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\v 5 तुमर चालचलनके रुपियाँपैसाको लालचसे अलग करिओ। तुमरसंग भव चीजनमे सन्तुष्ट हुइयो। काहेकि परमेश्‍वर अपनय आइसो कहिहए, “मए तुमके कबहु न छोडंगो, नत मए तुमके त्यागंगो ।" \v 6 हम सन्तुष्ट होमयँ। जहेमारे, हम साहससंग कहे सकत हयँ, “परमप्रभु मिर सहायक हए, मए न डरामंगो। आदमी मोके का कर सकत हयँ ?