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\v 18 काँटोके बिचमे बोए भए जेहिं हएँ, जौन वचन सुनत् हयँ, \v 19 पर जा संसारको चिन्ता और धनको लोभ और चीजको लालच आएके वचनके दबाए देत् हए, तव बे फरत न हयँ। \v 20 तव अच्छी जमिनमें बोए भए जेहि हएँ, जौन वचन सुनत हएँ, और ग्रहण करत् हएँ, और फरा देत् हएँ तीस गुना, साठ गुना, और सय गुना।” |