BCS_India_hi_iev_rom_book/rom/11.json

40 lines
23 KiB
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"1": "यदि मैं पूछूँ, “क्या परमेश्वर ने अपने लोगों को अर्थात् यहूदियों को अस्वीकार कर दिया है?” तो उत्तर यह होगा, “निश्चय ही नहीं! स्मरण रखो, कि मैं भी इस्राएली लोगों में से हूँ। मैं अब्राहम का वंशज हूँ, और मैं बिन्यामीन गोत्र का हूँ, परन्तु परमेश्वर ने मुझे अस्वीकार नहीं किया है! ",
"2": "नहीं, परमेश्वर ने अपने लोगों का तिरस्कार नहीं किया है, जिन्हें उन्होंने बहुत समय पहले अपनी प्रजा होने के लिए चुना, जिन्हें वह विशेष रूप से आशीषित करते हैं। स्मरण रखो कि एलिय्याह ने गलती से इस्राएल के लोगों के विषय में परमेश्वर से शिकायत की, जैसे पवित्रशास्त्र में कहा गया है: ",
"3": "“हे प्रभु, उन्होंने आपके सारे भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला है, और आपकी वेदियों को नष्ट कर दिया है। केवल मैं ही एक हूँ जो आप पर विश्वास करता हूँ और जीवित हूँ, और अब वे मुझे भी मारने का प्रयास कर रहे हैं!” ",
"4": "परमेश्वर ने उसे इस प्रकार उत्तर दिया: “तू अकेला नहीं है जो मेरे प्रति विश्वासयोग्य है, मैंने इस्राएल के सात हजार पुरुषों को अपने लिए रखा है, वे लोग जिन्होंने झूठे देवता बाल की उपासना नहीं की है।” ",
"5": "उसी प्रकार, इस समय भी हम यहूदियों का एक बचा हुआ समूह है, जो विश्वासी बन गया है। परमेश्वर ने हमें विश्वासी होने के लिए चुना है केवल इसलिए क्योंकि वह हम पर दया करते हैं, जिसके हम योग्य नहीं हैं। ",
"6": "क्योंकि यह केवल इसलिए है कि वह उन लोगों पर दया करते हैं जिन्हें वह चुनते हैं, तो यह इस कारण नहीं है कि उन्होंने अच्छे कार्य किए हैं, परन्तु इसलिए की परमेश्वर ने उन्हें चुना है। यदि परमेश्वर लोगों को इसलिए चुनते क्योंकि उन्होंने अच्छे कार्य किए थे, तो उन्हें उन पर दया करने की आवश्यकता नहीं होती।\n\\p ",
"7": "क्योंकि परमेश्वर ने इस्राएल के केवल कुछ लोगों को चुना है, इससे हमें यह पता चलता है कि अधिकांश यहूदी जिसकी खोज कर रहे थे उसे पाने में वे असफल रहे—( यद्यपि जिन यहूदियों को परमेश्वर ने चुना था, उन्हें वह मिले)। अधिकांश यहूदी यह समझने के इच्छुक नहीं थे कि परमेश्वर उनसे क्या कह रहे हैं। ",
"8": "यशायाह ने इसी के विषय में लिखा था: “परमेश्वर ने उन्हें हठीला कर दिया। उन्हें मसीह के विषय में सच्चाई को समझना चाहिए था, परन्तु वे समझ नहीं सकते हैं। जब परमेश्वर कहते हैं, तब उन्हें उनकी आज्ञा माननी चाहिए, परन्तु वे नहीं करते। यह आज के दिन तक ऐसा ही है।” ",
"9": "यहूदी लोग मुझे राजा दाऊद की बात स्मरण दिलाते हैं, जब उसने परमेश्वर से कहा कि उसके शत्रुओं की इंद्रियाँ सुस्त हो जाएँ: “उन्हें मूर्ख बना दें, ऐसे पशुओं के समान जो जाल या फन्दे में पड़ते हैं! उन्हें सुरक्षा का ऐसा आभास हो जैसे वे अपने भोजों में सुरक्षित रहते हैं, परन्तु उन पर्वों को ऐसे समय बना दें जब आप उन्हें पकड़ लेंगे, और वे पाप करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप आप उन्हें नष्ट कर देंगे। ",
