहरीं। ",
"4": "और वो सब रूह — उल— क़ुद्दूस से भर गए और ग़ैर ज़बान बोलने लगे, जिस तरह रूह ने उन्हें बोलने की ताक़त बख़्शी।\n\\p ",
"5": "और हर क़ौम में से जो आसमान के नीचे ख़ुदा तरस यहूदी यरूशलीम में रहते थे। ",
"6": "जब यह आवाज़ आई तो भीड़ लग गई और लोग दंग हो गए, क्यूँकि हर एक को यही सुनाई देता था कि ये मेरी ही बोली बोल रहे हैं। ",
"7": "और सब हैरान और ता'ज्जुब हो कर कहने लगे, देखो ये बोलने वाले क्या सब गलीली नहीं?\n\\p ",
"8": "फिर क्यूँकर हम में से हर एक कैसे अपने ही वतन की बोली सुनता है। ",
"9": "हालाँकि हम हैं:पार्थि, मादि, ऐलामी, मसोपोतामिया, यहूदिया, और कप्पदुकिया, और पुन्तुस, और आसिया, ",
"10": "और फ़रूगिया, और पम्फ़ीलिया, और मिस्र और लिबुवा, के इलाक़े के रहने वाले हैं, जो कुरेने की तरफ़ है और रोमी मुसाफ़िर",
"11": "चाहे यहूदी चाहे उनके मुरीद, करेती और 'अरब हैं। मगर अपनी अपनी ज़बान में उन से ख़ुदा के बड़े बड़े कामों का बयान सुनते हैं।”\n\\p ",
"12": "और सब हैरान हुए और घबराकर एक दूसरे से कहने लगे, ये क्या हुआ चाहता है?” ",
"13": "और कुछ ने ठठ्ठा मार कर कहा, ये तो ताज़ा मय के नशे में हैं।”\n\\p ",
"14": "लेकिन पतरस उन ग्यारह रसूलों के साथ खड़ा हूआ “और अपनी आवाज़ बुलन्द करके लोगों से कहा कि “ऐ यहूदियो और ऐ यरूशलीम के सब रहने वालो ये जान लो, और कान लगा कर मेरी बातें सुनो! ",
"15": "कि जैसा तुम समझते हो ये नशे में नहीं। क्यूँकि अभी तो सुबह के नौ ही बजे है। ",
"16": "बल्कि ये वो बात है जो योएल नबी के ज़रिए कही गई है कि,\n\\q ",
"17": "ख़ुदा फ़रमाता है, कि आख़िरी दिनों में ऐसा होगा कि\n\\q मैं अपनी रूह में से हर आदमियों पर डालूँगा और\n\\q तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियाँ नुबुव्वत करें गी और\n\\q तुम्हारे जवान रोया\n\\q और तुम्हारे बुड्ढे ख़्वाब देखेंगे।\n\\q ",
"18": "बल्कि मै अपने बन्दों पर और अपनी बन्दियों पर भी उन दिनों में\n\\q अपने रूह में से डालूँगा और वह नुबुव्वत करेंगी।\n\\q ",
"19": "और मैं ऊपर आस्मान पर 'अजीब काम\n\\q और नीचे ज़मीन पर निशानियां या'नी\n\\q ख़ून और आग और धुएँ का बादल दिखाऊँगा।\n\\q ",
"20": "सूरज तारीक\n\\q और, चाँद ख़ून हो जाएगा पहले इससे कि\n\\q ख़ुदावन्द का अज़ीम और जलील दिन आए।\n\\q ",
"21": "और यूँ होगा कि जो कोई ख़ुदावन्द का नाम लेगा, नजात पाएगा।\n\\p ",
"22": "ऐ इस्राईलियों! ये बातें सुनो ईसा' नासरी एक शख़्स था जिसका ख़ुदा की तरफ़ से होना तुम पर उन मोजिज़ों और 'अजीब कामों और निशानों से साबित हुआ; जो ख़ुदा ने उसके ज़रिए तुम में दिखाए। चुनाँचे तुम आप ही जानते हो। ",
"23": "जब वो ख़ुदा के मुक़र्ररा इन्तिज़ाम और इल्में साबिक़ के मुवाफ़िक़ पकड़वाया गया तो तुम ने बेशरा लोगों के हाथ से उसे मस्लूब करवा कर मार डाला। ",
"24": "लेकिन ख़ुदा ने मौत के बंद खोल कर उसे जिलाया क्यूँकि मुम्किन ना था कि वो उसके क़ब्ज़े में रहता।\n\\p ",
"25": "क्यूँकि दाऊद उसके हक़ में कहता है। कि\n\\q मैं ख़ुदावन्द को हमेशा अपने सामने देखता रहा;\n\\q क्यूँकि वो मेरी दहनी तरफ़ है ताकि मुझे जुम्बिश ना हो।\n\\q ",
"26": "इसी वजह से मेरा दिल ख़ुश हुआ; और मेरी ज़बान शाद,\n\\q बल्कि मेरा जिस्म भी उम्मीद में बसा रहेगा।\n\\q ",
"27": "इसलिए कि तू मेरी जान को 'आलम — ए — अर्वाह में ना छोड़ेगा,\n\\q और ना अपने पाक के सड़ने की नौबत पहुँचने देगा।\n\\q ",
"28": "तू ने मुझे ज़िन्दगी की राहें बताईं\n\\q तू मुझे अपने दीदार के ज़रिए ख़ुशी से भर देगा।\n\\p ",
"29": "ऐ भाइयों! मैं क़ौम के बुज़ुर्ग, दाऊद के हक़ में तुम से दिलेरी के साथ कह सकता हूँ कि वो मरा और दफ़्न भी हुआ; और उसकी क़ब्र आज तक हम में मौजूद है। ",
"30": "पस नबी होकर और ये जान कर कि ख़ुदा ने मुझ से क़सम खाई है कि तेरी नस्ल से एक शख़्स को तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा। ",
"31": "उसने नबुव्वत के तौर पर मसीह के जी उठने का ज़िक्र किया कि ना वो' आलम' ए' अर्वाह में छोड़ेगा, ना उसके जिस्म के सड़ने की नौबत पहुँचेगी।\n\\p ",
"32": "इसी ईसा' को ख़ुदा ने जिलाया; जिसके हम सब गवाह हैं। ",
"33": "पस ख़ुदा के दहने हाथ से सर बलन्द होकर, और बाप से वो रूह — उल — क़ुद्‍दुस हासिल करके जिसका वा'दा किया गया था, उसने ये नाज़िल किया जो तुम देखते और सुनते हो।\n\\p ",
"34": "क्यूँकी दाऊद बादशाह तो आस्मान पर नहीं चढ़ा, लेकिन वो ख़ुद कहता है,\n\\q कि ख़ुदावन्द ने मेरे ख़ुदा से कहा, मेरी दहनी तरफ़ बैठ।\n\\q ",
"35": "जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँओ तले की चौकी न कर दूँ।’\n\\m ",
"36": "पस इस्राईल का सारा घराना यक़ीन जान ले कि ख़ुदा ने उसी ईसा' को जिसे तुम ने मस्लूब किया ख़ुदावन्द भी किया और मसीह भी।”\n\\p ",
"37": "जब उन्हों ने ये सुना तो उनके दिलों पर चोट लगी, और पतरस और बाक़ी रसूलों से कहा, ऐ भाइयों हम क्या करें?” ",
"38": "पतरस ने उन से कहा, तौबा करो और तुम में से हर एक अपने गुनाहों की मु'आफ़ी के लिए ईसा' मसीह के नाम पर बपतिस्मा ले तो तुम रूह — उल — क़ुद्दूस इनाम में पाओ गे। ",
"39": "इसलिए कि ये वा'दा तुम और तुम्हारी औलाद और उन सब दूर के लोगों से भी है; जिनको ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा अपने पास बुलाएगा।”\n\\p ",
"40": "उसने और बहुत सी बातें जता जता कर उन्हें ये नसीहत की, कि अपने आपको इस टेढ़ी क़ौम से बचाओ। ",
"41": "पस जिन लोगों ने उसका कलाम क़ुबूल किया, उन्होंने बपतिस्मा लिया और उसी रोज़ तीन हज़ार आदमियों के क़रीब उन में मिल गए।\n\\p ",
"42": "और ये रसूलों से तालीम पाने और रिफ़ाक़त रखने में, और रोटी तोड़ने और दुआ करने में मशग़ूल रहे।\n\\p ",
"43": "और हर शख़्स पर ख़ौफ़ छा गया और बहुत से 'अजीब काम और निशान रसूलों के ज़रिए से ज़ाहिर होते थे। ",
"44": "और जो ईमान लाए थे वो सब एक जगह रहते थे और सब चीज़ों में शरीक थे। ",
"45": "और अपना माल — ओर अस्बाब बेच बेच कर हर एक की ज़रुरत के मुवाफ़िक़ सब को बाँट दिया करते थे।\n\\p ",
"46": "और हर रोज़ एक दिल होकर हैकल में जमा हुआ करते थे, और घरों में रोटी तोड़कर ख़ुशी और सादा दिली से खाना खाया करते थे। ",
"47": "और ख़ुदा की हम्द करते और सब लोगों को अज़ीज़ थे; और जो नजात पाते थे उनको ख़ुदावन्द हर रोज़ जमाअत में मिला देता था।",
"front": "\\s पाक रूह का आना\n\\p "
}

41
act/20.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,41 @@
{
"1": "जब बवाल कम हो गया तो पौलुस ने ईमानदारों को बुलवा कर नसीहत की, और उन से रुख़्सत हो कर मकिदुनिया को रवाना हुआ। ",
"2": "और उस इलाक़े से गुज़र कर और उन्हें बहुत नसीहत करके यूनान में आया। ",
"3": "जब तीन महीने रह कर सूरिया की तरफ़ जहाज़ पर रवाना होने को था, तो यहूदियों ने उस के बरख़िलाफ़ साज़िश की, फिर उसकी ये सलाह हुई कि मकिदुनिया होकर वापस जाए। \n\\p ",
"4": "और पुरुस का बेटा सोपत्रुस जो बिरिया कसबे का था, और थिस्सलुनीकियों में से अरिस्तरख़ुस और सिकुन्दुस और गयुस जो दिरबे शहर का था, और तीमुथियुस और आसिया का तुख़िकुस और त्रुफ़िमुस आसिया तक उसके साथ गए। ",
"5": "ये आगे जा कर त्रोआस में हमारी राह देखते रहे। ",
"6": "और ईद — ए— फ़तीर के दिनों के बाद हम फ़िलिप्पी से जहाज़ पर रवाना होकर पाँच दिन के बाद त्रोआस में उन के पास पहुँचे और सात दिन वहीं रहे। \n\\p ",
"7": "सबत की शाम जब हम रोटी तोड़ने के लिए जमा हुए, तो पौलुस ने दूसरे दिन रवाना होने का इरादा करके उन से बातें कीं और आधी रात तक कलाम करता रहा। ",
"8": "जिस बालाख़ाने पर हम जमा थे, उस में बहुत से चराग़ जल रहे थे। \n\\p ",
"9": "और यूतुख़ुस नाम एक जवान खिड़की में बैठा था, उस पर नींद का बड़ा ग़ल्बा था, और जब पौलुस ज़्यादा देर तक बातें करता रहा तो वो नींद के ग़ल्बे में तीसरी मंज़िल से गिर पड़ा, और उठाया गया तो मुर्दा था। ",
"10": "पौलुस उतर कर उस से लिपट गया, और गले लगा कर कहा, घबराओ नहीं इस में जान है।” \n\\p ",
"11": "फिर ऊपर जा कर रोटी तोड़ी और खा कर इतनी देर तक बातें करता रहा कि सुबह हो गई, फिर वो रवाना हो गया। \n\\p ",
"12": "और वो उस लड़के को ज़िंदा लाए और उनको बड़ा इत्मीनान हुआ। \n\\p ",
"13": "हम जहाज़ तक आगे जाकर इस इरादा से अस्सुस शहर को रवाना हुए कि वहाँ पहुँच कर पौलुस को चढ़ा लें, क्यूँकि उस ने पैदल जाने का इरादा करके यही तज्वीज़ की थी। ",
"14": "पस, जब वो अस्सुस में हमें मिला तो हम उसे चढ़ा कर मितुलेने शहर में आए। \n\\p ",
"15": "वहाँ से जहाज़ पर रवाना होकर दूसरे दिन ख़ियुस टापू के सामने पहुँचे और तीसरे दिन सामुस टापू तक आए और अगले दिन मिलेतुस शहर में आ गए। ",
"16": "क्यूँकि पौलुस ने ये ठान लिया था, कि इफ़िसुस के पास से गुज़रे, ऐसा न हो कि उसे आसिया में देर लगे; इसलिए कि वो जल्दी करता था, कि अगर हो सके तो पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलीम में हो। \n\\p ",
"17": "और उस ने मिलेतुस से इफ़िसुस में कहला भेजा, और कलीसिया के बुज़ुर्गों को बुलाया। ",
"18": "जब वो उस के पास आए तो उन से कहा,\n\\p “तुम ख़ुद जानते हो कि पहले ही दिन से कि मैंने आसिया में क़दम रख्खा हर वक़्त तुम्हारे साथ किस तरह रहा। ",
"19": "या'नी कमाल फ़रोतनी से और आँसू बहा बहा कर और उन आज़माइशों में जो यहूदियों की साज़िश की वजह से मुझ पर वा'के हुई ख़ुदावन्द की ख़िदमत करता रहा। ",
"20": "और जो जो बातें तुम्हारे फ़ाइदे की थीं उनके बयान करने और एलानिया और घर घर सिखाने से कभी न झिझका। ",
"21": "बल्कि यहूदियों और यूनानियों के रू— ब— रू गवाही देता रहा कि “ख़ुदा “के सामने तौबा करना और हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह पर ईमान लाना चाहिए। \n\\p ",
"22": "और अब देखो में रूह में बँधा हुआ यरूशलीम को जाता हूँ, और न मा'लूम कि वहाँ मुझ पर क्या क्या गुज़रे। ",
"23": "सिवा इसके कि रूह — उल — क़ुद्दूस हर शहर में गवाही दे दे कर मुझ से कहता है। कि क़ैद और मुसीबतें तेरे लिए तैयार हैं। ",
"24": "लेकिन मैं अपनी जान को अज़ीज़ नहीं समझता कि उस की कुछ क़द्र करूँ; बावजूद इसके कि अपना दौर और वो ख़िदमत जो “ख़ुदावन्द ईसा' से पाई है, पूरी करूँ। या'नी ख़ुदा के फ़ज़ल की ख़ुशख़बरी की गवाही दूँ। \n\\p ",
"25": "और अब देखो मैं जानता हूँ कि तुम सब जिनके दर्मियान मैं बादशाही का एलान करता फिरा, मेरा मुँह फिर न देखोगे। ",
"26": "पस, मैं आज के दिन तुम्हें क़तई कहता हूँ कि सब आदमियों के ख़ून से पाक हूँ। ",
"27": "क्यूँकि मैं ख़ुदा की सारी मर्ज़ी तुम से पूरे तौर से बयान करने से न झिझका। ",
"28": "पस, अपनी और उस सारे गल्ले की ख़बरदारी करो जिसका रूह — उल क़ुद्दूस ने तुम्हें निगहबान ठहराया ताकि “ख़ुदा “की कलीसिया की गल्ले कि रख वाली करो, जिसे उस ने ख़ास अपने ख़ून से ख़रीद लिया। ",
"29": "मैं ये जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद फाड़ने वाले भेड़िये तुम में आएंगे जिन्हें गल्ले पर कुछ तरस न आएगा; ",
"30": "आप के बीच से भी आदमी उठ कर सच्चाई को तोड़— मरोड़ कर बयान करेंगे ताकि शागिर्दों को अपने पीछे लगा लें। \n\\p ",
"31": "इसलिए जागते रहो, और याद रखो कि मैं तीन बरस तक रात दिन आँसू बहा बहा कर हर एक को समझाने से बा'ज़ न आया। ",
"32": "अब मैं तुम्हें “ख़ुदा “और उसके फ़ज़ल के कलाम के सुपुर्द करता हूँ, जो तुम्हारी तरक़्क़ी कर सकता है, और तमाम मुक़द्दसों में शरीक करके मीरास दे सकता है। \n\\p ",
"33": "मैंने किसी के पैसे या कपड़े का लालच नहीं किया। ",
"34": "तुम आप जानते हो कि इन्हीं हाथों ने मेरी और मेरे साथियों की हाजतपूरी कीं। ",
"35": "मैंने तुम को सब बातें करके दिखा दीं कि इस तरह मेहनत करके कमज़ोरों को संभालना और “ख़ुदावन्द ईसा “की बातें याद रखना चाहिए, उस ने ख़ुद कहा, देना लेने से मुबारिक़ है। \n\\p ",
"36": "उस ने ये कह कर घुटने टेके और उन सब के साथ दुआ की। ",
"37": "और वो सब बहुत रोए और पौलुस के गले लग लगकर उसके बोसे लिए। ",
"38": "और ख़ास कर इस बात पर ग़मगीन थे, जो उस ने कही थी, कि तुम फिर मेरा मुँह न देखोगे” फिर उसे जहाज़ तक पहुँचाया। ",
"front": "\\s पौलुस का मकिदुनिया को जाना\n\\p "
}

