thr_heb_text_reg/12/18.txt

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\v 18 काहेकि तुम जलरहो पहाड, अन्धकार, बादर और छुन न सिकनबारो पहाडमे न आए हओ। \v 19 तुम तुरहीको फुँको बडो आवाज भव ठाउँमे फिर न आय हौ, न त आइसो आवाज सुनन ठाउँमे आए हौ जौनको सुनके बे और दुसरो शब्द न मस्को जाए कहिके बिन्ति करीं रहयँ। \v 20 काहेकी "अगर कोइ जनावर बा पहाड छुईं कहिसे बाके पत्थरसे मारनय पडहय" कहिके आज्ञा बे सहन न करपाईं । \v 21 मोशा कही कि बा हुवांक दिखाई अइसो भयानक रहए, "मए डराएगव और डरसे काँपत हौं" कहि।