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\v 14 हरेक संग शान्तिमे बैठन कोशिस करओ, और पवित्रताबिना कोइ भी परमप्रभुके न देख सकत हय। \v 15 ध्यान देओ, कि कोइ आदमी परमेश्‍वरको अनुग्रह पानसे बन्चित होन न पडय, और तीतोपनको जर उमरके कोइके फिर दुःख न देबए, और बहुत जनीके दोषी न बनाबए । \v 16 होसियार रहओ। कोइ फिर एकछाक खानुके ताहिं अपन जलम अधिकार बेचनबारो एसावजैसो अधर्मी न होबय औ यौन अनैतिक न होबय । \v 17 काहेकि तुमके पता हए, कि पिछु जायके बा आशिर्वादको उत्तराधिकार पान इच्छा करी तव बाके न मिलो, काहेकि बा आँशु बहाएके फिर विलाप करी तहुँ फिर पश्‍चाताप करनके मौकासमेत न पाई, हियाँतक कि बा आँसु बहाएके फिर जाके ढुँडीरहए।