43
act/21.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,43 @@
{
"1": "जब हम उनसे बमुश्किल जुदा हो कर जहाज़ पर रवाना हुए, तो ऐसा हुआ की सीधी राह से कोस टापू में आए, और दूसरे दिन रूदुस में, और वहाँ से पतरा शहर में। ",
"2": "फिर एक जहाज़ सीधा फ़ीनिके को जाता हुआ मिला, और उस पर सवार होकर रवाना हुए। \n\\p ",
"3": "जब कुप्रुस शहर नज़र आया तो उसे बाएँ हाथ छोड़कर सुरिया को चले, और सूर शहर में उतरे, क्यूँकि वहाँ जहाज़ का माल उतारना था। ",
"4": "जब शागिर्दों को तलाश कर लिया तो हम सात रोज़ वहाँ रहे; उन्हों ने रूह के ज़रिए पौलुस से कहा, कि यरूशलीम में क़दम न रखना। \n\\p ",
"5": "और जब वो दिन गुज़र गए, तो ऐसा हुआ कि हम निकल कर रवाना हुए, और सब ने बीवियों बच्चों समेत हम को शहर से बाहर तक पहुँचाया। फिर हम ने समुन्दर के किनारे घुटने टेककर दुआ की। ",
"6": "और एक दूसरे से विदा होकर हम तो जहाज़ पर चढ़े, और वो अपने अपने घर वापस चले गए। \n\\p ",
"7": "और हम सूर से जहाज़ का सफ़र पूरा कर के पतुलिमयिस सूबा में पहुँचे, और भाइयों को सलाम किया, और एक दिन उनके साथ रहे। ",
"8": "दूसरे दिन हम रवाना होकर क़ैसरिया में आए, और फ़िलिप्पुस मुबश्शिर के घर जो उन सातों में से था, उतर कर उसके साथ रहे, ",
"9": "उस की चार कुँवारी बेटियाँ थीं, जो नबुव्वत करती थीं। \n\\p ",
"10": "जब हम वहाँ बहुत रोज़ रहे, तो अगबुस नाम एक नबी यहूदिया से आया। ",
"11": "उस ने हमारे पास आकर पौलुस का कमरबन्द लिया और अपने हाथ पाँव बाँध कर कहा, रूह — उल — क़ुद्दूस यूँ फ़रमाता है” “कि जिस शख़्स का ये कमरबन्द है उस को यहूदी यरूशलीम में इसी तरह बाँधेगे और ग़ैर क़ौमों के हाथ में सुपुर्द करेंगे।” \n\\p ",
"12": "जब ये सुना तो हम ने और वहाँ के लोगों ने उस की मिन्नत की, कि यरूशलीम को न जाए। ",
"13": "मगर पौलुस ने जवाब दिया, कि तुम क्या करते हो? क्यूँ रो रो कर मेरा दिल तोड़ते हो? में तो यरूशलीम में “ख़ुदावन्द ईसा मसीह “के नाम पर न सिर्फ़ बाँधे जाने बल्कि मरने को भी तैयार हूँ।” ",
"14": "जब उस ने न माना तो हम ये कह कर चुप हो गए “कि “ख़ुदावन्द “की मर्ज़ी पूरी हो।” \n\\p ",
"15": "उन दिनों के बाद हम अपने सफ़र का सामान तैयार करके यरूशलीम को गए। ",
"16": "और क़ैसरिया से भी कुछ शागिर्द हमारे साथ चले और एक पुराने शागिर्द मनासोन कुप्रीस के रहने वाले को साथ ले आए, ताकि हम उस के मेहमान हों। \n\\p ",
"17": "जब हम यरूशलीम में पहुँचे तो ईमानदार भाई बड़ी ख़ुशी के साथ हम से मिले। ",
"18": "और दूसरे दिन पौलुस हमारे साथ या'क़ूब के पास गया, और सब बुज़ुर्ग वहाँ हाज़िर थे। ",
"19": "उस ने उन्हें सलाम करके जो कुछ ख़ुदा ने उस की ख़िदमत से ग़ैर क़ौमों में किया था, एक एक कर के बयान किया। \n\\p ",
"20": "“उन्होंने ये सुन कर ख़ुदा की तारीफ़ की फिर उस से कहा, ऐ भाई तू देखता है, कि यहूदियों में हज़ारों आदमी ईमान ले आए हैं, और वो सब शरी'अत के बारे में सरगर्म हैं। ",
"21": "और उन को तेरे बारे में सिखा दिया गया है, कि तू ग़ैर क़ौमों में रहने वाले सब यहूदियों को ये कह कर मूसा से फिर जाने की ता'लीम देता है, कि न अपने लड़कों का ख़तना करो न मूसा की रस्मों पर चलो। \n\\p ",
"22": "पस, क्या किया जाए? लोग ज़रूर सुनेंगे, कि तू आया है। ",
"23": "इसलिए जो हम तुझ से कहते हैं वो कर; हमारे यहाँ चार आदमी ऐसे हैं, जिन्हों ने मन्नत मानी है। ",
"24": "उन्हें ले कर अपने आपको उन के साथ पाक कर और उनकी तरफ़ से कुछ ख़र्च कर, ताकि वो सिर मुंडाएँ, तो सब जान लेंगे कि जो बातें उन्हें तेरे बारे में सिखाई गई हैं, उन की कुछ असल नहीं बल्कि तू ख़ुद भी शरी'अत पर अमल करके दुरुस्ती से चलता है। \n\\p ",
"25": "मगर ग़ैर क़ौमों में से जो ईमान लाए उनके बारे में हम ने ये फ़ैसला करके लिखा था, कि वो सिर्फ़ बुतों की क़ुर्बानी के गोश्त से और लहू और गला घोंटे हुए जानवरों और हरामकारी से अपने आप को बचाए रखें।” ",
"26": "इस पर पौलुस उन आदमियों को लेकर और दूसरे दिन अपने आपको उनके साथ पाक करके हैकल में दाख़िल हुआ और ख़बर दी कि जब तक हम में से हर एक की नज़्र न चढ़ाई जाए तक़द्दुस के दिन पूरे करेंगे। \n\\p ",
"27": "जब वो सात दिन पूरे होने को थे, तो आसिया के यहूदियों ने उसे हैकल में देखकर सब लोगों में हलचल मचाई और यूँ चिल्लाकर उस को पकड़ लिया। ",
"28": "कि “ऐ इस्राईलियो; मदद करो “ये वही आदमी है, जो हर जगह सब आदमियों को उम्मत और शरी'अत और इस मुक़ाम के ख़िलाफ़ ता'लीम देता है, बल्कि उस ने यूनानियों को भी हैकल में लाकर इस पाक मुक़ाम को नापाक किया है।” ",
"29": "(उन्होंने उस से पहले त्रुफ़िमुस इफ़िसी को उसके साथ शहर में देखा था। उसी के बारे में उन्होंने ख़याल किया कि पौलुस उसे हैकल में ले आया है)। \n\\p ",
"30": "और तमाम शहर में हलचल मच गई, और लोग दौड़ कर जमा हुए, और पौलुस को पकड़ कर हैकल के दरवाज़े के फाटक से बाहर घसीट कर ले गए, और फ़ौरन दरवाज़े बन्द कर लिए गए। ",
"31": "जब वो उसे क़त्ल करना चहते थे, तो ऊपर सौ फ़ौजियों के सरदार के पास ख़बर पहुँची “कि तमाम यरूशलीम में खलबली पड़ गई है।” \n\\p ",
"32": "वो उसी वक़्त सिपाहियों और सूबेदारों को ले कर उनके पास नीचे दौड़ा आया। और वो पलटन के सरदार और सिपाहियों को देख कर पौलुस की मार पीट से बाज़ आए। ",
"33": "इस पर पलटन के सरदार ने नज़दीक आकर उसे गिरफ़्तार किया “और दो ज़ंजीरों से बाँधने का हुक्म देकर पूछने लगा, ये कौन है, और इस ने क्या किया है?”\n\\p ",
"34": "भीड़ में से कुछ चिल्लाए और कुछ पस जब हुल्लड़ की वजह से कुछ हक़ीक़त दरियाफ़्त न कर सका, तो हुक्म दिया कि उसे क़िले में ले जाओ। ",
"35": "जब सीढ़ियों पर पहुँचा तो भीड़ की ज़बरदस्ती की वजह से सिपाहियों को उसे उठाकर ले जाना पड़ा। ",
"36": "क्यूँकि लोगों की भीड़ ये चिल्लाती हुई उसके पीछे पड़ी “कि उसका काम तमाम कर।” \n\\p ",
"37": "“और जब पौलुस को क़िले के अन्दर ले जाने को थे? उस ने पलटन के सरदार से कहा क्या मुझे इजाज़त है कि तुझ से कुछ कहूँ? उस ने कहा तू यूनानी जानता है? ",
"38": "क्या तू वो मिस्री नहीं? जो इस से पहले ग़ाज़ियों में से चार हज़ार आदमियों को बाग़ी करके जंगल में ले गया।” \n\\p ",
"39": "पौलुस ने कहा “मैं यहूदी आदमी किलकिया के मशहूर सूबा तरसुस शहर का बाशिन्दा हूँ, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मुझे लोगों से बोलने की इजाज़त दे।” ",
"40": "जब उस ने उसे इजाज़त दी तो पौलुस ने सीढ़ियों पर खड़े होकर लोगों को इशारा किया। जब वो चुप चाप हो गए, तो इब्रानी ज़बान में यूँ कहने लगा। ",
"front": "\\s पौलुस का यरुशलेम को जाना\n\\p "
}

33
act/22.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,33 @@
{
"1": "ऐ भाइयों और बुज़ुर्गो, मेरी बात सुनो, जो अब तुम से बयान करता हूँ।”\n\\p ",
"2": "जब उन्होंने सुना कि हम से इब्रानी ज़बान में बोलता है तो और भी चुप चाप हो गए। पस उस ने कहा।\n\\p ",
"3": "“मैं यहूदी हूँ, और किलकिया के शहर तरसुस में पैदा हुआ हूँ, मगर मेरी तरबियत इस शहर में गमलीएल के क़दमों में हुई, और मैंने बा'प दादा की शरी'अत की ख़ास पाबन्दी की ता'लीम पाई, और “ख़ुदा “की राह में ऐसा सरगर्म रहा था, जैसे तुम सब आज के दिन हो। ",
"4": "चुनाँचे मैंने मर्दों और औरतों को बाँध बाँधकर और क़ैदख़ाने में डाल डालकर मसीही तरीक़े वालों को यहाँ तक सताया है कि मरवा भी डाला। ",
"5": "चुनाँचे “सरदार काहिन और सब बुज़ुर्ग मेरे गवाह हैं, कि उन से मैं भाइयों के नाम ख़त ले कर दमिश्क़ को रवाना हुआ, ताकि जितने वहाँ हों उन्हें भी बाँध कर यरूशलीम में सज़ा दिलाने को लाऊँ।\n\\p ",
"6": "जब में सफ़र करता करता दमिश्क़ शहर के नज़दीक पहुँचा तो ऐसा हुआ कि दोपहर के क़रीब यकायक एक बड़ा नूर आसमान से मेरे आस— पास आ चमका। ",
"7": "और में ज़मीन पर गिर पड़ा, और ये आवाज़ सुनी कि‘ऐ साऊल, ऐ साऊल। तू मुझे क्यूँ सताता है? ",
"8": "मैं ने जवाब दिया कि‘ऐ ख़ुदावन्द, तू कौन हैं? उस ने मुझ से कहा‘मैं ईसा' नासरी हूँ जिसे तू सताता है?\n\\p ",
"9": "और मेरे साथियों ने नूर तो देखा लेकिन जो मुझ से बोलता था, उस की आवाज़ न समझ सके। ",
"10": "मैं ने कहा, 'ऐ “ख़ुदावन्द, मैं क्या करूँ? ख़ुदावन्द ने मुझ से कहा, उठ कर दमिश्क़ में जा। और जो कुछ तेरे करने के लिए मुक़र्रर हुआ है, वहाँ तुझ से सब कहा जाए गा।” ",
"11": "जब मुझे उस नूर के जलाल की वजह से कुछ दिखाई न दिया तो मेरे साथी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दमिश्क़ में ले गए।\n\\p ",
"12": "और हननियाह नाम एक शख़्स जो शरी'अत के मुवाफ़िक़ दीनदार और वहाँ के सब रहने वाले यहूदियों के नज़दीक नेक नाम था ",
"13": "मेरे पास आया और खड़े होकर मुझ से कहा, 'भाई साऊल फिर बीना हो, उसी वक़्त बीना हो कर मैंने उस को देखा।\n\\p ",
"14": "उस ने कहा, 'हमारे बाप दादा के “ख़ुदा “ने तुझ को इसलिए मुक़र्रर किया है कि तू उस की मर्ज़ी को जाने और उस रास्तबाज़ को देखे और उस के मुँह की आवाज़ सुने। ",
"15": "क्यूँकि तू उस की तरफ़ से सब आदमियों के सामने उन बातों का गवाह होगा, जो तूने देखी और सुनी हैं। ",
"16": "अब क्यूँ देर करता है? उठ बपतिस्मा ले, और उस का नाम ले कर अपने गुनाहों को धो डाल।\n\\p ",
"17": "जब मैं फिर यरूशलीम में आकर हैकल में दुआ कर रहा था, तो ऐसा हुआ कि मैं बेख़ुद हो गया। ",
"18": "और उस को देखा कि मुझ से कहता है, जल्दी कर और फ़ौरन यरूशलीम से निकल जा, क्यूँकि वो मेरे हक़ में तेरी गवाही क़ुबूल न करेंगे।”\n\\p ",
"19": "मैंने कहा, 'ऐ ख़ुदावन्द! वो ख़ुद जानते हैं, कि जो तुझ पर ईमान लाए हैं, उन को क़ैद कराता और जा'बजा इबादतख़ानों में पिटवाता था। ",
"20": "और जब तेरे शहीद स्तिफ़नुस का ख़ून बहाया जाता था, तो मैं भी वहाँ खड़ा था। और उसके क़त्ल पर राज़ी था, और उसके क़ातिलों के कपड़ों की हिफ़ाज़त करता था। ",
"21": "उस ने मुझ से कहा, जा मैं तुझे ग़ैर क़ौमों के पास दूर दूर भेजूँगा।”\n\\p ",
"22": "वो इस बात तक तो उसकी सुनते रहे फिर बुलन्द आवाज़ से चिल्लाए कि ऐसे शख़्स को ज़मीन पर से ख़त्म कर दे! उस का ज़िन्दा रहना मुनासिब नहीं” ",
"23": "जब वो चिल्लाते और अपने कपड़े फ़ेंकते और ख़ाक उड़ाते थे।\n\\s पौलुस का अपनी रोमी हक शहरीयत दिख़ाना\n\\p ",
"24": "तो पलटन के सरदार ने हुक्म दे कर कहा, कि उसे क़िले में ले जाओ, और कोड़े मार कर उस का इज़हार लो ताकि मुझे मा'लूम हो कि वो किस वजह से उसकी मुख़ालिफ़त में यूँ चिल्लाते हैं।\n\\p ",
"25": "जब उन्होंने उसे रस्सियों से बाँध लिया तो, पौलुस ने उस सिपाही से जो पास खड़ा था कहा, क्या तुम्हें जायज़ है कि एक रोमी आदमी को कोड़े मारो और वो भी क़ुसूर साबित किए बग़ैर?” ",
"26": "सिपाही ये सुन कर पलटन के सरदार के पास गया और उसे ख़बर दे कर कहा, तू क्या करता है? ये तो रोमी आदमी है”\n\\p ",
"27": "पलटन के सरदार ने उस के पास आकर कहा, मुझे बता तो क्या तू रोमी है?” उस ने कहा, हाँ।” ",
"28": "पलटन के सरदार ने जवाब दिया “कि मैं ने बड़ी रक़म दे कर रोमी होने का रुत्बा हासिल किया “पौलुस ने कहा, मैं तो पैदाइशी हूँ” ",
"29": "पस, जो उस का इज़हार लेने को थे, फ़ौरन उस से अलग हो गए। और पलटन का सरदार भी ये मा'लूम करके डर गया, कि जिसको मैंने बाँधा है, वो रोमी है।\n\\p ",
"30": "सुबह को ये हक़ीक़त मा'लूम करने के इरादे से कि यहूदी उस पर क्या इल्ज़ाम लगाते हैं। उस ने उस को खोल दिया। और सरदार काहिन और सब सद्र — ए— आदालत वालों को जमा होने का हुक्म दिया, और पौलुस को नीचे ले जाकर उनके सामने खड़ा कर दिया।",
"front": "\\p "
}

