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\v 28 नेहत्य, मै तुमसे कहत हौं, आदमीन को सब पाप और ईश्‍वर-निन्दा क्षमा करे जयहयँ, \v 29 पर पबित्र आत्माके बिरुद्दमें निन्दा करन बारेनके कबहु क्षमा न हुइहए, तओ बा अनन्त पापकर्मको दोषी ठहारैगो।" \v 30 येशू जा वचन कहि, काहेकी ""बा अशुद आत्मा हए करके बे कहत रहएँ। "