thr_heb_text_reg/11/35.txt

1 line
1.2 KiB
Plaintext

\v 35 बैयर अपने मरेभयनके पुनरुत्थानद्वारा जिन्दा पाइँ। और जद्धा उत्तम पुनरुत्थान जीवन पानके बे छुटकाराके स्वीकार न करी। जहेमारे, बे सजाय भोगीं । \v 36 औरनके निन्दा, कोर्रा, बन्धन और कैद जैसे और बात सहीं । \v 37 बिनके पत्थरसे मारीं। बिनके दुई भाग करनके चिरो गओ। बिनके तरवारसे मारीं। बिनके भेणा और बक्राको खाल लगाएके नेगन पडो और बहुत किसिमको दु:ख, क्लेश और अमानवीय बात सहन पडो । \v 38 जा संसार बिनके ताहिं योग्य न रहए। बे उजाडस्थान, पहाड, गुफा और जमीनके दरारनमे भटकट फिरे।