38
act/23.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,38 @@
{
"1": "पौलुस ने सद्र — ऐ आदालत वालों को ग़ौर से देख कर कहा “ऐ भाइयों, मैंने आज तक पूरी नेक निती से “ख़ुदा “के वास्ते अपनी उम्र गुज़ारी है।” ",
"2": "सरदार काहिन हननियाह ने उन को जो उस के पास खड़े थे, हुक्म दिया कि उस के मुँह पर तमाचा मारो। ",
"3": "पौलुस ने उस से कहा, ऐ सफ़ेदी फिरी हुई दीवार! “ख़ुदा “तुझे मारेगा! तू शरी'अत के मुवाफ़िक़ मेरा इन्साफ़ करने को बैठा है, और क्या शरी'अत के बर — ख़िलाफ़ मुझे मारने का हुक्म देता है”\n\\p ",
"4": "जो पास खड़े थे, उन्होंने कहा, क्या तू “ख़ुदा “के सरदार काहिन को बुरा कहता है?” ",
"5": "पौलुस ने कहा, ऐ भाइयों, मुझे मालूम न था कि ये सरदार काहिन है, क्यूँकि लिखा है कि\n\\q अपनी क़ौम के सरदार को बुरा न कह।” \n\\p ",
"6": "जब पौलुस ने ये मा'लूम किया कि कुछ सदूक़ी हैं और कुछ फ़रीसी तो अदालत में पुकार कर कहा, ऐ भाइयों, मैं फ़रीसी और फ़रीसियों की औलाद हूँ। मुर्दों की उम्मीद और क़यामत के बारे में मुझ पर मुक़द्दमा हो रहा है” ",
"7": "जब उस ने ये कहा तो फ़रीसियों और सदूक़ियों में तकरार हुई, और मजमें में फ़ूट पड़ गई। ",
"8": "क्यूँकि सदूक़ी तो कहते हैं कि न क़यामत होगी, न कोई फ़रिश्ता है, न रूह मगर फ़रीसी दोनों का इक़रार करते हैं। \n\\p ",
"9": "पस, बड़ा शोर हुआ। और फ़रीसियों के फ़िरक़े के कुछ आलिम उठे “और यूँ कह कर झगड़ने लगे कि हम इस आदमी में कुछ बुराई नहीं पाते और अगर किसी रूह या फ़रिश्ते ने इस से कलाम किया हो तो फिर क्या?” ",
"10": "और जब बड़ी तकरार हुई तो पलटन के सरदार ने इस ख़ौफ़ से कि उस वक़्त पौलुस के टुकड़े कर दिए जाएँ, फ़ौज को हुक्म दिया कि उतर कर उसे उन में से ज़बरदस्ती निकालो और क़िले में ले जाओ। \n\\p ",
"11": "उसी रात ख़ुदावन्द उसके पास आ खड़ा हुआ, और कहा, इत्मीनान रख; कि जैसे तू ने मेरे बारे में यरूशलीम में गवाही दी है वैसे ही तुझे रोमा में भी गवाही देनी होगी।” \n\\s पौलुस को मारने की चाल\n\\p ",
"12": "जब दिन हुआ तो यहूदियों ने एका कर के और ला'नत की क़सम खाकर कहा “कि जब तक हम पौलुस को क़त्ल न कर लें न कुछ खाएँगे न पीएँगे।” ",
"13": "और जिन्हों ने आपस में ये साज़िश की वो चालीस से ज़्यादा थे। \n\\p ",
"14": "पस, उन्हों ने सरदार काहिनों और बुज़ुर्गों के पास जाकर कहा “कि हम ने सख़्त ला'नत की क़सम खाई है कि जब तक हम पौलुस को क़त्ल न कर लें कुछ न चखेंगे। ",
"15": "पस, अब तुम सद्र— ए— अदालत वालों से मिलकर पलटन के सरदार से अर्ज़ करो कि उसे तुम्हारे पास लाए। गोया तुम उसके मु'अमिले की हक़ीक़त ज़्यादा मालूम करना चाहते हो, और हम उसके पहुँचने से पहले उसे मार डालने को तैयार हैं”\n\\p ",
"16": "लेकिन पौलुस का भांजा उनकी घात का हाल सुन कर आया और क़िले में जाकर पौलुस को ख़बर दी। ",
"17": "पौलुस ने सुबेदारों में से एक को बुला कर कहा “इस जवान को पलटन के सरदार के पास ले जाऐ उस से कुछ कहना चाहता है।” \n\\p ",
"18": "उस ने उस को पलटन के सरदार के पास ले जा कर कहा कि पौलुस क़ैदी ने मुझे बुला कर दरख़्वास्त की कि जवान को तेरे पास लाऊँ। कि तुझ से कुछ कहना चाहता है।” ",
"19": "पलटन के सरदार ने उसका हाथ पकड़ कर और अलग जा कर पूछा “कि मुझ से क्या कहना चाहता है?”\n\\p ",
"20": "उस ने कहा “यहूदियों ने मशवरा किया है, कि तुझ से दरख़्वास्त करें कि कल पौलुस को सद्र— ए— अदालत में लाए। गोया तू उस के हाल की और भी तहक़ीक़ात करना चाहता है। ",
"21": "लेकिन तू उन की न मानना, क्यूँकि उन में चालीस शख़्स से ज़्यादा उस की घात में हैं जिन्होंने ला'नत की क़सम खाई है, कि जब तक उसे मार न डालें न खाएँगे न पिएँगे और अब वो तैयार हैं, सिर्फ़ तेरे वादे का इन्तज़ार है।” \n\\p ",
"22": "पस, सरदार ने जवान को ये हुक्म दे कर रुख़्सत किया “कि किसी से न कहना कि तू ने मुझ पर ये ज़ाहिर किया। \n\\p ",
"23": "और दो सुबेदारों को पास बुला कर कहा कि “दो सौ सिपाही और सत्तर सवार और दो सौ नेज़ा बरदार पहर रात गए, क़ैसरिया जाने को तैयार कर रखना। ",
"24": "और हुक्म दिया पौलुस की सवारी के लिए जानवरों को भी हाज़िर करें, ताकि उसे फ़ेलिक्स हाकिम के पास सहीह सलामत पहुँचा दें।” \n\\p ",
"25": "और इस मज़्मून का ख़त लिखा। \n\\p ",
"26": "“क्लोदियुस लूसियास का फ़ेलिक्स बहादुर हाकिम को सलाम। ",
"27": "इस शख़्स को यहूदियों ने पकड़ कर मार डालना चाहा मगर जब मुझे मा'लूम हुआ कि ये रोमी है तो फ़ौज समेत चढ़ गया, और छुड़ा लाया। \n\\p ",
"28": "और इस बात की दरियाफ़्त करने का इरादा करके कि वो किस वजह से उस पर ला'नत करते हैं; उसे उन की सद्र— ए— अदालत में ले गया। ",
"29": "और मा'लूम हुआ कि वो अपनी शरी'अत के मस्लों के बारे में उस पर नालिश करते हैं; लेकिन उस पर कोई ऐसा इल्ज़ाम नहीं लगाया गया कि क़त्ल या क़ैद के लायक़ हो। ",
"30": "और जब मुझे इत्तला हुई कि इस शख़्स के बर— ख़िलाफ़ साज़िश होने वाली है, तो मैंने इसे फ़ौरन तेरे पास भेज दिया है और इस के मुद्द, इयों को भी हुक्म दे दिया है कि तेरे सामने इस पर दा'वा करें।” \n\\p ",
"31": "पस, सिपाहियों ने हुक्म के मुवाफ़िक़ पौलुस को लेकर रातों रात अन्तिपत्रिस में पहुँचा दिया। ",
"32": "और दूसरे दिन सवारों को उसके साथ जाने के लिए छोड़ कर आप क़िले की तरफ़ मुड़े। ",
"33": "उन्हों ने क़ैसरिया में पहुँच कर हाकिम को ख़त दे दिया, और पौलुस को भी उस के आगे हाज़िर किया। \n\\p ",
"34": "उस ने ख़त पढ़ कर पूछा “कि ये किस सूबे का है और ये मा'लूम करके “कि किलकिया का है।” ",
"35": "उस से कहा “कि जब तेरे मुद्द'ई भी हाज़िर होंगे; मैं तेरा मुक़द्दमा करूँगा।” और उसे हेरोदेस के क़िले में क़ैद रखने का हुक्म दिया। ",
"front": "\\p "
}

30
act/24.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,30 @@
{
"1": "पाँच दिन के बाद हननियाह सरदार काहिन के कुछ बुज़ुर्गों और तिरतुलुस नाम एक वकील को साथ ले कर वहाँ आया, और उन्होंने हाकिम के सामने पौलुस के ख़िलाफ़ फ़रियाद की। ",
"2": "जब वो बुलाया गया तो तिरतुलुस इल्ज़ाम लगा कर कहने लगा कि ऐ फ़ेलिक्स बहादुर चूँकि तेरे वसीले से हम बड़े अमन में हैं और तेरी दूर अन्देशी से इस क़ौम के फ़ाइदे के लिए ख़राबियों की इस्लाह होती है। \n\\p ",
"3": "हम हर तरह और हर जगह कमाल शुक्र गुज़ारी के साथ तेरा एहसान मानते हैं। \n\\p ",
"4": "मगर इस लिए कि तुझे ज़्यादा तकलीफ़ न दूँ, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तू मेहरबानी से दो एक बातें हमारी सुन ले। ",
"5": "क्यूँकि हम ने इस शख़्स को फ़साद करने वाला और दुनिया के सब यहूदियों में फ़ितना अंगेज़ और नासरियों की बिद'अती फ़िरक़े का सरगिरोह पाया। ",
"6": "इस ने हैकल को नापाक करने की भी कोशिश की थी, और हम ने इसे पकड़ा। और हम ने चाहा कि अपनी शरी'अत के मुवाफ़िक़ इस की अदालत करें। \n\\p ",
"7": "लेकिन लूसियास सरदार आकर बड़ी ज़बरदस्ती से उसे हमारे हाथ से छीन ले गया। ",
"8": "और उसके मुद्दइयों को हुक्म दिया कि तेरे पास जाएँ इसी से तहक़ीक़ करके तू आप इन सब बातों को मालूम कर सकता है, जिनका हम इस पर इल्ज़ाम लगाते हैं।” ",
"9": "और दूसरे यहूदियों ने भी इस दा'वे में मुत्तफ़िक़ हो कर कहा कि ये बातें इसी तरह हैं। \n\\p ",
"10": "जब हाकिम ने पौलुस को बोलने का इशारा किया तो उस ने जवाब दिया, चूँकि मैं जानता हूँ, कि तू बहुत बरसों से इस क़ौम की अदालत करता है, इसलिए मैं ख़ुद से अपना उज़्र बयान करता हूँ। ",
"11": "तू मालूम कर सकता है, कि बारह दिन से ज़्यादा नहीं हुए कि मैं यरूशलीम में इबादत करने गया था। ",
"12": "और उन्होंने मुझे न हैकल में किसी के साथ बहस करते या लोगों में फ़साद कराते पाया न इबादतख़ानों में न शहर में। ",
"13": "और न वो इन बातों को जिन का मुझ पर अब इल्ज़ाम लगाते हैं, तेरे सामने साबित कर सकते हैं। \n\\p ",
"14": "लेकिन तेरे सामने ये इक़रार करता हूँ, कि जिस तरीक़े को वो बिद'अत कहते हैं, उसी के मुताबिक़ मैं अपने बाप दादा के “ख़ुदा “की इबादत करता हूँ, और जो कुछ तौरेत और नबियों के सहीफ़ों में लिखा है, उस सब पर मेरा ईमान है। ",
"15": "और “ख़ुदा “से उसी बात की उम्मीद रखता हूँ, जिसके वो ख़ुद भी मुन्तज़िर हैं, कि रास्तबाज़ों और नारास्तों दोनों की क़यामत होगी। ",
"16": "इसलिए मैं ख़ुद भी कोशिश में रहता हूँ, कि “ख़ुदा “और आदमियों के बारे में मेरा दिल मुझे कभी मलामत न करे। \n\\p ",
"17": "बहुत बरसों के बाद मैं अपनी क़ौम को ख़ैरात पहुँचाने और नज़्रें चढ़ाने आया था। ",
"18": "उन्होंने बग़ैर हँगामे या बवाल के मुझे तहारत की हालत में ये काम करते हुए हैकल में पाया, यहाँ आसिया के चन्द यहूदी थे। ",
"19": "और अगर उन का मुझ पर कुछ दा'वा था, तो उन्हें तेरे सामने हाज़िर हो कर फ़रियाद करना वाजिब था। \n\\p ",
"20": "या यही ख़ुद कहें, कि जब मैं सद्र— ए— अदालत के सामने खड़ा था, तो मुझ में क्या बुराई पाई थी।” ",
"21": "सिवा इस बात के कि मैं ने उन में खड़े हो कर बुलन्द आवाज़ से कहा था कि मुर्दों की क़यामत के बारे में आज मुझ पर मुक़द्दमा हो रहा है।” \n\\p ",
"22": "फ़ेलिक्स ने जो सहीह तौर पर इस तरीक़े से वाक़िफ़ था “ये कह कर मुक़द्दमे को मुल्तवी कर दिया कि जब पलटन का सरदार लूसियास आएगा तो मैं तुम्हारा मुक़द्दमा फ़ैसला करूँगा।” ",
"23": "और सुबेदार को हुक्म दिया कि उस को क़ैद तो रख मगर आराम से रखना और इसके दोस्तों में से किसी को इसकी ख़िदमत करने से मनह' न करना। \n\\p ",
"24": "और चन्द रोज़ के बाद फ़ेलिक्स अपनी बीवी दुसिल्ला को जो यहूदी थी, साथ ले कर आया, और पौलुस को बुलवा कर उस से मसीह ईसा' के दीन की कैफ़ियत सुनी। ",
"25": "और जब वो रास्तबाज़ी और परहेज़गारी और आइन्दा अदालत का बयान कर रहा था, तो फ़ेलिक्स ने दहशत खाकर जवाब दिया, कि इस वक़्त तू जा; फ़ुरसत पाकर तुझे फिर बुलाउँगा।” \n\\p ",
"26": "उसे पौलुस से कुछ रुपऐ मिलने की उम्मीद भी थी, इसलिए उसे और भी बुला बुला कर उस के साथ गुफ़्तगू किया करता था। ",
"27": "लेकिन जब दो बरस गुज़र गए तो पुरकियुस फ़ेस्तुस फ़ेलिक्स की जगह मुक़र्रर हुआ और फ़ेलिक्स यहूदियों को अपना एहसान मन्द करने की ग़रज़ से पौलुस को क़ैद ही में छोड़ गया। ",
"front": "\\s पौलुस का फिलिक्स के सामने पेश होना\n\\p "
}

