thr_heb_text_reg/10/01.txt

1 line
1.1 KiB
Plaintext

\v 1 काहेकी व्यवस्था अब आनबारो अच्छी बातनको एक छाहीं इकल्लो हए, बे अपनयमे सच्चे चीज त न हयँ। पुजारी वर्षैपिच्छु लगातार रुपमे चढ़ानबारे आइसे बलि परमेश्‍वरके जौने जान कबहु पुरो न बनान सिकी । \v 2 नत का बलि चढ़ानबारो काम बन्द न हुइतो ? उइसो होतो तव, आराधक एकए चोटीमे सदा के ताहीं शुध्द हुइते, बिनके और पापको चेतना न हुइतो । \v 3 पर बे बलिदान हरेक वर्षै पिच्छु पापनको सम्झना करात हएँ । \v 4 काहेकी सण्बा और बक्रानको रगतसे पाप हटान असम्भव हए।