{ "1": "सीनै पर्वत पर यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “तुम मूर्तियाँ नहीं बनाना या गढ़ी हुई मूर्तियों या पत्थरों को पवित्र मान कर परमेश्वर के समान उनकी उपासना नहीं करना। अपनी भूमि में काटे हुए पत्थर को रख कर दण्डवत् नहीं करना। तुम्हें केवल मेरी, अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करना है। ", "2": "सब्त के दिनों का सम्मान करना और मेरे पवित्र-तम्बू का मान रखना क्योंकि मैं, यहोवा वहाँ निवास करता हूँ। ", "3": "यदि तुम सच्चे मन से मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे ", "4": "तो मैं उचित समय तुम्हारे लिए वर्षा कराऊँगा जिससे तुम्हारी खेती फले और तुम्हारे वृक्षों में बहुत फल लगें। ", "5": "तुम अपनी फसलों को काटोगे और दाँवनी करोगे जब तक कि दाख की उपज तैयार न हो और दाख की उपज तब तक रहेगी जब तक अगले वर्ष के लिए तैयारी न करो। तुम्हारे पास भोजन की भरपूरी होगी। और तुम इस देश में सुरक्षित रहोगे। ", "6": "यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे तो तुम्हारे देश में और तुम्हारे सोते समय शान्ति का वातावरण बना रहेगा। तुम्हें किसी बात का भय नहीं होगा। मैं तुम्हारे देश से भयानक पशुओं को निकाल दूँगा। और तुम्हारे देश में युद्ध भी नहीं होगा। ", "7": "तुम अपने शत्रुओं का पीछा करके उन्हें तलवार से मार गिराओगे। ", "8": "एक सौ शत्रुओं को तुम पाँच ही खदेड़ दोगे। और यदि तुम्हारे शत्रु हजारों की संख्या में हों तो तुम सौ ही उन्हें खदेड़ने और घात करने के लिए पर्याप्त होगे। ", "9": "यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे तो मैं तुम्हें आशीष दूँगा और तुम्हारी सन्तान को बढ़ाऊँगा और अपनी वाचा की पूर्ति करूँगा। ", "10": "तुम पिछले वर्ष की फसल खाते रहोगे और जब नई फसल आ जाएगी तो उसे रखने के लिए पुरानी फसल हटा कर स्थान बनाने की आवश्यकता पड़ेगी। ", "11": "मैं अपने पवित्र-तम्बू में तुम्हारे मध्य निवास करूँगा। और तुम्हें कभी नहीं त्यागूँगा। ", "12": "मैं तुम्हारे मध्य निवास करूँगा और सदा तुम्हारा परमेश्वर रहूँगा और तुम सदा मेरे लोग होगे। ", "13": "मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ जो तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाया कि उनके दास न बने रहो। वहाँ तुम्हारी दशा पशुओं की सी थी जो मिस्रियों के लिए खेत जोत रहे थे परन्तु मैंने तुम्हारी गर्दनों पर से उनके जूए तोड़ दिए। मैंने तुम्हें सिर उठा कर जीने योग्य किया। ", "14": "परन्तु यदि तुम मुझ पर ध्यान न दो और मेरी आज्ञाओं को मानने से इन्कार करो, ", "15": "मेरे आदेशों और आज्ञाओं को तुच्छ समझो और मेरी आज्ञापालन न करो, और तुम्हारे साथ बाँधी गई मेरी वाचा का त्याग करो, ", "16": "तो मैं तुम्हारे साथ जो व्यवहार करूँगा, वह यह हैः मैं तुम पर विपत्तियाँ डालूँगा जिनसे तुम नष्ट हो जाओगे। तुम्हें