30
act/25.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,30 @@
{
"1": "पस, फ़ेस्तुस सूबे में दाख़िल होकर तीन रोज़ के बाद क़ैसरिया से यरूशलीम को गया। ",
"2": "और सरदार काहिनों और यहूदियों के रईसों ने उस के यहाँ पौलुस के ख़िलाफ़ फ़रियाद की। ",
"3": "और उस की मुख़ालिफ़त में ये रि'आयत चाही कि उसे यरूशलीम में बुला भेजे; और घात में थे, कि उसे राह में मार डालें। \n\\p ",
"4": "मगर फ़ेस्तुस ने जवाब दिया कि पौलुस तो क़ैसरिया में क़ैद है और मैं आप जल्द वहाँ जाऊँगा। ",
"5": "पस तुम में से जो इख़्तियार वाले हैं वो साथ चलें और अगर इस शख़्स में कुछ बेजा बात हो तो उस की फ़रियाद करें।” \n\\p ",
"6": "वो उन में आठ दस दिन रह कर क़ैसरिया को गया, और दूसरे दिन तख़्त — ए — अदालत पर बैठकर पौलुस के लाने का हुक्म दिया। ",
"7": "जब वो हाज़िर हुआ तो जो यहूदी यरूशलीम से आए थे, वो उस के आस पास खड़े होकर उस पर बहुत सख़्त इल्ज़ाम लगाने लगे, मगर उन को साबित न कर सके। ",
"8": "लेकिन पौलुस ने ये उज़्र किया “मैंने न तो कुछ यहूदियों की शरी'अत का गुनाह किया है, न हैकल का न क़ैसर का।” \n\\p ",
"9": "मगर फ़ेस्तुस ने यहूदियों को अपना एहसानमन्द बनाने की ग़रज़ से पौलुस को जवाब दिया “क्या तुझे यरूशलीम जाना मन्ज़ूर है? कि तेरा ये मुक़द्दमा वहाँ मेरे सामने फ़ैसला हो”\n\\p ",
"10": "पौलुस ने कहा, मैं क़ैसर के तख़्त — ए — अदालत के सामने खड़ा हूँ, मेरा मुक़द्दमा यहीं फ़ैसला होना चाहिए यहूदियों का मैं ने कुछ क़ुसूर नहीं किया। चुनाँचे तू भी ख़ूब जानता है। \n\\p ",
"11": "अगर बदकार हूँ, या मैंने क़त्ल के लायक़ कोई काम किया है तो मुझे मरने से इन्कार नहीं! लेकिन जिन बातों का वो मुझ पर इल्ज़ाम लगाते हैं अगर उनकी कुछ अस्ल नहीं तो उनकी रि'आयत से कोई मुझ को उनके हवाले नहीं कर सकता। मैं क़ैसर के यहाँ दरख़्वास्त करता हूँ।” ",
"12": "फिर फ़ेस्तुस ने सलाहकारों से मशवरा करके जवाब दिया, कि तू ने क़ैसर के यहाँ फ़रियाद की है, तो क़ैसर ही के पास जाएगा।” \n\\p ",
"13": "और कुछ दिन गुज़रने के बाद अग्रिप्पा बादशाह और बिरनीकि ने क़ैसरिया में आकर फ़ेस्तुस से मुलाक़ात की। ",
"14": "और उनके कुछ अर्से वहाँ रहने के बाद फ़ेस्तुस ने पौलुस के मुक़द्दमे का हाल बादशाह से ये कह कर बयान किया। कि एक शख़्स को फ़ेलिक्स क़ैद में छोड़ गया है। ",
"15": "जब मैं यरूशलीम में था, तो सरदार काहिनों और यहूदियों के बुज़ुर्गों ने उसके ख़िलाफ़ फ़रियाद की; और सज़ा के हुक्म की दरख़्वास्त की। ",
"16": "उनको मैंने जवाब दिया'कि “रोमियों का ये दस्तूर नहीं कि किसी आदमियों को रि'आयतन सज़ा के लिए हवाले करें, जब कि मुद्द'अलिया को अपने मुद्द'इयों के रू— ब— रू हो कर दा, वे के जवाब देने का मौक़ा न मिले।” \n\\p ",
"17": "पस, जब वो यहाँ जमा हुए तो मैंने कुछ देर न की बल्कि दूसरे ही दिन तख़्त — ए अदालत पर बैठ कर उस आदमी को लाने का हुक्म दिया। ",
"18": "मगर जब उसके मुद्द'ई खड़े हुए तो जिन बुराइयों का मुझे गुमान था, उनमें से उन्होंने किसी का इल्ज़ाम उस पर न लगाया। ",
"19": "बल्कि अपने दीन और किसी शख़्स ईसा' के बारे में उस से बहस करते थे, जो मर गया था, और पौलुस उसको ज़िन्दा बताता है। ",
"20": "चूँकि मैं इन बातों की तहक़ीक़ात के बारे में उलझन में था, इस लिए उस से पूछा क्या तू यरूशलीम जाने को राज़ी है, कि वहाँ इन बातों का फ़ैसला हो?\n\\p ",
"21": "मगर जब पौलुस ने फ़रियाद की, कि मेरा मुक़द्दमा शहन्शाह की अदालत में फ़ैसला हो तो, मैंने हुक्म दिया कि जब तक उसे क़ैसर के पास न भेजूँ, क़ैद में रहे। ",
"22": "अग्रिप्पा ने फ़ेस्तुस से कहा, मैं भी उस आदमी की सुनना चाहता हूँ, उस ने कहा “तू कल सुन लेगा।” \n\\p ",
"23": "पस, दूसरे दिन जब अग्रिप्पा और बिरनीकि बड़ी शान — ओ शौकत से पलटन के सरदारों और शहर के र'ईसों के साथ दिवान खाने में दाख़िल हुए। तो फ़ेस्तुस के हुक्म से पौलुस हाज़िर किया गया। ",
"24": "फिर फ़ेस्तुस ने कहा, ऐ अग्रिप्पा बादशाह और ऐ सब हाज़रीन तुम इस शख़्स को देखते हो, जिसके बारे में यहूदियों के सारे गिरोह ने यरूशलीम में और यहाँ भी चिल्ला चिल्ला कर मुझ से अर्ज़ की कि इस का आगे को ज़िन्दा रहना मुनासिब नहीं। \n\\p ",
"25": "लेकिन मुझे मा'लूम हुआ कि उस ने क़त्ल के लायक़ कुछ नहीं किया; और जब उस ने ख़ुद शहन्शाह के यहाँ फ़रियाद की तो मैं ने उस को भेजने की तज्वीज़ की। ",
"26": "उसके बारे में मुझे कोई ठीक बात मा'लूम नहीं कि सरकार — ए — आली को लिखूँ इस वास्ते मैंने उस को तुम्हारे आगे और ख़ासकर — ऐ — अग्रिप्पा बादशाह तेरे हुज़ूर हाज़िर किया है, ताकि तहक़ीक़ात के बाद लिखने के काबिल कोई बात निकले। ",
"27": "क्यूँकि क़ैदी के भेजते वक़्त उन इल्ज़ामों को जो उस पर लगाए गए है, ज़ाहिर न करना मुझे ख़िलाफ़— ए— अक़्ल मा'लूम होता है।” ",
"front": "\\s पौलुस का फेस्तुस के सामने पेश होना\n\\p "
}

35
act/26.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,35 @@
{
"1": "अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, तुझे अपने लिए बोलने की इजाज़त है; पौलुस अपना हाथ बढ़ाकर अपना जवाब यूँ पेश करने लगा कि,\n\\p ",
"2": "“ऐ अग्रिप्पा बादशाह जितनी बातों की यहूदी मुझ पर ला'नत करते हैं; आज तेरे सामने उनकी जवाबदेही करना अपनी ख़ुशनसीबी जानता हूँ। ",
"3": "ख़ासकर इसलिए कि तू यहूदियों की सब रस्मों और मसलों से वाक़िफ़ है; पस, मैं मिन्नत करता हूँ, कि तहम्मील से मेरी सुन ले। \n\\p ",
"4": "सब यहूदी जानते हैं कि अपनी क़ौम के दर्मियान और यरूशलीम में शुरू जवानी से मेरा चालचलन कैसा रहा है। ",
"5": "चूँकि वो शुरू से मुझे जानते हैं, अगर चाहें तो गवाह हो सकते हैं, कि में फ़रीसी होकर अपने दीन के सब से ज़्यादा पाबन्द मज़हबी फ़िरक़े की तरह ज़िन्दगी गुज़ारता था। \n\\p ",
"6": "और अब उस वा'दे की उम्मीद की वजह से मुझ पर मुक़द्दमा हो रहा है, जो “ख़ुदा “ने हमारे बाप दादा से किया था। ",
"7": "उसी वा'दे के पूरा होने की उम्मीद पर हमारे बारह के बारह क़बीले दिल'ओ जान से रात दिन इबादत किया करते हैं, इसी उम्मीद की वजह से “ऐ बादशाह यहूदी मुझ पर नालिश करते हैं। ",
"8": "जब कि “ख़ुदा “मुर्दों को जिलाता है, तो ये बात तुम्हारे नज़दीक क्यूँ ग़ैर मो'तबर समझी जाती है?\n\\p ",
"9": "मैंने भी समझा था, कि ईसा' नासरी के नाम की तरह तरह से मुख़ालिफ़त करना मुझ पर फ़र्ज़ है। ",
"10": "चुनाँचे मैंने यरूशलीम में ऐसा ही किया, और सरदार काहिनों की तरफ़ से इख़्तियार पाकर बहुत से मुक़द्दसों को क़ैद में डाला और जब वो क़त्ल किए जाते थे, तो मैं भी यही मशवरा देता था। ",
"11": "और हर इबादत खाने में उन्हें सज़ा दिला दिला कर ज़बरदस्ती उन से कूफ़्र कहलवाता था, बल्कि उन की मुख़ालिफ़त में ऐसा दिवाना बना कि ग़ैर शाहरों में भी जाकर उन्हें सताता था। \n\\p ",
"12": "इसी हाल में सरदार काहिनों से इख़्तियार और परवाने लेकर दमिश्क़ को जाता था। ",
"13": "तो ऐ बादशाह मैंने दो पहर के वक़्त राह में ये देखा कि सूरज के नूर से ज़्यादा एक नूर आसमान से मेरे और मेरे हमसफ़रों के गिर्द आ चमका। ",
"14": "जब हम सब ज़मीन पर गिर पड़े तो मैंने इब्रानी ज़बान में ये आवाज़ सुनी' कि ऐ साऊल, ऐ साऊल, तू मुझे क्यूँ सताता है? अपने आप पर लात मारना तेरे लिए मुश्किल है। \n\\p ",
"15": "मैं ने कहा 'ऐ ख़ुदावन्द, तू कौन हैं? 'ख़ुदावन्द ने फ़रमाया‘मैं ईसा' हूँ, जिसे तू सताता है। ",
"16": "लेकिन उठ अपने पाँव पर खड़ा हो, क्यूँकि मैं इस लिए तुझ पर ज़ाहिर हुआ हूँ, कि तुझे उन चीज़ों का भी ख़ादिम और गवाह मुक़र्रर करूँ जिनकी गवाही के लिए तू ने मुझे देखा है, और उन का भी जिनकी गवाही के लिए में तुझ पर ज़ाहिर हुआ करूँगा। ",
"17": "और मैं तुझे इस उम्मत और ग़ैर क़ौमों से बचाता रहूँगा। जिन के पास तुझे इसलिए भेजता हूँ। ",
"18": "कि तू उन की आँखें खोल दे ताकि अन्धेरे से रोशनी की तरफ़ और शैतान के इख़्तियार से “ख़ुदा “की तरफ़ रुजू लाएँ, और मुझ पर ईमान लाने के ज़रिए गुनाहों की मु'आफ़ी और मुक़द्दसों में शरीक हो कर मीरास पाएँ।’ \n\\p ",
"19": "इसलिए ऐ अग्रिप्पा बादशाह! मैं उस आसमानी रोया का नाफ़रमान न हुआ। ",
"20": "बल्कि पहले दमिश्क़ियों को फिर यरूशलीम और सारे मुल्क यहूदिया के बाशिन्दों को और ग़ैर क़ौमों को समझाता रहा। कि तौबा करें और “ख़ुदा “की तरफ़ रजू लाकर तौबा के मुवाफ़िक़ काम करें। ",
"21": "इन्ही बातों की वजह से कुछ यहूदियों ने मुझे हैकल में पकड़ कर मार डालने की कोशिश की। \n\\p ",
"22": "लेकिन “ख़ुदा “की मदद से मैं आज तक क़ाईम हूँ, और छोटे बड़े के सामने गवाही देता हूँ, और उन बातों के सिवा कुछ नहीं कहता जिनकी पेशीनगोई नबियों और मूसा ने भी की है। ",
"23": "कि “मसीह को दुःख:उठाना ज़रूर है और सब से पहले वही मुर्दों में से ज़िन्दा हो कर इस उम्मत को और ग़ैर क़ौमों को भी नूर का इश्तिहार देगा।” \n\\p ",
"24": "जब वो इस तरह जवाबदेही कर रहा था, तो फ़ेस्तुस ने बड़ी आवाज़ से कहा “ऐ पौलुस तू दिवाना है; बहुत इल्म ने तुझे दिवाना कर दिया है।” ",
"25": "पौलुस ने कहा “ऐ फ़ेस्तुस बहादुर; मैं दिवाना नहीं बल्कि सच्चाई और होशियारी की बातें कहता हूँ। ",
"26": "चुनाँचे बादशाह जिससे मैं दिलेराना कलाम करता हूँ, ये बातें जानता है और मुझे यक़ीन है कि इन बातों में से कोई उस से छिपी नहीं। क्यूँकि ये माजरा कहीं कोने में नहीं हुआ। \n\\p ",
"27": "ऐ अग्रिप्पा बादशाह, क्या तू नबियों का यक़ीन करता है? मैं जानता हूँ, कि तू यक़ीन करता है।” ",
"28": "अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, तू तो थोड़ी ही सी नसीहत कर के मुझे मसीह कर लेना चाहता है।” ",
"29": "पौलुस ने कहा, मैं तो “ख़ुदा “से चाहता हूँ, कि थोड़ी नसीहत से या बहुत से सिर्फ़ तू ही नहीं बल्कि जितने लोग आज मेरी सुनते हैं, मेरी तरह हो जाएँ, सिवा इन ज़ंजीरों के।” \n\\p ",
"30": "तब बादशाह और हाकिम और बरनीकि और उनके हमनशीन उठ खड़े हुए, ",
"31": "और अलग जाकर एक दूसरे से बातें करने और कहने लगे, कि ये आदमी ऐसा तो कुछ नहीं करता जो क़त्ल या क़ैद के लायक़ हो।” ",
"32": "अग्रिप्पा ने फ़ेस्तुस से कहा, कि अगर ये आदमी क़ैसर के यहाँ फ़रियाद न करता तो छूट सकता था।” ",
"front": "\n\\p "
}

47
act/27.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,47 @@
{
"1": "जब जहाज़ पर इतालिया को हमारा जाना ठहराया गया तो उन्होंने पौलुस और कुछ और क़ैदियों को शहन्शाही पलटन के एक सुबेदार अगस्तुस ने यूलियुस नाम के हवाले किया। ",
"2": "और हम अद्रमुतय्युस के एक जहाज़ पर जो आसिया के किनारे के बन्दरगाहों में जाने को था। सवार होकर रवाना हुए और थिस्सलुनीकियों का अरिस्तरख़ुस मकिदुनी हमारे साथ था।\n\\p ",
"3": "दूसरे दिन सैदा में जहाज़ ठहराया, और यूलियुस ने पौलुस पर मेहरबानी करके दोस्तों के पास जाने की इजाज़त दी। ताकि उस की ख़ातिरदारी हो। ",
"4": "वहाँ से हम रवाना हुए और कुप्रुस की आड़ में होकर चले इसलिए कि हवा मुख़ालिफ़ थी। ",
"5": "फिर किलकिया और पम्फ़ीलिया सूबे के समुन्दर से गुज़र कर लूकिया के शहर मूरा में उतरे। ",
"6": "वहाँ सुबेदार को इस्कन्दरिया का एक जहाज़ इतालिया जाता हुआ, मिला पस, हमको उस में बैठा दिया।\n\\p ",
"7": "और हम बहुत दिनों तक आहिस्ता आहिस्ता चलकर मुश्किल से कनिदुस शहर के सामने पहुँचे तो इसलिए कि हवा हम को आगे बढ़ने न देती थी सलमूने के सामने से हो कर करेते टापू की आड़ में चले। ",
"8": "और बमुश्किल उसके किनारे किनारे चलकर हसीन — बन्दर नाम एक मक़ाम में पहुँचे जिस से लसया शहर नज़दीक था।\n\\p ",
"9": "जब बहुत अरसा गुज़र गया और जहाज़ का सफ़र इसलिए ख़तरनाक हो गया कि रोज़ा का दिन गुज़र चुका था। तो पौलुस ने उन्हें ये कह कर नसीहत की। ",
"10": "कि ऐ साहिबो। मुझे मालूम होता है, कि इस सफ़र में तकलीफ़ और बहुत नुक़्सान होगा, न सिर्फ़ माल और जहाज़ का बल्कि हमारी जानों का भी।” ",
"11": "मगर सुबेदार ने नाख़ुदा और जहाज़ के मालिक की बातों पर पौलुस की बातों से ज़्यादा लिहाज़ किया।\n\\p ",
"12": "और चूँकि वो बन्दरगाह जाड़ों में रहने कि लिए अच्छा न था, इसलिए अक्सर लोगों की सलाह ठहरी कि वहाँ से रवाना हों, और अगर हो सके तो फ़ेनिक्स शहर में पहुँच कर जाड़ा काटें; वो करेते का एक बन्दरगाह है जिसका रुख शिमाल मशरिक़ और जुनूब मशरिक़ को है।\n\\p ",
"13": "जब कुछ कुछ दक्खिना हवा चलने लगी तो उन्हों ने ये समझ कर कि हमारा मतलब हासिल हो गया लंगर उठाया और करेते के किनारे के क़रीब क़रीब चले।\n\\p ",
"14": "लेकिन थोड़ी देर बाद एक बड़ी तुफ़ानी हवा जो यूरकुलोन कहलाती है करेते पर से जहाज़ पर आई। ",
"15": "और जब जहाज़ हवा के क़ाबू में आ गया, और उस का सामना न कर सका, तो हम ने लाचार होकर उसको बहने दिया। ",
"16": "और कौदा नाम एक छोटे टापू की आड़ में बहते बहते हम बड़ी मुश्किल से डोंगी को क़ाबू में लाए।\n\\p ",
"17": "और जब मल्लाह उस को उपर चढ़ा चुके तो जहाज़ की मज़बूती की तदबीरें करके उसको नीचे से बाँधा, और सूरतिस के चोर बालू में धंस जाने के डर से जहाज़ का साज़ो सामान उतार लिया। और उसी तरह बहते चले गए। ",
"18": "मगर जब हम ने आँधी से बहुत हिचकोले खाए तो दूसरे दिन वो जहाज़ का माल फेंकने लगे।\n\\p ",
"19": "और तीसरे दिन उन्हों ने अपने ही हाथों से जहाज़ के कुछ आलात— ओ — 'असबाब भी फेंक दिए। ",
"20": "जब बहुत दिनों तक न सूरज नज़र आया न तारे और शिद्दत की आँधी चल रही थी, तो आख़िर हम को बचने की उम्मीद बिल्कुल न रही।\n\\p ",
"21": "और जब बहुत फ़ाक़ा कर चुके तो पौलुस ने उन के बीच में खड़े हो कर कहा “ऐ साहिबो; लाज़िम था, कि तुम मेरी बात मान कर करेते से रवाना न होते और ये तकलीफ़ और नुक़्सान न उठाते।\n\\p ",
"22": "मगर अब मैं तुम को नसीहत करता हूँ कि इत्मीनान रख्खो; क्यूँकि तुम में से किसी का नुक़्सान न होगा “मगर जहाज़ का। ",
"23": "क्यूँकि “ख़ुदा “जिसका मैं हूँ, और जिसकी इबादत भी करता हूँ, उसके फ़रिश्ते ने इसी रात को मेरे पास आकर। ",
"24": "कहा, पौलुस, न डर। ज़रूरी है कि तू क़ैसर के सामने हाज़िर हो, और देख जितने लोग तेरे साथ जहाज़ में सवार हैं, उन सब की ख़ुदा ने तेरी ख़ातिर जान बख़्शी की। ",
"25": "इसलिए “ऐ साहिबो; इत्मीनान रख्खो; क्यूँकि मैं “ख़ुदा “का यक़ीन करता हूँ, कि जैसा मुझ से कहा गया है, वैसा ही होगा। ",
"26": "लेकिन ये ज़रूर है कि हम किसी टापू में जा पड़ें”\n\\p ",
"27": "जब चौधवीं रात हुई और हम बहर— ए— अद्रिया में टकराते फिरते थे, तो आधी रात के क़रीब मल्लाहों ने अंदाज़े से मा'लूम किया कि किसी मुल्क के नज़दीक पहुँच गए। ",
"28": "और पानी की थाह लेकर बीस पुर्सा पाया और थोड़ा आगे बढ़ कर और फिर थाह लेकर पन्द्रह पुर्सा पाया। ",
"29": "और इस डर से कि पथरीली चट्टानों पर जा पड़ें, जहाज़ के पीछे से चार लंगर डाले और सुबह होने के लिए दुआ करते रहे।\n\\p ",
"30": "और जब मल्लाहों ने चाहा कि जहाज़ पर से भाग जाएँ, और इस बहाने से कि गलही से लंगर डालें, डोंगी को समुन्दर में उतारें। ",
"31": "तो पौलुस ने सुबेदार और सिपाहियों से कहा “अगर ये जहाज़ पर न रहेंगे तो तुम नहीं बच सकते।” ",
"32": "इस पर सिपाहियों ने डोंगी की रस्सियाँ काट कर उसे छोड़ दिया।\n\\p ",
"33": "और जब दिन निकलने को हुआ तो पौलुस ने सब की मिन्नत की कि खाना खालो और कहा कि तुम को इन्तज़ार करते करते और फ़ाक़ा करते करते आज चौदह दिन हो गए; और तुम ने कुछ नहीं खाया। ",
"34": "इसलिए तुम्हारी मिन्नत करता हूँ कि खाना खालो, इसी में तुम्हारी बहतरी मौक़ूफ़ है, और तुम में से किसी के सिर का बाल बाका न होगा।” ",
"35": "ये कह कर उस ने रोटी ली और उन सब के सामने “ख़ुदा “का शुक्र किया, और तोड़ कर खाने लगा।\n\\p ",
"36": "फिर उन सब की ख़ातिर जमा हुई, और आप भी खाना खाने लगे। ",
"37": "और हम सब मिलकर जहाज़ में दो सौ छिहत्तर आदमी थे। ",
"38": "जब वो खा कर सेर हुए तो गेहूँ को समुन्दर में फेंक कर जहाज़ को हल्का करने लगे।\n\\p ",
"39": "जब दिन निकल आया तो उन्होंने उस मुल्क को न पहचाना, मगर एक खाड़ी देखी, जिसका किनारा साफ़ था, और सलाह की कि अगर हो सके तो जहाज़ को उस पर चढ़ा लें। ",
"40": "पस, लंगर खोल कर समुन्दर में छोड़ दिए, और पत्वारों की भी रस्सियाँ खोल दी; और अगला पाल हवा के रुख पर चढ़ा कर उस किनारे की तरफ़ चले। ",
"41": "लेकिन एक ऐसी जगह जा पड़े जिसके दोनों तरफ़ समुन्दर का ज़ोर था; और जहाज़ ज़मीन पर टिक गया, पस गलही तो धक्का खाकर फ़ँस गई; मगर दुम्बाला लहरों के ज़ोर से टूटने लगा।\n\\p ",
"42": "और सिपाहियों की ये सलाह थी, कि क़ैदियों को मार डालें, कि ऐसा न हो कोई तैर कर भाग जाए:। ",
"43": "लेकिन सुबेदार ने पौलुस को बचाने की ग़रज़ से उन्हें इस इरादे से बाज़ रख्खा; और हुक्म दिया कि जो तैर सकते हैं, पहले कूद कर किनारे पर चले जाएँ। ",
"44": "बाक़ी लोग कुछ तख़्तों पर और कुछ जहाज़ की और चीज़ों के सहारे से चले जाएँ; इसी तरह सब के सब ख़ुश्की पर सलामत पहुँच गए।",
"front": "\\s पौलुस का रोम को जाना\n\\p "
}

