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\v 13 और दुरमे पत्तासे भारो एक अँजीरको रुखा देखके जमकुछ फारा पएहौंकी कहिके बा गव, तव हुवाँ पुग्के बा पत्ता से अलाबा कुछ ना पाई, काहेकि बा समय अँजीरके फरा फरनको समय ना भव रहय। \v 14 तव बा बो रुखासे कहि, “अब उईसो कोई फिर तेरो फरा ना खामएँ ।” और जा कहत बक चेला सुनत रहएँ । |