भयंकर रोग लगेंगे। तुम्हारे लिए खेती करना व्यर्थ होगा क्योंकि शत्रु तुम्हारी फसलों को लूट लेंगे। ", "17": "मैं तुम्हें त्याग दूँगा और परिणामस्वरूप शत्रु तुम पर विजयी होंगे। वे तुम पर राज करेंगे और तुम भयभीत होकर भागोगे। जबकि वे तुम्हारा पीछा नहीं करेंगे। ", "18": "इन सब विपत्तियों के उपरान्त भी यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करने से इन्कार करो तो मैं तुम्हारे पापों का दण्ड देता रहूँगा। ", "19": "मैं तुम्हें इतना अधिक दण्ड दूँगा कि तुम्हारा हठ और घमण्ड चूर-चूर हो जाएगा। ", "20": "मैं तुम्हारे देश में वर्षा नहीं होने दूँगा। आकाश लोहा और भूमि पीतल के जैसे कठोर हो जाएँगे। ", "21": "बीज डालने के लिए तुम्हारा कठोर परिश्रम व्यर्थ हो जाएगा। क्योंकि कठोर भूमि पर खेती नहीं होगी और वृक्षों में फल नहीं लगेंगे। ", "22": "यदि तुम फिर भी मेरे विरुद्ध होकर मेरी आज्ञाओं को नहीं मानोगे तो मैं तुम पर विपत्तियाँ आने दूँगा। जिनका कारण तुम्हारे पाप होंगे। मैं वन पशुओं द्वारा तुम्हें नष्ट कराऊँगा। वे तुम्हारे बच्चों को मार डालेंगे और तुम्हारे पशुओं को खा जाएँगे। परिणामस्वरूप बहुत कम लोग जीवित बचेंगे कि तुम्हारी सड़कों पर चलते-फिरते दिखाई दें। ", "23": "जब तुम मेरे दण्ड का अनुभव करके भी मेरी ओर ध्यान नहीं दोगे और मेरे विरुद्ध व्यवहार करोगे ", "24": "तो मैं स्वयं ही तुम्हारा विरोध करके दण्ड पर दण्ड देता रहूँगा। ", "25": "मैंने तुम्हारे साथ वाचा बाँधी और तुमने उसकी आज्ञाओं को नहीं माना तो मैं तुम्हें दण्ड देने के लिए शत्रुओं की सेनाएँ भेजूँगा और यदि तुम शहरपनाह के पीछे छिप जाओगे तो भयंकर रोग भेजूँगा। मैं तुम्हें उन सेनाओं का बन्दी बनवा दूँगा। ", "26": "तुम्हारी भोजन सामग्री कम करवा दूँगा। तुम्हारे पास रोटियाँ पकाने का आटा कम पड़ जाएगा और परिणामस्वरूप दस स्त्रियाँ एक ही तन्दूर में रोटियाँ पका लेंगी। रोटियाँ पकाने के बाद जब बँटवारा होगा तब रोटियाँ कम पड़ेंगी। और वे सब भूखे ही रह जाएँगे। ", "27": "इन सब बातों के उपरान्त भी यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं करोगे और मेरा विरोध करते रहोगे ", "28": "तो मैं क्रोध में आकर तुम्हारा विरोधी हो जाऊँगा और तुम्हारे पापों का दण्ड देता चला जाऊँगा। ", "29": "तुम्हें ऐसा भूखा मारूँगा कि तुम अपने पुत्र-पुत्रियों को मार कर उनका माँस खा जाओगे। ", "30": "मैं सुनिश्चित करूँगा कि परदेशी उन पर्वतों को नष्ट करें जहाँ तुमने मूर्तिपूजा की है। मैं उन वेदियों को नष्ट कर दूँगा जहाँ तुमने देवी-देवताओं के लिए धूप जलाई है। और तुम्हारे शवों का ढेर उन्हीं निर्जीव देवी-देवताओं पर लगवा दूँगा, और तुमसे घृणा करूँगा। ", "31": "मैं तुम्हारे नगरों को मलबे का ढेर बना दूँगा। और तुम्हारी मूर्तियों के घर ढा दूँगा। तुम वेदी पर होम-बलि चढ़ाओगे परन्तु मैं प्रसन्न नहीं होऊँगा। ", "32": "मैं तुम्हारे