"10": "वे संकट को न देख सकें जब वह उनके ऊपर आए। आप उनकी चिन्ताओं के कारण उन्हें सदा कष्ट सहने दें।”\n\\p ",
"11": "यदि मैं पूछूँ, “जब यहूदियों ने मसीह पर विश्वास नहीं करके पाप किया, तो क्या इसका अर्थ यह था कि वे सदा के लिए परमेश्वर से अलग हो गए?” मैं उत्तर दूँगा, “नहीं, वे निश्चय ही परमेश्वर से सदा के लिए अलग नहीं हुए हैं! इसकी अपेक्षा, कि उन्होंने पाप किया, परमेश्वर गैर-यहूदियों को बचा रहे हैं जिससे की यहूदियों को गैर-यहूदियों की आशीषों के कारण उनसे ईर्ष्या हो, और यहूदी भी मसीह को उन्हें बचाने के लिए कहें।” ",
"12": "जब यहूदियों ने मसीह का तिरस्कार किया, तो परिणाम यह हुआ कि परमेश्वर ने पृथ्‍वी के अन्य लोगों को विश्वास करने का अवसर दे कर उन्हें भरपूर आशीष दी। और जब यहूदी आत्मिक रूप से असफल हो गए, तो परिणाम यह हुआ कि परमेश्वर ने गैर-यहूदियों को बहुतायत से आशीष दी। क्योंकि यह सच है, तो यह सोचो कि यह कैसा अद्भुत होगा जब परमेश्वर की चुनी हुई यहूदियों की पूरी संख्या मसीह पर विश्वास करेगी!\n\\p ",
"13": "अब मैं तुम गैर-यहूदियों से कह रहा हूँ कि इसके आगे क्या होगा। मैं तुम्हारे समान अन्य गैर-यहूदियों के लिए प्रेरित हूँ, और मैं इस कार्य को बहुत महत्व देता हूँ जिसे परमेश्वर ने मुझे करने के लिए नियुक्त किया है। ",
"14": "परन्तु मैं यह भी आशा करता हूँ कि मेरे इस परिश्रम के द्वारा मैं अपने साथी यहूदियों को ईर्ष्या दिलाऊँ, जिसके परिणामस्वरूप उनमें से कुछ विश्वास करें और इस प्रकार बचाए जाएँ। ",
"15": "परमेश्वर ने मेरे साथी यहूदियों में से अधिकांश का तिरस्कार कर दिया क्योंकि उन्होंने विश्वास नहीं किया, जिसका परिणाम यह हुआ की परमेश्वर ने अपने और पृथ्‍वी के अन्य लोगों के बीच शान्ति बनाईं। तो यदि अधिकांश यहूदियों द्वारा मसीह का तिरस्कार करने के बाद यह हुआ, तो उन उत्तम बातों के विषय में सोचो जो यहूदियों के विश्वास करने के बाद होंगी। यह ऐसा होगा जैसे की वे मरे हुओं में से जी उठे हैं! ",
"16": "जैसे गूँधा हुआ आटा परमेश्वर का ठहरेगा यदि लोग उसके पहले भाग से पकाई गई रोटी परमेश्वर के पास लाते हैं, उसी प्रकार सब यहूदी परमेश्वर के ठहरेंगे क्योंकि उनके पूर्वज परमेश्वर के थे, और जैसे एक पेड़ की शाखाएँ परमेश्वर की ठहरेंगी यदि जड़ें परमेश्वर की ठहरेंगी, इसलिए हमारे महान यहूदी पूर्वजों के वंशज भी एक दिन परमेश्वर के ठहरेंगे।\n\\p ",
"17": "परमेश्वर ने अनेक यहूदियों का तिरस्कार कर दिया, जैसे लोग पेड़ की सूखी शाखाओं को तोड़ देते हैं। और तुम में से प्रत्येक गैर-यहूदी जिसे परमेश्वर ने स्वीकार कर लिया है वह एक जंगली जैतून के पेड़ की शाखा के समान है जो एक अच्छे जैतून के पेड़ के तने में जोड़ा गया है। परमेश्वर ने तुमको हमारे पहले यहूदी पूर्वजों के साथ आशीष दे कर तुम्हें लाभ पहुँचाया है, जैसे शाखाएँ जैतून के वृक्ष की जड़ से भोजन का लाभ लेती हैं। ",
