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\v 14 बा आदमिनके फिर अपन ठीन बुलाएके उनसे कहि, “तुम सब मेरी बात सुनओ और समझओ। \v 15 अइसी कोई बात न हय जो बाहिरसे आदमिनके भीतर घुसके अशुध्द करपए हय, पर आदमीसे बाहिर निकरत हय बेहि बात आदमीके अशुध्द करत हय। \v 16 जौनको सुनन कान हय बा सुनय।”