thr_heb_text_reg/06/04.txt

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\v 4 काहेकी जौन एक चोटी ज्योति पाएके स्वर्गको वरदान चाखीं रहँए, जो पवित्र आत्मामे सहभागी भए रहएँ, बिनके ताहीं जा असम्भव बात हय। \v 5 और जौन परमेश्‍वरको अच्छो वचनको और आनबारो युगको शक्तिको स्वाद चाखीं ेरहएँ, बिनके ताहीं जा असम्भव बात हय। \v 6 पर जो विश्‍वास छोडके पिच्छु हटे हएँ, बिनके फिर पश्‍चातापमे लान असम्भव हए। काहेकी बे फिर अपन ताहीं परमेश्‍वरके पुत्रके क्रूसमे टाँगत् हँए, और खुल्लमखुल्ला बाको अपमान करतहँए।