34
act/28.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,34 @@
{
"1": "जब हम पहुँच गए तो जाना कि इस टापू का नाम मिलिते है, ",
"2": "और उन अजनबियों ने हम पर ख़ास महरबानी की, क्यूँकि बारिश की झड़ी और जाड़े की वजह से उन्होंने आग जलाकर हम सब की ख़ातिर की।\n\\p ",
"3": "जब पौलुस ने लकड़ियों का गट्ठा जमा करके आग में डाला तो एक साँप गर्मी पा कर निकला और उसके हाथ पर लिपट गया। ",
"4": "जिस वक़्त उन अजनबियों ने वो कीड़ा उसके हाथ से लटका हुआ देखा तो एक दूसरे से कहने लगे, बेशक ये आदमी ख़ूनी है:अगरचे समुन्दर से बच गया तो भी अदल उसे जीने नहीं देता।”\n\\p ",
"5": "पस, उस ने कीड़े को आग में झटक दिया और उसे कुछ तकलीफ़ न पहुँची। ",
"6": "मगर वो मुन्तज़िर थे, कि इस का बदन सूज जाएगा:या ये मरकर यकायक गिर पड़ेगा लेकिन जब देर तक इन्तज़ार किया और देखा कि उसको कुछ तकलीफ़ न पहुँची तो और ख़याल करके कहा, ये तो कोई देवता है।”\n\\p ",
"7": "वहाँ से क़रीब पुबलियुस नाम उस टापू के सरदार की मिल्कियत थी; उस ने घर लेजाकर तीन दिन तक बड़ी महरबानी से हमारी मेहमानी की। ",
"8": "और ऐसा हुआ, कि पुबलियुस का बाप बुख़ार और पेचिश की वजह से बीमार पड़ा था; पौलुस ने उसके पास जाकर दुआ की और उस पर हाथ रखकर शिफ़ा दी। ",
"9": "जब ऐसा हुआ तो बाक़ी लोग जो उस टापू में बीमार थे, आए और अच्छे किए गए। ",
"10": "और उन्होंने हमारी बड़ी 'इज़्ज़त की और चलते वक़्त जो कुछ हमें दरकार था; जहाज़ पर रख दिया।\n\\p ",
"11": "तीन महीने के बाद हम इसकन्दरिया के एक जहाज़ पर रवाना हुए जो जाड़े भर 'उस टापू में रहा था जिसका निशान दियुसकूरी था ",
"12": "और सुरकूसा में जहाज़ ठहरा कर तीन दिन रहे।\n\\p ",
"13": "और वहाँ से फेर खाकर रेगियूम बन्दरगाह में आए। एक रोज़ बाद दक्खिन हवा चली तो दूसरे दिन पुतियुली शहर में आए। ",
"14": "वहाँ हम को भाई मिले, और उनकी मिन्नत से हम सात दिन उन के पास रहे; और इसी तरह रोमा तक गए। ",
"15": "वहाँ से भाई हमारी ख़बर सुनकर अप्पियुस के चौक और तीन सराय तक हमारे इस्तक़बाल को आए। पौलुस ने उन्हें देखकर ख़ुदा का शुक्र किया और उसके ख़ातिर जमा' हुई।\n\\p ",
"16": "जब हम रोम में पहुँचे तो पौलुस को इजाज़त हुई, कि अकेला उस सिपाही के साथ रहे, जो उस पर पहरा देता था।\n\\p ",
"17": "तीन रोज़ के बाद ऐसा हुआ कि उस ने यहूदियों के रईसों को बुलवाया और जब जमा हो गए, तो उन से कहा, ऐ भाइयों हर वक़्त पर मैंने उम्मत और बाप दादा की रस्मों के ख़िलाफ़ कुछ नहीं किया। तोभी यरूशलीम से क़ैदी होकर रोमियों के हाथ हवाले किया गया। ",
"18": "उन्होंने मेरी तहक़ीक़ात करके मुझे छोड़ देना चाहा; क्यूँकि मेरे क़त्ल की कोई वजह न थी।\n\\p ",
"19": "मगर जब यहूदियों ने मुख़ालिफ़त की तो मैंने लाचार होकर क़ैसर के यहाँ फ़रियाद की मगर इस वास्ते नहीं कि अपनी क़ौम पर मुझे कुछ इल्ज़ाम लगाना है, ",
"20": "पस, इसलिए मैंने तुम्हें बुलाया है कि तुम से मिलूँ और गुफ़्तगू करूँ, क्यूँकि इस्राईल की उम्मीद की वजह से मैं इस ज़ंजीर से जकड़ा हुआ हूँ,\n\\p ",
"21": "उन्होंने कहा “न हमारे पास यहूदिया से तेरे बारे में ख़त आए, न भाइयों में से किसी ने आ कर तेरी कुछ ख़बर दी न बुराई बयान की। ",
"22": "मगर हम मुनासिब जानते हैं कि तुझ से सुनें, कि तेरे ख़यालात क्या हैं; क्यूँकि इस फ़िर्के की वजह हम को मा'लूम है कि हर जगह इसके ख़िलाफ़ कहते हैं।”\n\\p ",
"23": "और वो उस से एक दिन ठहरा कर कसरत से उसके यहाँ जमा हुए, और वो “ख़ुदा “की बादशाही की गवाही दे दे कर और मूसा की तौरेत और नबियों के सहीफ़ों से ईसा' की वजह समझा समझा कर सुबह से शाम तक उन से बयान करता रहा। ",
"24": "और कुछ ने उसकी बातों को मान लिया, और कुछ ने न माना।\n\\p ",
"25": "जब आपस में मुत्तफ़िक़ न हुए, तो पौलुस की इस एक बात के कहने पर रुख़्सत हुए; कि रूह — उल क़ुद्दूस ने यसा'याह नबी के ज़रिए तुम्हारे बाप दादा से ख़ूब कहा कि। ",
"26": "इस उम्मत के पास जाकर कह\n\\q कि तुम कानों से सुनोगे और हर्गिज़ न समझोगे\n\\q और आँखों से देखोगे और हर्गिज़ मा'लूम न करोगे।\n\\q ",
"27": "क्यूँकि इस उम्मत के दिल पर चर्बी छा गई है,\n\\q 'और वो कानों से ऊँचा सुनते हैं,\n\\q और उन्होंने अपनी आँखें बन्द कर ली हैं,\n\\q कहीं ऐसा न हो कि आँखों से मा'लूम करें,\n\\q और कानों से सुनें,\n\\q और दिल से समझें,\n\\q और रुजू लाएँ,\n\\q और मैं उन्हें शिफ़ा बख़्शूँ।”\n\\p ",
"28": "“पस, तुम को मा'लूम हो कि ख़ुदा! की इस नजात का पैग़ाम ग़ैर क़ौमों के पास भेजा गया है, और वो उसे सुन भी लेंगी”\n\\p ",
"29": "[जब उस ने ये कहा तो यहूदी आपस में बहुत बहस करते चले गए।]\n\\p ",
"30": "और वो पूरे दो बरस अपने किराए के घर में रहा। ",
"31": "और जो उसके पास आते थे, उन सब से मिलता रहा; और कमाल दिलेरी से बग़ैर रोक टोक के “ख़ुदा “की बादशाही का ऐलान करता और “ख़ुदावन्द “ईसा' मसीह की बातें सिखाता रहा।",
"front": "\\s पौलुस माल्टा के टापू पर\n\\p "
}

29
act/3.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,29 @@
{
"1": "पतरस और यूहन्ना दुआ के वक़्त या'नी दो पहर तीन बजे हैकल को जा रहे थे। ",
"2": "और लोग एक पैदाइशी लंगड़े को ला रहे थे, जिसको हर रोज़ हैकल के उस दरवाज़े पर बिठा देते थे, जो ख़ूबसूरत कलहाता है ताकि हैकल में जाने वालों से भीख माँगे। ",
"3": "जब उस ने पतरस और यूहन्ना को हैकल जाते देखा तो उन से भीख माँगी। \n\\p ",
"4": "पतरस और यूहन्ना ने उस पर ग़ौर से नज़र की और पतरस ने कहा, हमारी तरफ़ देख।” ",
"5": "वो उन से कुछ मिलने की उम्मीद पर उनकी तरफ़ मुतवज्जह हुआ। ",
"6": "पतरस ने कहा, चांदी सोना तो मेरे पास है नहीं! मगर जो मेरे पास है वो तुझे दे देता हूँ ईसा' मसीह नासरी के नाम से चल फिर।” \n\\p ",
"7": "और उसका दाहिना हाथ पकड़ कर उसको उठाया, और उसी दम उसके पाँव और टख़ने मज़बूत हो गए। ",
"8": "और वो कूद कर खड़ा हो गया और चलने फिरने लगा; और चलता और कूदता और ख़ुदा की हम्द करता हुआ उनके साथ हैकल में गया। \n\\p ",
"9": "और सब लोगों ने उसे चलते फिरते और ख़ुदा की हम्द करते देख कर। ",
"10": "उसको पहचाना, कि ये वही है जो हैकल के ख़ूबसूरत दरवाज़े पर बैठ कर भीख माँगा करता था; और उस माजरे से जो उस पर वाक़े' हुआ था, बहुत दंग ओर हैरान हुए। \n\\p ",
"11": "जब वो पतरस और यूहन्ना को पकड़े हुए था, तो सब लोग बहुत हैरान हो कर उस बरामदह की तरफ़ जो सुलैमान का कहलाता है; उनके पास दौड़े आए। ",
"12": "पतरस ने ये देख कर लोगों से कहा; “ऐ इस्राईलियों इस पर तुम क्यूँ ताअ'ज्जुब करते हो और हमें क्यूँ इस तरह देख रहे हो; कि गोया हम ने अपनी क़ुदरत या दीनदारी से इस शख़्स को चलता फिरता कर दिया?\n\\p ",
"13": "अब्रहाम, इज़्हाक़ और या'क़ूब के ख़ुदा या'नी हमारे बाप दादा के ख़ुदा ने अपने ख़ादिम ईसा' को जलाल दिया, जिसे तुम ने पकड़वा दिया और जब पीलातुस ने उसे छोड़ देने का इरादा किया तो तुम ने उसके सामने उसका इन्कार किया। ",
"14": "तुम ने उस क़ुद्दूस और रास्तबाज़ का इन्कार किया; और पीलातुस से दरख़्वास्त की कि एक खताकार तुम्हारी ख़ातिर छोड़ दिया जाए। \n\\p ",
"15": "मगर ज़िन्दगी के मालिक को क़त्ल किया जाए; जिसे ख़ुदा ने मुर्दों में से जिलाया; इसके हम गवाह हैं। \n\\p ",
"16": "उसी के नाम से उस ईमान के वसीले से जो उसके नाम पर है, इस शख़्स को मज़बूत किया जिसे तुम देखते और जानते हो। बेशक उसी ईमान ने जो उसके वसीला से है ये पूरी तरह से तन्दरूस्ती तुम सब के सामने उसे दी।” ",
"17": "ऐ भाइयों! मैं जानता हूँ कि तुम ने ये काम नादानी से किया; और ऐसा ही तुम्हारे सरदारों ने भी। ",
"18": "मगर जिन बातों की ख़ुदा ने सब नबियो की ज़बानी पहले ख़बर दी थी, कि उसका मसीह दुःख उठाएगा; वो उसने इसी तरह पूरी कीं। \n\\p ",
"19": "पस तौबा करो और फिर जाओ ताकि तुम्हारे गुनाह मिटाए जाऐं, और इस तरह “ख़ुदावन्द के हुज़ूर से ताज़गी के दिन आएँ। ",
"20": "और वो उस मसीह को जो तुम्हारे वास्ते मुक़र्रर हुआ है, या'नी ईसा' को भेजे। \n\\p ",
"21": "ज़रूरी है कि वो असमान में उस वक़्त तक रहे; जब तक कि वो सब चीज़ें बहाल न की जाएँ, जिनका ज़िक्र “ख़ुदा “ने अपने पाक नबियों की ज़बानी किया है; जो दुनिया के शुरू से होते आए हैं। ",
"22": "चुनाँचे मूसा ने कहा, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिए मुझसा एक नबी पैदा करेगा जो कुछ वो तुम से कहे उसकी सुनना। \n\\p ",
"23": "और यूँ होगा कि जो शख़्स उस नबी की न सुनेगा वो उम्मत में से नेस्त— ओ— नाबूद कर दिया जाएगा। \n\\p ",
"24": "बल्कि समुएल से लेकर पिछलों तक जितने नबियों ने कलाम किया, उन सब ने इन दिनों की ख़बर दी है। ",
"25": "तुम नबियों की औलाद और उस अहद के शरीक हो, जो “ख़ुदा “ने तुम्हारे बाप दादा से बाँधा, जब इब्राहीम से कहा, कि तेरी औलाद से दुनिया के सब घराने बर्क़त पाएँगे। \n\\p ",
"26": "ख़ुदा ने अपने ख़ादिम को उठा कर पहले तुम्हारे पास भेजा; ताकि तुम में से हर एक को उसकी बुराइयों से हटाकर उसे बर्क़त दे।” ",
"front": "\\s पतरस का एक लंगड़े आदमी को ठीक करना\n\\p "
}