देश को पूर्ण रूप से नष्ट कर दूँगा और तुम्हें जीतने वाले तुम्हारे शत्रु भी यह देख चकित हो जाएँगे। ", "33": "मैं तुम्हारे शत्रुओं को इस योग्य कर दूँगा कि वे तुम्हें तलवार से नाश करें और तुम्हें जाति-जाति में तितर-बितर कर दें। मैं सुनिश्चित करूँगा कि वे तुम्हारे देश को नष्ट करें और तुम्हारे नगरों को नष्ट करें। ", "34": "जब ऐसा होगा तब जितने समय तुम अपने शत्रुओं के देश में रहोगे उतने समय तक मैं तुम्हारे देश की भूमि को विश्राम दूँगा जो उन्हें प्रति सातवें वर्ष मिलना था। ", "35": "वह पूरा समय जब तुम्हारा देश निर्जन पड़ा रहेगा, भूमि विश्राम पाएगी। वह स्थिति तुम्हारे निवास से भिन्न होगी क्योंकि तुमने उसे विश्राम नहीं दिया था। ", "36": "तुम जो अपने शत्रुओं के देश में बसाए जाओगे तब ऐसे भयभीत रहोगे कि हवा के बहने की आवाज से ही डर कर भागोगे। ", "37": "तुम ऐसे भागोगे कि जैसे कोई तलवार ले कर तुम्हारा पीछा कर रहा है। और तुम गिर पड़ोगे चाहे कोई तुम्हारा पीछा भी नहीं कर रहा हो। भागते समय तुम आपस में ही टकरा कर गिरोगे। तुम खड़े रह कर अपने शत्रुओं का सामना नहीं कर पाओगे। ", "38": "तुम में से अनेक जन शत्रुओं के देश में ही मर जाएँगे। ", "39": "और जो जीवित रहेंगे वे भी अपने और अपने पूर्वजों के पाप के कारण धीरे-धीरे मर कर सड़ेंगे। ", "40": "", "41": "", "42": "तब मैं तुम्हारे पितरों, अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ बाँधी हुई वाचा और कनान देश के विषय में उनसे की गई अपनी प्रतिज्ञाओं पर ध्यान करूँगा। ", "43": "परन्तु इससे पूर्व मेरी प्रजा अपने देश से विस्थापित की जाएगी और परिणामस्वरूप वह देश निर्जन पड़ा रहेगा और मैं अपनी प्रजा को मेरी अवज्ञा और आदेश विरोध का दण्ड देता रहूँगा, तब देश विश्राम करेगा। ", "44": "परन्तु मैं तब भी उन्हें नहीं त्यागूँगा, न ही उनसे घृणा करूँगा और न ही उनका सर्वनाश करूँगा। उनके साथ बँधी हुई अपनी वाचा को मैं कभी रद्द नहीं करूँगा। मैं यहोवा ही हूँ जिस परमेश्वर की उन्हें उपासना करनी चाहिए। ", "45": "तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र देश से निकाल कर मैंने उनके साथ जो वाचा बाँधी थी, और जिसके विषय में सब जातियों ने सुना था, उसे स्मरण रखूँगा। मैंने इसलिए ऐसा किया था कि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर बना रहूँ।” ", "46": "ये सब यहोवा और इस्राएलियों के मध्य सीनै पर्वत पर दी गई आज्ञाएँ, आदेश तथा नियम हैं जो मूसा द्वारा उन तक पहुँचाए गए।", "front": "\\p ", "40-41": "परन्तु तुम्हारे वंशजों को अपने और अपने पूर्वजों के पापों को स्वीकार करना पड़ेगा। उनके पूर्वजों ने मेरे साथ विश्वासघात किया और मुझसे बैर किया। इस कारण मैंने उन्हें उनके शत्रुओं के देश में पहुँचा दिया। परन्तु जब तुम्हारे वंशज मेरे सामने दीन होकर हठ का त्याग करेंगे और अपने पापों का दण्ड स्वीकार करेंगे, " }