"18": "परन्तु तुम गैर-यहूदियों के लिए यहूदियों को तुच्छ जानना उचित नहीं जिन्हें परमेश्वर ने अस्वीकार कर दिया था, भले ही वे उन शाखाओं के समान हों, जो किसी पेड़ से तोड़े गए हों! यदि तुम इस बात पर घमण्ड करना चाहते हो कि परमेश्वर ने तुमको कैसे बचाया है, तो यह स्मरण रखो: शाखाएँ जड़ को नहीं खिलाती, इसकी अपेक्षा, जड़ शाखाओं को खिलाती है। इसी प्रकार, तुमने यहूदियों से जो कुछ प्राप्त किया है, उसके कारण परमेश्वर ने तुम्हारी सहायता की है! परन्तु तुमने यहूदियों को कुछ नहीं दिया है जो उनकी सहायता कर सके। ",
"19": "हो सकता है कि तुम मुझसे यह कहो, “परमेश्वर ने यहूदियों को अस्वीकार कर दिया जैसे लोग पेड़ से बुरी शाखाओं को तोड़ देते और उन्हें फेंक देते हैं, और उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि वह हम गैर-यहूदियों को स्वीकार कर सकें, जैसे लोग जंगली जैतून के पेड़ की शाखाओं को एक अच्छे पेड़ के तने के साथ जोड़ देते हैं।” ",
"20": "मैं उत्तर दूँगा कि यह सच है। क्योंकि यहूदियों ने मसीह में विश्वास नहीं किया, इसलिए परमेश्वर ने उन्हें अस्वीकार कर दिया। क्योंकि तुम मसीह पर विश्वास करते हो केवल इसी के कारण तुम दृढ़ खड़े हो! तो गर्व न करो, परन्तु भय से भरे रहो! ",
"21": "क्योंकि परमेश्वर ने उन अविश्वासी यहूदियों को नहीं छोड़ा, जो वृक्ष की प्राकृतिक शाखाओं के समान जड़ से उगकर बड़े हुए थे, तो जान लो, यदि तुम विश्वास नहीं करते, तो वह तुम्हें भी नहीं छोड़ेंगे!\n\\p ",
"22": "ध्यान दो, कि परमेश्वर दयालु भाव से कार्य करते हैं, परन्तु वह कठोरता का व्यवहार भी करते हैं। उन्होंने मसीह में विश्वास नहीं करने वाले यहूदियों के प्रति कठोरता का व्यवहार किया। परमेश्वर ने तुम्हारे साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार किया है, परन्तु यदि तुम मसीह पर भरोसा नहीं रखते हो, तो वह तुम्हारे साथ भी कठोरता का व्यवहार करेंगे। ",
"23": "और यदि यहूदी मसीह में विश्वास करेंगे, तो परमेश्वर उन्हें फिर से पेड़ से जोड़ देंगे, क्योंकि परमेश्वर ऐसा करने में सक्षम हैं। ",
"24": "तुम गैर-यहूदी जो पहले परमेश्वर से अलग थे, यहूदियों को दी गई परमेश्वर की आशीषों का लाभ उठा रहे हो। यह ऐसा है, जैसे शाखाओं को एक जंगली जैतून के पेड़ से काट दिया हो - एक पेड़ जिसे किसी ने नहीं लगाया पर स्वयं बढ़ा—और सामान्य तौर पर लोग जैसा करते हैं उसके विपरीत, उन्हें एक जैतून के वृक्ष के साथ साटा। तो परमेश्वर कितनी अधिक सरलता से यहूदियों को वापस ग्रहण करेंगे क्योंकि वे पहले उनके ही थे! यह मूल शाखाओं को जिन्हें किसी ने काट दिया था, वापस जैतून के पेड़ में लगाने जैसा होगा, जिसकी वे पहले से थी!\n\\p ",