40
act/4.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,40 @@
{
"1": "जब वो लोगों से ये कह रहे थे तो काहिन और हैकल का मालिक और सदूक़ी उन पर चढ़ आए। ",
"2": "वो ग़मगीन हुए क्यूँकि यह लोगों को ता'लीम देते और ईसा की मिसाल देकर मुर्दों के जी उठने का ऐलान करते थे। ",
"3": "और उन्होंने उन को पकड़ कर दुसरे दिन तक हवालात में रख्खा; क्यूँकि शाम हो गेई थी। ",
"4": "मगर कलाम के सुनने वालों में से बहुत से ईमान लाए; यहाँ तक कि मर्दो की ता'दाद पाँच हज़ार के क़रीब हो गेई।\n\\p ",
"5": "दुसरे दिन यूँ हुआ कि उनके सरदार और बुज़ुर्ग और आलिम। ",
"6": "और सरदार काहिन हन्ना और काइफ़ा, यूहन्ना, और इस्कन्दर और जितने सरदार काहिन के घराने के थे, यरूशलीम में जमा हुए। ",
"7": "और उनको बीच में खड़ा करके पूछने लगे कि तुम ने ये काम किस क़ुदरत और किस नाम से किया?”\n\\p ",
"8": "उस वक़्त पतरस ने रूह — उल — कुददूस से भरपूर होकर उन से कहा। ",
"9": "“ऐ उम्मत के सरदारों और बुज़ुर्गों; अगर आज हम से उस एहसान के बारे में पूछ— ताछ की जाती है, जो एक कमज़ोर आदमी पर हुआ; कि वो क्यूँकर अच्छा हो गया? ",
"10": "तो तुम सब और इस्राईल की सारी उम्मत को मा'लूम हो कि ईसा' मसीह नासरी जिसको तुम ने मस्लूब किया, उसे ख़ुदा ने मुर्दों में से जिलाया, उसी के नाम से ये शख़्स तुम्हारे सामने तन्दरुस्त खड़ा है।\n\\p ",
"11": "ये वही पत्थर है जिसे तुमने हक़ीर जाना और वो कोने के सिरे का पत्थर हो गया। ",
"12": "और किसी दूसरे के वसीले से नजात नहीं, क्यूँकि आसमान के तले आदमियों को कोई दुसरा नाम नहीं बख़्शा गया, जिसके वसीले से हम नजात पा सकें।”\n\\p ",
"13": "जब उन्होंने पतरस और युहन्ना की हिम्मत देखी, और मा'लूम किया कि ये अनपढ़ और नावाक़िफ़ आदमी हैं, तो ता'अज्जुब किया; फिर ऊन्हें पहचाना कि ये ईसा' के साथ रहे हैं।\n\\p ",
"14": "और उस आदमी को जो अच्छा हुआ था, उनके साथ खड़ा देखकर कुछ ख़िलाफ़ न कह सके।\n\\p ",
"15": "मगर उन्हें सद्रे— ए— अदालत से बाहर जाने का हुक्म देकर आपस में मशवरा करने लगे। ",
"16": "“कि हम इन आदमियों के साथ क्या करें? क्यूँकि यरूशलीम के सब रहने वालों पर यह रोशन है। कि उन से एक खुला मोजिज़ा ज़ाहिर हुआ और हम इस का इन्कार नहीं कर सकते। ",
"17": "लेकिन इसलिए कि ये लोगों में ज़्यादा मशहूर न हो, हम उन्हें धमकाएं कि फिर ये नाम लेकर किसी से बात न करें।” ",
"18": "पस उन्हें बुला कर ताकीद की कि ईसा' का नाम लेकर हरगिज़ बात न करना और न तालीम देना।\n\\p ",
"19": "मगर पतरस और यूहन्ना ने जवाब में उनसे कहा, कि तुम ही इन्साफ़ करो, आया ख़ुदा के नज़दीक ये वाजिब है कि हम ख़ुदा की बात से तुम्हारी बात ज़्यादा सुनें? ",
"20": "क्यूँकि मुम्किन नहीं कि जो हम ने देखा और सुना है वो न कहें।”\n\\p ",
"21": "उन्होंने उनको और धमकाकर छोड़ दिया; क्यूँकि लोगों कि वजह से उनको सज़ा देने का कोई मौक़ा; न मिला इसलिए कि सब लोग उस माजरे कि वजह से ख़ुदा की बड़ाई करते थे। ",
"22": "क्यूँकि वो शख़्स जिस पर ये शिफ़ा देने का मोजिज़ा हुआ था, चालीस बरस से ज़्यादा का था।\n\\p ",
"23": "वो छूटकर अपने लोगों के पास गए, और जो कुछ सरदार काहिनों और बुज़ुर्गों ने उन से कहा था बयान किया। ",
"24": "जब उन्होंने ये सुना तो एक दिल होकर बुलन्द आवाज़ से ख़ुदा से गुज़ारिश की, 'ऐ' मालिक तू वो है जिसने आसमान और ज़मीन और समुन्दर और जो कुछ उन में है पैदा किया। ",
"25": "तूने रूह — उल— क़ुद्दूस के वसीले से हमारे बाप अपने ख़ादिम दाऊद की ज़बानी फ़रमाया कि, क़ौमों ने क्यूँ धूम मचाई? और उम्मतों ने क्यूँ बातिल ख़याल किए? ",
"26": "ख़ुदावन्द और उसके मसीह की मुख़ालिफ़त को ज़मीन के बादशाह उठ खड़े हुए, और सरदार जमा हो गए।’\n\\p ",
"27": "क्यूँकि वाक़'ई तेरे पाक ख़ादिम ईसा' के बरख़िलाफ़ जिसे तूने मसह किया।” हेरोदेस, और, पुनित्युस पीलातुस, ग़ैर क़ौमों और इस्राईलियों के साथ इस शहर में जमा हुए। ",
"28": "ताकि जो कुछ पहले से तेरी क़ुदरत और तेरी मसलेहत से ठहर गया था, वही 'अमल में लाएँ।\n\\p ",
"29": "अब, ऐ ख़ुदावन्द “उनकी धमकियों को देख, और अपने बन्दों को ये तौफ़ीक़ दे, कि वो तेरा कलाम कमाल दिलेरी से सुनाएँ। ",
"30": "और तू अपना हाथ शिफ़ा देने को बढ़ा और तेरे पाक ख़ादिम ईसा' के नाम से मोजिज़े और अजीब काम ज़हूर में आएँ।” ",
"31": "जब वो दुआ कर चुके, तो जिस मकान में जमा थे, वो हिल गया और वो सब रूह — उल — क़ुद्दूस से भर गए, और “ख़ुदा “का कलाम दिलेरी से सुनाते रहे।\n\\p ",
"32": "और ईमानदारों की जमा'अत एक दिल और एक जान थी; और किसी ने भी अपने माल को अपना न कहा, बल्कि उनकी सब चीज़ें मुश्तरका थीं। ",
"33": "और रसूल बड़ी क़ुदरत से ख़ुदावन्द ईसा' के जी उठने की गवाही देते रहे, और उन सब पर बड़ा फ़ज़ल था।\n\\p ",
"34": "क्यूँकि उन में कोई भी मुहताज न था, इसलिए कि जो लोग ज़मीनों और घरों के मालिक थे, उनको बेच बेच कर बिकी हुई चीज़ों की क़ीमत लाते। ",
"35": "और रसूलों के पाँव में रख देते थे, फिर हर एक को उसकी ज़रुरत के मुवाफ़िक़ बाँट दिया जाता था।\n\\p ",
"36": "और यूसुफ़ नाम एक लावी था, जिसका लक़ब रसूलों ने बरनबास:या'नी नसीहत का बेटा रख्खा था, और जिसकी पैदाइश कुप्रुस टापू की थी। ",
"37": "उसका एक खेत था, जिसको उसने बेचा और क़ीमत लाकर रसूलों के पाँव में रख दी।",
"front": "\\s पतरस और यूहन्ना कचहरी में\n\\p "
}

45
act/5.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,45 @@
{
"1": "और एक शख़्स हननियाह नाम और उसकी बीवी सफ़ीरा ने जायदाद बेची। ",
"2": "और उसने अपनी बीवी के जानते हुए क़ीमत में से कुछ रख छोड़ा और एक हिस्सा लाकर रसूलों के पाँव में रख दिया। \n\\p ",
"3": "मगर पतरस ने कहा, ऐ हननियाह! क्यूँ शैतान ने तेरे दिल में ये बात डाल दी, कि तू रूह — उल — क़ुद्दूस से झूठ बोले और ज़मीन की क़ीमत में से कुछ रख छोड़े। ",
"4": "क्या जब तक वो तेरे पास थी वो तेरी न थी? और जब बेची गई तो तेरे इख़्तियार में न रही, तूने क्यूँ अपने दिल में इस बात का ख़याल बाँधा? तू आदमियों से नहीं बल्कि ख़ुदा से झूठ बोला।” ",
"5": "ये बातें सुनते ही हननियाह गिर पड़ा, और उसका दम निकल गया, और सब सुनने वालों पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया। ",
"6": "कुछ जवानों ने उठ कर उसे कफ़्नाया और बाहर ले जाकर दफ़्न किया। \n\\p ",
"7": "तक़रीबन तीन घंटे गुज़र जाने के बाद उसकी बीवी इस हालात से बेख़बर अन्दर आई। ",
"8": "पतरस ने उस से कहा, मुझे बता; क्या तुम ने इतने ही की ज़मीन बेची थी?” उसने कहा हाँ इतने ही की। \n\\p ",
"9": "पतरस ने उससे कहा, तुम ने क्यूँ ख़ुदावन्द की रूह को आज़माने के लिए ये क्या किया? देख तेरे शौहर को दफ़्न करने वाले दरवाज़े पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएँगे।” ",
"10": "वो उसी वक़्त उसके क़दमों पर गिर पड़ी और उसका दम निकल गया, और जवानों ने अन्दर आकर उसे मुर्दा पाया और बाहर ले जाकर उसके शौहर के पास दफ़्न कर दिया। ",
"11": "और सारी कलीसिया बल्कि इन बातों के सब सुननेवालों पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया। \n\\p ",
"12": "और रसूलों के हाथों से बहुत से निशान और अजीब काम लोगों में ज़ाहिर होते थे, और वो सब एक दिल होकर सुलैमान के बरामदेह में जमा हुआ करते थे। ",
"13": "लेकिन बे ईमानों में से किसी को हिम्मत न हुई, कि उन में जा मिले, मगर लोग उनकी बड़ाई करते थे। \n\\p ",
"14": "और ईमान लाने वाले मर्द — ओ — औरत “ख़ुदावन्द “की कलीसिया में और भी कसरत से आ मिले। ",
"15": "यहाँ तक कि लोग बीमारों को सड़कों पर ला लाकर चार पाइयों और ख़टोलो पर लिटा देते थे, ताकि जब पतरस आए तो उसका साया ही उन में से किसी पर पड़ जाए। ",
"16": "और यरूशलीम के चारों तरफ़ के कस्बों से भी लोग बीमारों और नापाक रूहों के सताए हुवों को लाकर कसरत से जमा होते थे, और वो सब अच्छे कर दिए जाते थे। \n\\p ",
"17": "फिर सरदार काहिन और उसके सब साथी जो सदूक़ियों के फ़िरक़े के थे, हसद के मारे उठे। ",
"18": "और रसूलों को पकड़ कर हवालात में रख दिया। \n\\p ",
"19": "मगर ख़ुदावन्द के एक फ़रिश्ते ने रात को क़ैदख़ाने के दरवाज़े खोले और उन्हें बाहर लाकर कहा कि। ",
"20": "“जाओ, हैकल में खड़े होकर इस ज़िन्दगी की सब बातें लोगों को सुनाओ।” ",
"21": "वो ये सुनकर सुबह होते ही हैकल में गए, और ता'लीम देने लगे; मगर सरदार काहिन और उसके साथियों ने आकर सद्रे— ऐ — अदालत वालों और बनी इस्राईल के सब बुज़ुर्गों को जमा किया, और क़ैद खाने में कहला भेजा उन्हें लाएँ। \n\\p ",
"22": "लेकिन सिपाहियों ने पहुँच कर उन्हें क़ैद खाने में न पाया, और लौट कर ख़बर दी ",
"23": "“हम ने क़ैद खाने को तो बड़ी हिफ़ाज़त से बन्द किया हुआ, और पहरेदारों को दरवाज़ों पर खड़े पाया; मगर जब खोला तो अन्दर कोई न मिला!”\n\\p ",
"24": "जब हैकल के सरदार और सरदार काहिनों ने ये बातें सुनी तो उनके बारे में हैरान हुए, कि इसका क्या अंजाम होगा? ",
"25": "इतने में किसी ने आकर उन्हें ख़बर दी कि देखो, वो आदमी जिन्हें तुम ने क़ैद किया था; हैकल में खड़े लोगों को ता'लीम दे रहे हैं।” \n\\p ",
"26": "तब सरदार सिपाहियों के साथ जाकर उन्हें ले आया; लेकिन ज़बरदस्ती नहीं, क्यूँकि लोगों से डरते थे, कि हम पर पथराव न करें। ",
"27": "फिर उन्हें लाकर 'अदालत में खड़ा कर दिया, और सरदार काहिन ने उन से ये कहा। ",
"28": "“हम ने तो तुम्हें सख़्त ताकीद की थी, कि ये नाम लेकर ता'लीम न देना; मगर देखो तुम ने तमाम यरूशलीम में अपनी ता'लीम फैला दी, और उस शख़्स का ख़ून हमारी गर्दन पर रखना चहते हो।” \n\\p ",
"29": "पतरस और रसूलों ने जवाब में कहा, कि; “हमें आदमियों के हुक्म की निस्बत ख़ुदा का हुक्म मानना ज़्यादा फ़र्ज़ है। ",
"30": "हमारे बाप दादा के ख़ुदा ने ईसा' को जिलाया, जिसे तुमने सलीब पर लटका कर मार डाला था। ",
"31": "उसी को ख़ुदा ने मालिक और मुन्जी ठहराकर अपने दहने हाथ से सर बलन्द किया, ताकि इस्राईल को तौबा की तौफ़ीक़ और गुनाहों की मु'आफ़ी बख़्शे। ",
"32": "और हम इन बातों के गवाह हैं; रूह — उल — क़ुद्‍दुस भी जिसे ख़ुदा ने उन्हें बख़्शा है जो उसका हुक्म मानते हैं।” \n\\p ",
"33": "वो ये सुनकर जल गए, और उन्हें क़त्ल करना चाहा। ",
"34": "मगर गमलीएल नाम एक फ़रीसी ने जो शरा' का मु'अल्लिम और सब लोगों में इज़्ज़तदार था; अदालत में खड़े होकर हुक्म दिया कि इन आदमियों को थोड़ी देर के लिए बाहर कर दो। \n\\p ",
"35": "फिर उस ने कहा, ऐ इस्राईलियो; इन आदमियों के साथ जो कुछ करना चाहते हो होशियारी से करना। ",
"36": "क्यूँकि इन दिनों से पहले थियूदास ने उठ कर दा'वा किया था, कि मैं भी कुछ हूँ; और तक़रीबन चार सौ आदमी उसके साथ हो गए थे, मगर वो मारा गया और जितने उसके मानने वाले थे, सब इधर उधर हुए; और मिट गए। ",
"37": "इस शख़्स के बाद यहूदाह गलीली नाम लिखवाने के दिनों में उठा; और उस ने कुछ लोग अपनी तरफ़ कर लिए; वो भी हलाक हुआ और जितने उसके मानने वाले थे सब इधर उधर हो गए। \n\\p ",
"38": "पस अब में तुम से कहता हूँ कि इन आदमियों से किनारा करो और उन से कुछ काम न रख्खो, कहीं ऐसा न हो कि ख़ुदा से भी लड़ने वाले ठहरो क्यूँकि ये तदबीर या काम अगर आदमियों की तरफ़ से है तो आप बरबाद हो जाएगा। ",
"39": "लेकिन अगर ख़ुदा की तरफ़ से है तो तुम इन लोगों को मग़लूब न कर सकोगे”। \n\\p ",
"40": "उन्होंने उसकी बात मानी और रसूलों को पास बुला उनको पिटवाया और ये हुक्म देकर छोड़ दिया कि ईसा' का नाम लेकर बात न करना ",
"41": "पस वो अदालत से इस बात पर ख़ुश होकर चले गए; कि हम उस नाम की ख़ातिर बेइज़्ज़त होने के लायक़ तो ठहरे। ",
"42": "और वो हैकल में और घरों में हर रोज़ ता'लीम देने और इस बात की ख़ुशख़बरी सुनाने से कि ईसा' ही मसीह है बाज़ न आए। ",
"front": "\\s हननियाह और सफ़ीरा\n\\p "
}

18
act/6.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,18 @@
{
"1": "उन दिनों में जब शागिर्द बहुत होते जाते थे, तो यूनानी माइल यहूदी इब्रानियों की शिकायत करने लगे; इसलिए कि रोज़ाना ख़बरगीरी में उनकी बेवाओं के बारे में लापरवाही होती थी। \n\\p ",
"2": "और उन बारह ने शागिर्दों की जमा'अत को अपने पास बुलाकर कहा, मुनासिब नहीं कि हम ख़ुदा के कलाम को छोड़कर खाने पीने का इन्तिज़ाम करें। ",
"3": "पस, ऐ भाइयों! अपने में से सात नेक नाम शख़्सों को चुन लो जो रूह और दानाई से भरे हुए हों; कि हम उनको इस काम पर मुक़र्रर करें। ",
"4": "लेकिन हम तो दुआ में और कलाम की ख़िदमत में मशग़ूल रहेंगे। \n\\p ",
"5": "ये बात सारी जमा'अत को पसन्द आई, पस उन्होंने स्तिफ़नुस नाम एक शख़्स को जो ईमान और रूह — उल — क़ुद्दूस से भरा हुआ था और फ़िलिप्पुस, व प्रुख़ुरुस, और नीकानोर, और तीमोन, और पर्मिनास और नीकुलाउस। को जो नौ मुरीद यहूदी अन्ताकी था, चुन लिया। ",
"6": "और उन्हें रसूलों के आगे खड़ा किया; उन्होंने दुआ करके उन पर हाथ रखे। \n\\p ",
"7": "और “ख़ुदा “का कलाम फैलता रहा, और यरूशलीम में शागिर्दों का शुमार बहुत ही बढ़ता गया, और काहिनों की बड़ी गिरोह इस दीन के तहत में हो गई। \n\\p ",
"8": "स्तिफ़नुस फ़ज़ल और क़ुव्वत से भरा हुआ लोगों में बड़े बड़े अजीब काम और निशान ज़ाहिर किया करता था; ",
"9": "कि उस इबादतख़ाने से जो लिबिरतीनों का कहलाता है; और कुरेनियों शहर और इस्कन्दरियों क़स्बा और उन में से जो किलकिया और आसिया सूबे के थे, ये कुछ लोग उठ कर स्तिफ़नुस से बहस करने लगे। \n\\p ",
"10": "मगर वो उस दानाई और रूह का जिससे वो कलाम करता था, मुक़ाबिला न कर सके। ",
"11": "इस पर उन्होंने कुछ आदमियों को सिखाकर कहलवा दिया “हम ने इसको मूसा और ख़ुदा के बर— ख़िलाफ़ कुफ़्र की बातें करते सुना।” \n\\p ",
"12": "फिर वो 'अवाम और बुज़ुर्गों और आलिमों को उभार कर उस पर चढ़ गए; और पकड़ कर सद्रे— ए — 'अदालत में ले गए। ",
"13": "और झूठे गवाह खड़े किए जिन्होंने कहा, ये शख़्स इस पाक मुक़ाम और शरी'अत के बरख़िलाफ़ बोलने से बाज़ नहीं आता। ",
"14": "क्यूँकि हम ने उसे ये कहते सुना है; कि वही ईसा' नासरी इस मुक़ाम को बरबाद कर देगा, और उन रस्मों को बदल डालेगा, जो मूसा ने हमें सौंपी हैं।” ",
"15": "और उन सब ने जो अदालत में बैठे थे, उस पर ग़ौर से नज़र की तो देखा कि उसका चेहरा फ़रिश्ते के जैसा है। ",
"front": "\\s सात आदमियों का खिदमत करने के लिए चुना जाना\n\\p "
}