"25": "मेरे गैर-यहूदी साथी विश्वासियों, मैं निश्चय ही तुम्हें इस गुप्त सच्चाई को समझाना चाहता हूँ, कि तुम यह न सोचो कि तुम सब कुछ जानते हो: इस्राएल के बहुत से लोग आगे भी हठीले रहेंगे, जब तक सब गैर-यहूदी जिन्हें परमेश्वर ने चुना है, वे परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर लेते हैं। ",
"26": "और तब परमेश्वर सब इस्राएलियों को बचाएँगे। फिर पवित्रशास्त्र का ये शब्द सच हो जाएगा:\n\\p “जो अपने लोगों को मुक्त करते हैं, वह वहाँ से आएँगे, जहाँ से परमेश्वर यहूदियों के बीच हैं। वह इस्राएलियों के पापों को क्षमा करेंगे।”\n\\p ",
"27": "और जैसा कि परमेश्वर कहते हैं,\n\\p “जो वाचा मैं उनके साथ बाँधूँगा, उसके द्वारा मैं उनके पापों को क्षमा करूँगा।”\n\\p ",
"28": "यहूदियों ने मसीह के विषय में सुसमाचार को अस्वीकार कर दिया और अब परमेश्वर उन्हें अपना शत्रु मानते हैं। पर इस बात से तुम गैर-यहूदियों को सहायता मिली है। पर क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर ने चुना है, परमेश्वर अभी भी उनसे प्रेम करते हैं क्योंकि उन्होंने उनके पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी। ",
"29": "वह अब भी यहूदियों से प्रेम करते हैं, क्योंकि उन्होंने जो उन्हें देने कि प्रतिज्ञा की थी और अपनी प्रजा के रूप में जिस तरह उन्हें बुलाया था, इन बातों पर अपना मन नहीं बदला। ",
"30": "तुम गैर-यहूदियों ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी थी, परन्तु अब उन्होंने तुम्हारे प्रति दया का व्यवहार किया है, क्योंकि यहूदियों ने उनकी आज्ञा नहीं मानी। ",
"31": "इसी प्रकार, अब यहूदियों ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी है, इसका परिणाम यह है कि जिस प्रकार उन्होंने तुम्हारे प्रति दया का व्यवहार किया, उसी प्रकार वह उनके प्रति भी फिर से दया का व्यवहार करेंगे। ",
"32": "परमेश्वर ने घोषणा की और सिद्ध कर दिया है कि सब लोगों ने, यहूदियों और गैर-यहूदियों दोनों ने उनकी आज्ञा नहीं मानी है। उन्होंने यह घोषित किया है क्योंकि वह हम पर दया करना चाहते हैं।\n\\p ",
"33": "मैं आश्चर्य करता हूँ कि परमेश्वर के बुद्धि के कार्य और उनका सदा का ज्ञान कैसा महान हैं! कोई भी उन्हें समझ नहीं सकता और न ही उन्हें पूर्ण रूप से समझ सकता है। ",
"34": "मुझे स्मरण है कि पवित्रशास्त्र में लिखा है, “किसी ने कभी नहीं जाना कि परमेश्वर क्या सोचते हैं। कोई भी कभी उन्हें सलाह नहीं दे पाया।” ",
"35": "और, “किसी ने भी परमेश्वर को कुछ नहीं दिया है जिसके लिए परमेश्वर उसे प्रतिफल दें।”\n\\p ",
"36": "परमेश्वर ही ने सब वस्तुओं को बनाया है। वही सब वस्तुओं को सम्भालते हैं। उन्होंने उन्हें इसलिए बनाया था, कि वे उनकी प्रशंसा कर सकें। सब लोग सदा के लिए उनका सम्मान करें! ऐसा ही हो!",
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