63
act/7.json Normal file
View File

@ -0,0 +1,63 @@
{
"1": "फिर सरदार काहिन ने कहा, क्या ये बातें इसी तरह पर हैं?” ",
"2": "उस ने कहा,\n\\p “ऐ भाइयों! और बुज़ुर्गों, सुनें। ख़ुदा ऐ' ज़ुल— जलाल हमारे बुज़ुर्ग अब्रहाम पर उस वक़्त ज़ाहिर हुआ जब वो हारान शहर में बसने से पहले मसोपोतामिया मुल्क में था। ",
"3": "और उस से कहा कि 'अपने मुल्क और अपने कुन्बे से निकल कर उस मुल्क में चला जा'जिसे मैं तुझे दिखाऊँगा। \n\\p ",
"4": "इस पर वो कसदियों के मुल्क से निकल कर हारान में जा बसा; और वहाँ से उसके बाप के मरने के बाद ख़ुदा ने उसको इस मुल्क में लाकर बसा दिया, जिस में तुम अब बसते हो। ",
"5": "और उसको कुछ मीरास बल्कि क़दम रखने की भी उस में जगह न दी मगर वा'दा किया कि में ये ज़मीन तेरे और तेरे बाद तेरी नस्ल के क़ब्ज़े में कर दूँगा, हालाँकि उसके औलाद न थी। \n\\p ",
"6": "और ख़ुदा ने ये फ़रमाया, तेरी नस्ल ग़ैर मुल्क में परदेसी होगी, वो उसको ग़ुलामी में रख्खेंगे और चार सौ बरस तक उन से बदसुलूकी करेंगे‘। ",
"7": "फिर ख़ुदा ने कहा, जिस क़ौम की वो ग़ुलामी में रहेंगे उसको मैं सज़ा दूँगा; और उसके बाद वो निकलकर इसी जगह मेरी इबादत करेंगे।’ ",
"8": "और उसने उससे ख़तने का 'अहद बाँधा; और इसी हालत में अब्रहाम से इज़्हाक़ पैदा हुआ, और आठवें दिन उसका ख़तना किया गया; और इज़्हाक़ से या'क़ूब और या'क़ूब से बारह क़बीलों के बुज़ुर्ग पैदा हुए। \n\\p ",
"9": "और बुज़ुर्गों ने हसद में आकर युसूफ़ को बेचा कि मिस्र में पहुँच जाए; मगर ख़ुदा उसके साथ था। ",
"10": "और उसकी सब मुसीबतों से उसने उसको छुड़ाया; और मिस्र के बादशाह फिर'औन के नज़दीक उसको मक़बूलियत और हिक्मत बख़्शी, और उसने उसे मिस्र और अपने सारे घर का सरदार कर दिया। \n\\p ",
"11": "फिर मिस्र के सारे मुल्क और कनान में काल पड़ा, और बड़ी मुसीबत आई; और हमारे बाप दादा को खाना न मिलता था। ",
"12": "लेकिन याक़ूब ने ये सुनकर कि, मिस्र में अनाज है; हमारे बाप दादा को पहली बार भेजा। ",
"13": "और दूसरी बार यूसुफ़ अपने भाइयों पर ज़ाहिर हो गया और यूसुफ़ की क़ौमियत फिर'औन को मा'लूम हो गई। \n\\p ",
"14": "फिर यूसुफ़ ने अपने बाप या'क़ूब और सारे कुन्बे को जो पछहत्तर जाने थीं; बुला भेजा। ",
"15": "और या'क़ूब मिस्र में गया वहाँ वो और हमारे बाप दादा मर गए। ",
"16": "और वो शहर ऐ “सिकम में पहुँचाए गए और उस मक़्बरे में दफ़्न किए गए' जिसको अब्रहाम ने सिक्म में रुपऐ देकर बनी हमूर से मोल लिया था। \n\\p ",
"17": "लेकिन जब उस वादे की मी'आद पुरी होने को थी, जो ख़ुदा ने अब्रहाम से फ़रमाया था तो मिस्र में वो उम्मत बढ़ गई; और उनका शुमार ज़्यादा होता गया। ",
"18": "उस वक़्त तक कि दूसरा बादशाह मिस्र पर हुक्मरान हुआ; जो यूसुफ़ को न जानता था। ",
"19": "उसने हमारी क़ौम से चालाकी करके हमारे बाप दादा के साथ यहाँ तक बदसुलूकी की कि उन्हें अपने बच्चे फेंकने पड़े ताकि ज़िन्दा न रहें। ",
"20": "इस मौक़े पर मूसा पैदा हुआ; जो निहायत ख़ूबसूरत था, वो तीन महीने तक अपने बाप के घर में पाला गया। ",
"21": "मगर जब फेंक दिया गया, तो फिर'औन की बेटी ने उसे उठा लिया और अपना बेटा करके पाला। ",
"22": "और मूसा ने मिस्रियों के, तमाम इल्मो की ता'लीम पाई, और वो कलाम और काम में ताक़त वाला था। \n\\p ",
"23": "और जब वो तक़रीबन चालीस बरस का हुआ, तो उसके जी में आया कि मैं अपने भाइयों बनी इस्राईल का हाल देखूँ। ",
"24": "चुनाँचे उन में से एक को ज़ुल्म उठाते देखकर उसकी हिमायत की, और मिस्री को मार कर मज़्लूम का बदला लिया। ",
"25": "उसने तो ख़याल किया कि मेरे भाई समझ लेंगे, कि ख़ुदा मेरे हाथों उन्हें छुटकारा देगा, मगर वो न समझे। \n\\p ",
"26": "फिर दूसरे दिन वो उन में से दो लड़ते हुओं के पास आ निकला और ये कहकर उन्हें सुलह करने की तरग़ीब दी कि‘ऐ जवानों तुम तो भाई भाई हो, क्यूँ एक दूसरे पर ज़ुल्म करते हो? ",
"27": "लेकिन जो अपने पड़ोसी पर ज़ुल्म कर रहा था, उसने ये कह कर उसे हटा दिया तुझे किसने हम पर हाकिम और क़ाज़ी मुक़र्रर किया? ",
"28": "क्या तू मुझे भी क़त्ल करना चहता है? जिस तरह कल उस मिस्री को क़त्ल किया था। \n\\p ",
"29": "मूसा ये बात सुन कर भाग गया, और मिदियान के मुल्क में परदेसी रहा, और वहाँ उसके दो बेटे पैदा हुए। \n\\p ",
"30": "और जब पूरे चालीस बरस हो गए, तो कोह— ए— सीना के वीराने में जलती हुई झाड़ी के शो'ले में उसको एक फ़रिश्ता दिखाई दिया। ",
"31": "जब मूसा ने उस पर नज़र की तो उस नज़ारे से ताज़्जुब किया, और जब देखने को नज़दीक गया तौ ख़ुदावन्द की आवाज़ आई कि ",
"32": "मैं तेरे बाप दादा का ख़ुदा या'नी अब्रहाम इज़्हाक़ और या'क़ूब का ख़ुदा हूँ तब मूसा काँप गया और उसको देखने की हिम्मत न रही। ",
"33": "ख़ुदावन्द ने उससे कहा कि अपने पाँव से जूती उतार ले, क्यूँकि जिस जगह तू खड़ा है, वो पाक ज़मीन है। ",
"34": "मैंने वाक़'ई अपनी उस उम्मत की मुसीबत देखी जो मिस्र में है। और उनका आह — व नाला सुना पस उन्हें छुड़ाने उतरा हूँ, अब आ मैं तुझे मिस्र में भेजूँगा। \n\\p ",
"35": "जिस मूसा का उन्होंने ये कह कर इन्कार किया था, तुझे किसने हाकिम और क़ाज़ी मुक़र्रर किया 'उसी को “ख़ुदा “ने हाकिम और छुड़ाने वाला ठहरा कर, उस फ़रिश्ते के ज़रिए से भेजा जो उस झाड़ी में नज़र आया था। ",
"36": "यही शख़्स उन्हें निकाल लाया और मिस्र और बहर — ए — क़ुलज़ूम और वीराने में चालीस बरस तक अजीब काम और निशान दिखाए। ",
"37": "ये वही मूसा है, जिसने बनी इस्राईल से कहा, ख़ुदा तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिए मुझ सा एक नबी पैदा करेगा। \n\\p ",
"38": "ये वही है, जो वीराने की कलीसिया में उस फ़रिश्ते के साथ जो कोह— ए— सीना पर उससे हम कलाम हुआ, और हमारे बाप दादा के साथ था उसी को ज़िन्दा कलाम मिला कि हम तक पहुँचा दे। ",
"39": "मगर हमारे बाप दादा ने उसके फ़रमाँबरदार होना न चाहा, बल्कि उसको हटा दिया और उनके दिल मिस्र की तरफ़ माइल हुए। ",
"40": "और उन्होंने हारून से कहा, हमारे लिए ऐसे मा'बूद बना‘ जो हमारे आगे आगे चलें, क्यूँकि ये मूसा जो हमें मुल्क — ए मिस्र से निकाल लाया, हम नहीं जानते कि वो क्या हुआ। \n\\p ",
"41": "और उन दिनों में उन्होंने एक बछड़ा बनाया, और उस बुत को क़ुर्बानी चढ़ाई, और अपने हाथों के कामों की ख़ुशी मनाई। ",
"42": "पस ख़ुदा ने मुँह मोड़कर उन्हें छोड़ दिया कि आसमानी फ़ौज को पूजें चुनाँचे नबियों की किताबों में लिखा है ऐ इस्राईल के घराने क्या तुम ने वीराने में चालीस बरस मुझको ज़बीहे और क़ुर्बानियाँ गुज़रानी? ",
"43": "बल्कि तुम मोलक के ख़ेमे और रिफ़ान देवता के तारे को लिए फिरते थे, या'नी उन मूरतों को जिन्हें तुम ने सज्दा करने के लिए बनाया था। पस में तुम्हें बाबुल के परे ले जाकर बसाऊँगा। \n\\p ",
"44": "शहादत का ख़ेमा वीराने में हमारे बाप दादा के पास था, जैसा कि मूसा से कलाम करने वाले ने हुक्म दिया था, जो नमूना तूने देखा है, उसी के मुवाफ़िक़ इसे बना। ",
"45": "उसी ख़ेमे को हमारे बाप दादा अगले बुज़ुर्गों से हासिल करके ईसा' के साथ लाए जिस वक़्त उन क़ौमों की मिल्कियत पर क़ब्ज़ा किया जिनको ख़ुदा ने हमारे बाप दादा के सामने निकाल दिया, और वो दाऊद के ज़माने तक रहा। ",
"46": "उस पर ख़ुदा की तरफ़ से फ़ज़ल हुआ, और उस ने दरख़्वास्त की, कि में या'क़ूब के ख़ुदा के वास्ते घर तैयार करूँ। \n\\p ",
"47": "मगर सुलैमान ने उस के लिए घर बनाया। \n\\p ",
"48": "लेकिन ख़ुदा हाथ के बनाए हुए घरों में नहीं रहता “चुनाँचे “नबी कहता है कि\n\\q ",
"49": "ख़ुदावन्द फ़रमाता है, आसमान मेरा तख़्त\n\\q और ज़मीन मेरे पाँव तले की चौकी है,\n\\q तुम मेरे लिए कैसा घर बनाओगे,\n\\q या मेरी आरामगाह कौन सी है?\n\\q ",
"50": "क्या ये सब चीज़ें मेरे हाथ से नहीं बनी’\n\\p ",
"51": "ऐ गर्दन कशो, दिल और कान के नामख़्तूनों, तुम हर वक़्त रूह — उल — क़ुद्दूस की मुख़ालिफ़त करते हो; जैसे तुम्हारे बाप दादा करते थे, वैसे ही तुम भी करते हो। ",
"52": "नबियों में से किसको तुम्हारे बाप दादा ने नहीं सताया? उन्हों ने तो उस रास्तबाज़ के आने की पेश — ख़बरी देनेवालों को क़त्ल किया, और अब तुम उसके पकड़वाने वाले और क़ातिल हुए। ",
"53": "तुम ने फ़रिश्तों के ज़रिए से शरी'अत तो पाई, पर अमल नहीं किया।” \n\\p ",
"54": "जब उन्होंने ये बातें सुनीं तो जी में जल गए, और उस पर दाँत पीसने लगे। ",
"55": "मगर उस ने रूह — उल— क़ुद्दूस से भरपूर होकर आसमान की तरफ़ ग़ौर से नज़र की, और ख़ुदा का जलाल और ईसा' को ख़ुदा की दहनी तरफ़ खड़ा देख कर कहा। ",
"56": "“देखो मैं आसमान को खुला, और इबने — आदम को ख़ुदा की दहनी तरफ़ खड़ा देखता हूँ”\n\\p ",
"57": "मगर उन्होंने बड़े ज़ोर से चिल्लाकर अपने कान बन्द कर लिए, और एक दिल होकर उस पर झपटे। ",
"58": "और शहर से बाहर निकाल कर उस पर पथराव करने लगे, और गवाहों ने अपने कपड़े साऊल नाम एक जवान के पाँव के पास रख दिए। \n\\p ",
"59": "पस स्तिफ़नूस पर पथराव करते रहे, और वो ये कह कर दुआ करता रहा “ऐ ख़ुदावन्द ईसा' मेरी रूह को क़ुबूल कर।” ",
"60": "फिर उस ने घुटने टेक कर बड़ी आवाज़ से पुकारा, ऐ ख़ुदावन्द ये गुनाह इन के ज़िम्मे न लगा।” और ये कह कर सो गया। ",
"front": "\\s स्तिफ़नुस का कचहरी से बात करना\n\\p "
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43
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@ -0,0 +1,43 @@
{
"1": "और साऊल उस के क़त्ल में शामिल था। उसी दिन उस कलीसिया पर जो यरूशलीम में थी, बड़ा ज़ुल्म बर्पा हुआ,\n\\s ज़ुलमों से मोमीनों के का बिखर जाना\n\\p और रसूलों के सिवा सब लोग यहूदिया और सामरिया के चारों तरफ़ फैल गए। ",
"2": "और दीनदार लोग स्तिफ़नुस को दफ़्न करने कि लिए ले गए, और उस पर बड़ा मातम किया। ",
"3": "और साऊल कलीसिया को इस तरह तबाह करता रहा, कि घर घर घुसकर और ईमानदार मर्दों और औरतों को घसीट कर क़ैद करता था,\n\\p ",
"4": "जो इधर उधर हो गए थे, वो कलाम की ख़ुशख़बरी देते फिरे। ",
"5": "और फ़िलिप्पुस सूब — ए सामरिया में जाकर लोगों में मसीह का ऐलान करने लगा। \n\\p ",
"6": "और जो मोजिज़े फ़िलिप्पुस दिखाता था, लोगों ने उन्हें सुनकर और देख कर बिल— इत्तफ़ाक़ उसकी बातों पर जी लगाया। ",
"7": "क्यूँकि बहुत सारे लोगों में से बदरूहें बड़ी आवाज़ से चिल्ला चिल्लाकर निकल गईं, और बहुत से मफ़्लूज और लंगड़े अच्छे किए गए। ",
"8": "और उस शहर में बड़ी ख़ुशी हुई। \n\\p ",
"9": "उस से पहले शामा'ऊन नाम का एक शख़्स उस शहर में जादूगरी करता था, और सामरिया के लोगों को हैरान रखता और ये कहता था, कि मैं भी कोई बड़ा शख़्स हूँ। ",
"10": "और छोटे से बड़े तक सब उसकी तरफ़ मुतवज्जह होते और कहते थे, ये शख़्स ख़ुदा की वो क़ुदरत है, जिसे बड़ी कहते हैं। ",
"11": "वह इस लिए उस की तरफ़ मुतवज्जह होते थे, कि उस ने बड़ी मुद्दत से अपने जादू की वजह से उनको हैरान कर रखा था,\n\\p ",
"12": "लेकिन जब उन्होंने फ़िलिप्पुस का यक़ीन किया जो “ख़ुदा “की बादशाही और ईसा' मसीह के नाम की ख़ुशख़बरी देता था, तो सब लोग चाहे मर्द हो चाहे औरत बपतिस्मा लेने लगे। ",
"13": "और शमा'ऊन ने ख़ुद भी यक़ीन किया और बपतिस्मा लेकर फ़िलिप्पुस के साथ रहा, और निशान और मोजिज़े देखकर हैरान हुआ। \n\\p ",
"14": "जब रसूलों ने जो यरूशलीम में थे सुना, कि सामरियों ने “ख़ुदा “का कलाम क़ुबूल कर लिया है, तो पतरस और यूहन्ना को उन के पास भेजा। ",
"15": "उन्हों ने जाकर उनके लिए दुआ की कि रूह — उल — क़ुद्दूस पाएँ। ",
"16": "क्यूँकि वो उस वक़्त तक उन में से किसी पर नाज़िल ना हुआ था, उन्होंने सिर्फ़ ख़ुदावन्द ईसा' के नाम पर बपतिस्मा लिया था। ",
"17": "फिर उन्होंने उन पर हाथ रख्खे, और उन्होंने रूह — उल — क़ुद्दूस पाया। \n\\p ",
"18": "जब शामा'ऊन ने देखा कि रसूलों के हाथ रखने से रूह — उल— क़ुद्दूस दिया जाता है, तो उनके पास रुपऐ लाकर कहा, ",
"19": "“मुझे भी यह इख़्तियार दो, कि जिस पर मैं हाथ रख्खूँ, वो रूह — उल — क़ुद्दूस पाए।” \n\\p ",
"20": "पतरस ने उस से कहा, तेरे रुपऐ तेरे साथ ख़त्म हो, इस लिए कि तू ने ख़ुदा की बख़्शिश को रुपऐऊँ से हासिल करने का ख़याल किया। ",
"21": "तेरा इस काम में न हिस्सा है न बख़रा क्यूँकि तेरा दिल ख़ुदा के नज़दीक ख़ालिस नहीं। ",
"22": "पस अपनी इस बुराई से तौबा कर और ख़ुदा से दुआ कर शायद तेरे दिल के इस ख़याल की मु'आफ़ी हो। \n\\p ",
"23": "क्यूँकि मैं देखता हूँ कि तू पित की सी कड़वाहट और नारास्ती के बन्द में गिरफ़्तार है।” ",
"24": "शमा'ऊन ने जवाब में कहा, तुम मेरे लिए ख़ुदावन्द से दुआ करो कि जो बातें तुम ने कही उन में से कोई मुझे पेश ना आए।” \n\\p ",
"25": "फिर वो गवाही देकर और ख़ुदावन्द का कलाम सुना कर यरूशलीम को वापस हुए, और सामरियों के बहुत से गाँव में ख़ुशख़बरी देते गए। \n\\p ",
"26": "फिर ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने फ़िलिप्पुस से कहा, उठ कर दक्खिन की तरफ़ उस राह तक जा जो यरूशलीम से ग़ज़्ज़ा शहर को जाती है, और जंगल में है, ",
"27": "वो उठ कर रवाना हुआ, तो देखो एक हब्शी ख़ोजा आ रहा था, वो हब्शियों की मलिका कन्दाके का एक वज़ीर और उसके सारे ख़ज़ाने का मुख़्तार था, और यरूशलीम में इबादत के लिए आया था। \n\\p ",
"28": "वो अपने रथ पर बैठा हुआ और यसा'याह नबी के सहीफ़े को पढ़ता हुआ वापस जा रहा था। ",
"29": "पाक रूह ने फ़िलिप्पुस से कहा, नज़दीक जाकर उस रथ के साथ होले।” ",
"30": "पस फ़िलिप्पुस ने उस तरफ़ दौड़ कर उसे यसा'याह नबी का सहीफ़ा पढ़ते सुना और कहा, जो तू पढ़ता है उसे समझता भी है?” ",
"31": "ये मुझ से क्यूँ कर हो सकता है जब तक कोई मुझे हिदायत ना करे? और उसने फ़िलिप्पुस से दरख़्वास्त की कि मेरे साथ आ बैठ। \n\\p ",
"32": "किताब— ए— मुक़द्दस की जो इबारत वो पढ़ रहा था, ये थी:\n\\q “लोग उसे भेड़ की तरह ज़बह करने को ले गए,\n\\q और जिस तरह बर्रा अपने बाल कतरने वाले के सामने बे — ज़बान होता है।” \n\\q उसी तरह वो अपना मुँह नहीं खोलता। \n\\q ",
"33": "उसकी पस्तहाली में उसका इन्साफ़ न हुआ,\n\\q और कौन उसकी नस्ल का हाल बयान करेगा?\n\\q क्यूँकि ज़मीन पर से उसकी ज़िन्दगी मिटाई जाती है। \n\\p ",
"34": "ख़ोजे ने फ़िलिप्पुस से कहा, मैं तेरी मिन्नत करके पुछता हूँ, कि नबी ये किस के हक़ में कहता है, अपने या किसी दूसरे के हक़ में?” ",
"35": "फ़िलिप्पुस ने अपनी ज़बान खोलकर उसी लिखे हुए से शुरू किया और उसे ईसा' की ख़ुशख़बरी दी। \n\\p ",
"36": "और राह में चलते चलते किसी पानी की जगह पर पहूँचे; ख़ोजे ने कहा, देख पानी मौजूद है अब मुझे बपतिस्मा लेने से कौन सी चीज़ रोकती है?” ",
"37": "फ़िलिप्पुस ने कहा, अगर तू दिल ओ— जान से ईमान लाए तो बपतिस्मा ले सकता है।” उसने जवाब में कहा, में ईमान लाता हूँ कि ईसा' मसीह ख़ुदा का बेटा है।” ",
"38": "पस उसने रथ को खड़ा करने का हुक्म दिया और फ़िलिप्पुस और ख़ोजा दोनों पानी में उतर पड़े और उसने उसको बपतिस्मा दिया। \n\\p ",
"39": "जब वो पानी में से निकल कर उपर आए तो “ख़ुदावन्द “का रूह फ़िलिप्पुस को उठा ले गया और ख़ोजा ने उसे फिर न देखा, क्यूँकि वो ख़ुशी करता हुआ अपनी राह चला गया। ",
"40": "और फ़िलिप्पुस अश्दूद क़स्बा में आ निकला और क़ैसरिया शहर में पहुँचने तक सब शहरों में ख़ुशख़बरी सुनाता गया। ",
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46
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@ -0,0 +1,46 @@
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"1": "और साऊल जो अभी तक ख़ुदावन्द के शागिर्दों को धमकाने और क़त्ल करने की धुन में था। सरदार काहिन के पास गया। ",
"2": "और उस से दमिश्क़ के इबादतख़ानों के लिए इस मज़्मून के ख़त माँगे कि जिनको वो इस तरीक़े पर पाए, मर्द चाहे औरत, उनको बाँधकर यरूशलीम में लाए। \n\\p ",
"3": "जब वो सफ़र करते करते दमिश्क़ के नज़दीक पहुँचा तो ऐसा हुआ कि यकायक आसमान से एक नूर उसके पास आ, चमका। ",
"4": "और वो ज़मीन पर गिर पड़ा और ये आवाज़ सुनी “ऐ साऊल, ऐ साऊल, तू मुझे क्यूँ सताता है?”\n\\p ",
"5": "उस ने पूछा, “ऐ ख़ुदावन्द, तू कौन हैं?” उस ने कहा,, मैं ईसा' हूँ जिसे तू सताता है। ",
"6": "मगर उठ शहर में जा, और जो तुझे करना चाहिए वो तुझसे कहा जाएगा।” ",
"7": "जो आदमी उसके हमराह थे, वो ख़ामोश खड़े रह गए, क्यूँकि आवाज़ तो सुनते थे, मगर किसी को देखते न थे। \n\\p ",
"8": "और साऊल ज़मीन पर से उठा, लेकिन जब आँखें खोलीं तो उसको कुछ दिखाई न दिया, और लोग उसका हाथ पकड़ कर दमिश्क़ शहर में ले गए। ",
"9": "और वो तीन दिन तक न देख सका, और न उसने खाया न पिया। \n\\p ",
"10": "दमिश्क़ में हननियाह नाम एक शागिर्द था, उस से ख़ुदावन्द ने रोया में कहा, ऐ हननियाह “उस ने कहा, ऐ ख़ुदावन्द, मैं हाज़िर हूँ।” ",
"11": "ख़ुदावन्द ने उस से कहा, उठ, उस गली में जा जो सीधा' कहलाता है। और यहूदाह के घर में साऊल नाम तर्सुसी शहरी को पूछ ले क्यूँकि देख वो दुआ कर रहा है। ",
"12": "और उस ने हननियाह नाम एक आदमी को अन्दर आते और अपने ऊपर हाथ रखते देखा है, ताकि फिर बीना हो।” \n\\p ",
"13": "हननियाह ने जावाब दिया कि ऐ ख़ुदावन्द, मैं ने बहुत से लोगों से इस शख़्स का ज़िक्र सुना है, कि इस ने यरूशलीम में तेरे मुक़द्दसों के साथ कैसी कैसी बुराइयां की हैं। ",
"14": "और यहाँ उसको सरदार काहिनों की तरफ़ से इख़्तियार मिला है, कि जो लोग तेरा नाम लेते हैं, उन सब को बाँध ले।” ",
"15": "मगर ख़ुदावन्द ने उस से कहा कि तू “जा, क्यूँकि ये क़ौमों, बादशाहों और बनी इस्राईल पर मेरा नाम ज़ाहिर करने का मेरा चुना हुआ वसीला है। ",
"16": "और में उसे जता दूँगा कि उसे मेरे नाम के ख़ातिर किस क़दर दुःख उठाना पड़ेगा\n\\p ",
"17": "पस हननियाह जाकर उस घर में दाख़िल हुआ और अपने हाथ उस पर रखकर कहा, ऐ भाई शाऊल उस ख़ुदावन्द या'नी ईसा' जो तुझ पर उस राह में जिस से तू आया ज़ाहिर हुआ था, उसने मुझे भेजा है, कि तू बीनाई पाए, और रूहे पाक से भर जाए।” ",
"18": "और फ़ौरन उसकी आँखों से छिल्के से गिरे और वो बीना हो गया, और उठ कर बपतिस्मा लिया। ",
"19": "फिर कुछ खाकर ताक़त पाई,\n\\p और वो कई दिन उन शागिर्दों के साथ रहा, जो दमिश्क़ में थे। \n\\p ",
"20": "और फ़ौरन इबादतख़ानों में ईसा' का ऐलान करने लगा, कि “वो “ख़ुदा “का बेटा है। ",
"21": "और सब सुनने वाले हैरान होकर कहने लगे कि “क्या ये वो शख़्स नहीं है, जो यरूशलीम में इस नाम के लेने वालों को तबाह करता था, और यहाँ भी इस लिए आया था, कि उनको बाँध कर सरदार काहिनों के पास ले जाए?” ",
"22": "लेकिन साऊल को और भी ताक़त हासिल होती गई, और वो इस बात को साबित करके कि “मसीह यही है “दमिश्क़ के रहने वाले यहूदियों को हैरत दिलाता रहा। \n\\p ",
"23": "और जब बहुत दिन गुज़र गए, तो यहूदियों ने उसे मार डालने का मशवरा किया। ",
"24": "मगर उनकी साज़िश साऊल को मालूम हो गई, वो तो उसे मार डालने के लिए रात दिन दरवाज़ों पर लगे रहे। ",
"25": "लेकिन रात को उसके शागिर्दों ने उसे लेकर टोकरे में बिठाया और दीवार पर से लटका कर उतार दिया। \n\\p ",
"26": "उस ने यरूशलीम में पहुँच कर शागिर्दों में मिल जाने की कोशिश की और सब उस से डरते थे, क्यूँकि उनको यक़ीन न आता था, कि ये शागिर्द है। ",
"27": "मगर बरनबास ने उसे अपने साथ रसूलों के पास ले जाकर उन से बयान किया कि इस ने इस तरह राह में “ख़ुदावन्द “को देखा और उसने इस से बातें की और उस ने दमिश्क़ में कैसी दिलेरी के साथ ईसा' के नाम से एलान किया। \n\\p ",
"28": "पस वो यरूशलीम में उनके साथ जाता रहा। ",
"29": "और दिलेरी के साथ ख़ुदावन्द के नाम का ऐलान करता था, और यूनानी माइल यहूदियों के साथ गुफ़्तगू और बहस भी करता था, मगर वो उसे मार डालने के दर पै थे। ",
"30": "और भाइयों को जब ये मा'लूम हुआ, तो उसे क़ैसरिया में ले गए, और तरसुस को रवाना कर दिया। \n\\p ",
"31": "पस तमाम यहूदियो और गलील और सामरिया में कलीसिया को चैन हो गया और उसकी तरक़्क़ी होती गई और वो “ख़ुदावन्द “के ख़ौफ़ और रूह — उल — क़ुद्दूस की तसल्ली पर चलती और बढ़ती जाती थी। \n\\p ",
"32": "और ऐसा हुआ कि पतरस हर जगह फिरता हुआ उन मुक़द्दसों के पास भी पहुँचा जो लुद्दा में रहते थे। \n\\p ",
"33": "वहाँ ऐनियास नाम एक मफ़्लूज को पाया जो आठ बरस से चारपाई पर पड़ा था। ",
"34": "पतरस ने उस से कहा, ऐ “ऐनियास, ईसा' मसीह तुझे शिफ़ा देता है। उठ आप अपना बिस्तरा बिछा।” वो फ़ौरन उठ खड़ा हुआ। ",
"35": "तब लुद्दा और शारून के सब रहने वाले उसे देखकर “ख़ुदावन्द “की तरफ़ रुजू लाए। \n\\p ",
"36": "और याफ़ा शहर में एक शागिर्द थी, तबीता नाम जिसका तर्जुमा हरनी है, वो बहुत ही नेक काम और ख़ैरात किया करती थी। ",
"37": "उन्हीं दिनों में ऐसा हुआ कि वो बीमार होकर मर गई, और उसे नहलाकर बालाख़ाने में रख दिया। \n\\p ",
"38": "और चूँकि लुद्दा याफ़ा के नज़दीक था, शागिर्दों ने ये सुन कर कि पतरस वहाँ है दो आदमी भेजे और उस से दरख़्वास्त की कि हमारे पास आने में देर न कर।” ",
"39": "पतरस उठकर उनके साथ हो लिया, जब पहुँचा तो उसे बालाख़ाने में ले गए, और सब बेवाएँ रोती हुई उसके पास आ खड़ी हुईं और जो कुरते और कपड़े हरनी ने उनके साथ में रह कर बनाए थे, दिखाने लगीं। \n\\p ",
"40": "पतरस ने सब को बाहर कर दिया और घुटने टेक कर दुआ की, फिर लाश की तरफ़ मुतवज्जह होकर कहा, ऐ तबीता उठ पस उसने आँखें खोल दीं और पतरस को देखकर उठ बैठी। ",
"41": "उस ने हाथ पकड़ कर उसे उठाया और मुक़द्दसों और बेवाओं को बुला कर उसे ज़िन्दा उनके सुपुर्द किया। ",
"42": "ये बात सारे याफ़ा में मशहूर हो गई, और बहुत सारे “ख़ुदावन्द पर ईमान ले आए। ",
"43": "और ऐसा हुआ कि वो बहुत दिन याफ़ा में शमा'ऊन नाम दब्बाग़ के यहाँ रहा। ",
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